अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा और अधिकार: साझा मानवता और मूलभूत मूल्यों की रक्षा

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गजेंद्र सिंह

कापीसा प्रांत में महिला मेडिकल छात्रों के आंसू तालिबान शासन के इस्लामी फ़रमान के तहत अफगान महिलाओं की गंभीर वास्तविकता को दर्शाते हैं। तालिबान शासन के एक के बाद एक महिलाओं के लिए आ रहे फरमान न केवल उन्हें चिकित्सा शिक्षा से वंचित करने वाले है अपितु महिला के सपनों और आशाओं को कुचल देते हैं । यह केवल शिक्षा से इनकार नहीं है बल्कि लैंगिक समानता और मानवाधिकारों पर एक गहरा आघात है । यह स्थिति विशेष रूप से अफगानिस्तान की ऐतिहासिक विरासत को देखते हुए अत्यंत दुखद है। यह वही देश है जहां महिलाओं ने शासन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मौजूदा परिस्थिति की गंभीरता को समझने के लिए हमें अफगानिस्तान के इतिहास, तालिबान में इस्लामी शासन  की नीतियों के दुष्परिणामों और अफगान महिलाओं के समर्थन में वैश्विक जिम्मेदारी को गहराई से परखना होगा।

अफगानिस्तान हमेशा से महिलाओं के लिए दमन का स्थान नहीं था । इतिहास गवाह है कि यहां महिलाएं बुद्धिजीवी, नेता और समाज सुधारक के रूप में सम्मानित होती थीं। कुषाण साम्राज्य (प्रथम से तृतीय शताब्दी) के दौरान महिलाएं व्यापार, शिक्षा और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेती थीं। बामियान बुद्ध जैसे स्मारक उस समय की सांस्कृतिक प्रगति और शिक्षा को महत्व देने वाले समाज का प्रतीक हैं । 20वीं सदी में राजा अमानुल्लाह खान और रानी सोराया टार्ज़ी के प्रगतिशील सुधार महिलाओं के उत्थान में मील का पत्थर साबित हुए । रानी सोराया ने लड़कियों की शिक्षा का समर्थन किया, पर्दा प्रथा का विरोध किया और लैंगिक समानता का आह्वान किया। उन्होंने कहा था, यह मत सोचिए कि हमारे देश को केवल पुरुषों की जरूरत है। महिलाओं को भी इसमें योगदान देना चाहिए।” 1964 के अफगान संविधान ने महिलाओं को वोट का अधिकार दिया। काबुल विश्वविद्यालय जैसे संस्थान सह-शैक्षिक शिक्षा के केंद्र बने और आधुनिक अफगानिस्तान की उम्मीदों को बल दिया।

1990 के दशक में तालिबान के उदय के साथ ही महिलाओं के लिए एक काला अध्याय शुरू हुआ। 1996 से 2001 तक तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को सार्वजनिक जीवन, शिक्षा और काम से पूरी तरह वंचित कर दिया गया। 2001 में अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद महिलाओं के अधिकारों में थोड़ी राहत मिली लेकिन 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी ने फिर से दो दशकों की प्रगति को मिटा दिया। आज, तालिबान की नीतियां  महिलाओं को शिक्षा, काम और सार्वजनिक जीवन से बाहर करती हैं। माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर प्रतिबंध लड़कियों को घरों तक सीमित कर देता है। खासतौर पर मेडिकल की पढ़ाई पर प्रतिबंध महिलाओं की व्यक्तिगत आकांक्षाओं को ही नहीं, बल्कि पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को कमजोर करता है।

तालिबान की ये नीतियां न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि अफगानिस्तान के सामाजिक और आर्थिक ढांचे के लिए विनाशकारी हैं । महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से बाहर रखने से देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में गिरावट होगी और समाज गरीबी और अज्ञानता के चक्र में फंसा रहेगा।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान की नीतियों की निंदा की है लेकिन केवल बयानबाजी से स्थिति में सुधार संभव नहीं है। अफगान महिलाओं और लड़कियों के समर्थन के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। मानवीय सहायता के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिसमें छात्रवृत्ति, ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम, और भूमिगत स्कूलों को बढ़ावा देना शामिल है। साथ ही राजनयिक दबाव डालते हुए तालिबान से महिलाओं के अधिकारों को स्वीकार करने की शर्त पर वार्ता की जानी चाहिए। आर्थिक रूप से तालिबान नेताओं पर लक्षित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं और प्रगतिशील सुधारों के लिए प्रोत्साहन दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य देशों को अफगान महिला कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, और छात्रों को शरण और समर्थन प्रदान करना चाहिए ताकि वे सुरक्षित वातावरण में अपने अधिकारों और शिक्षा के लिए संघर्ष जारी रख सकें ।

कठिन परिस्थितियों के बावजूद, अफगान महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। भूमिगत विद्यालय और महिला कार्यकर्ता शिक्षा और समानता के लिए अभियान चलाना जारी रखे हुए हैं। मलाला फंड और वीमेन  फॉर अफगान वीमेनजैसे संगठनों ने अफगान महिलाओं के अधिकारों के समर्थन में वैश्विक एकजुटता को प्रोत्साहित किया है। अफगानिस्तान के इस्लामी शासन का यह संकट केवल एक राष्ट्र का मुद्दा नहीं है; यह समानता, न्याय और मानवाधिकारों के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता की परीक्षा है । इतिहास गवाह है कि अवसर मिलने पर अफगान महिलाएं नेता, पेशेवर और समाज सुधारक के रूप में योगदान देती हैं । यह हर देश, संगठन और व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अफगान महिलाओं के साथ खड़ा हो, उनकी आवाज़ को सुने, उनके अधिकारों को बहाल करे और उनके सपनों को मरने न दे । यह लड़ाई न केवल महिलाओं की है बल्कि यह हमारी साझा मानवता और मूलभूत मूल्यों की रक्षा की लड़ाई है ।

गजेंद्र सिंह

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