गाय बनेगी विश्व एकता का साझा सूत्र
माँ की दया
६२ वर्ष पहले हमारा देश विदेशी शासन से स्वतंत्र हुआ। विडंबना देखिए, यद्यपि हम स्वयं अपने स्वामी बन गये पर पश्चिमी चकाचोंध के अवांछनीय प्रभावों के दास भी हो गये। तब से अपनी यात्रा के प्रत्येक पड़ाव पर हम अपनी मौलिकता और स्वाभिमान खोते गये।
आज की वास्तविकता भयावह है। हम जानते हुए भी विषैल भोजन करते है। हमारे अपने स्वास्थ्यकर भोजन के उत्पादन में हमारी दिलचस्पी समाप्त हो गई है। परिणामतः बाहरवालों पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है।
यदि मनुष्यों की यह दुःखद स्थिति है, तो पशु-पक्षियों की गति बदतर है।
विद्वान लोग एक कारण बताते है – मानव जाति भूमंडल पर एक लाख वर्षों से है। इस काल में हमारे पर्यावरण को पिछले १०० वर्षों से हुई क्षति उसके पहले के ९९,९०० वर्षों में हुई क्षति के बराबर है। स्पष्टतः इसका कारण है मनुष्य द्वारा हर वस्तु पर नियंत्रण का लोभ। यह संभव भी नहीं है और यही दुष्प्रयास हमारे घोर कष्टों का कारण भी है।
भारतीय संदर्भ में इस बंधन से निकलने का एक मात्र मार्ग है – हमारे देश में एक समय में फलते-फूलते गौ केंद्रित ग्राम की तरफ वापसी।
इसी पृष्ठ भूमि में श्री रामचंद्रापुर मठ के पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य श्री राघवेश्वर भारती स्वामीजी ने विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा अभियान प्रारंभ किया है जिसका उद्देश्य लोगों को गौ केंद्रित ग्रामों तक वापस ले जाना है।
यह सर्वविदित है कि श्री स्वामीजी ने अपना जीवन गौ कल्याण के लिये समर्पित किया है। इस यात्रा के माध्यम से उनका प्रयास है हमारे राष्ट्र और समस्त विश्व को गाय रूपी एक डोर में बांधना। इसके साथ ही जुडा है प्रत्येक आत्मा में प्रकृति प्रेम जगाना।
यात्रा की रूपरेखा
विषय वस्तु : गाय संसार की माता है।
संकल्प : गाय की रक्षा मेरा पवित्र कर्तव्य है।
नारा : जो गाय को बचाये, गाय उसे बचाये।
लक्ष्य : गो भक्ति से ग्राम प्रगति करें, ग्रामों की प्रगति से राष्ट्र की प्रगति हो, जिससे संसार की प्रगति हो।
माध्यम : गाय
संदेश : चलें गाँव की ओर। चलें गाय की ओर| चलें प्रकृति की ओर।
मंगल संकल्प : पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती स्वामीजी, श्री रामचंद्रापुर मठ
मंगल प्रेरणा : पूज्य गोऋषि श्री श्री स्वामी दत्तशरणानंदजी महाराज, पथमेडा
प्रवर्तक : पूज्य श्री श्री रविशंकरजी, पूज्य श्री श्री रामदेवजी बाबा, पूज्य श्री श्री माता अमृतानंदमयीजी, पूज्य आचार्य श्री श्री विद्यासागरजी, पूज्य आचार्य श्री श्री महाप्रज्ञजी, पूज्य आचार्य श्री श्री विजय रत्नसुंदर सुरीश्वरजी, पूज्य श्री श्री स्वामी दयानंद सरस्वतीजी, पूज्य श्री श्री मुरारी बापूजी महाराज, पूज्य श्री श्री सद्गुरु जगजीत सिंहजी महाराज, पूज्य श्री श्री सयामडांग रिनपोचेजी
संघटन : पूज्य डा. प्रणव पंड्याजी के गौरवाध्यक्षता में राष्ट्रीय समिति, राज्य और जिला स्तर पर समितियाँ
समर्थन : सभी गो भक्तों का
यात्रा शुभारंभ : कुरुक्षेत्र, विजयदशमी, ३० सितंबर, २००९
अवधि : १०८ दिन
आयोजन : गाय को प्रार्थना, संदेश, जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पर्व का माहौल
कुल मार्ग : २०,००० कि.मी
सहयात्रायें : १५,००० (जिला तालूका – ग्राम केंद्रों से)
सहयात्रा मार्ग : १० लाख कि.मी
समापन : नागपुर, मकर संक्रांति, १७ जनवरी, २०१०
हस्ताक्षर अभियान : गो के प्रति हिंसा रोकने के लिए और गाय को राष्ट्रीय प्राणि का दर्जा दिलाने के लिए करोडों के संख्या मे हस्ताक्षर संग्रह होगा।
भारत के राष्ट्रपति को प्रस्तावना : २९ जनवरी, २०१० को करोड़ों हस्ताक्षरों के साथ
क्या यह यात्रा अपरिहार्य है ?
हाँ, यह कोरी काल्पनिक आवश्यकता नहीं है। यह आवश्यकता है करो या मरो की स्थिति तक पहुँचे एक राष्ट्र की। आधुनिक मानव विपरीत ध्रुवों और विरोधाभासों के मध्य फंसा है।
शांति बनाम आनंद, प्राकृतिक बनाम यांत्रिक, समानुभूति बनाम स्वार्थ, प्रकृति बनाम पुरुष, दूर दृष्टि बनाम अदूरदर्शिता, सर्वांगीण लाभ बनाम वित्तीय लाभ, कृषि बनाम उद्योग, गौ आधारित कृषि बनाम यांत्रिक कृषि, ग्राम बनाम नगर, गुणवत्ता बनाम संख्या, स्वास्थ्यकारी भोजन बनाम जंक फूड, गहरी नींद बनाम द्रव्यजनित तंद्रा – ऐसे संधर्षों की तुलना में बाह्य आतंकवाद नगण्य है।
चिंताक्रांत कृषक
किसान चेष्टा कर रहा है भूमि का सार तत्व खींच लेने की। उसकी दृष्टि में देशी बीज, गायें और खाद बेकार है। वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों से संकर बीज, रासायनिक खाद, कीटनाशक और कृषि उपकरण लेने को प्रस्तुत है। कुछ वर्षों तक बेहतर फसल और अधिक आय के भ्रमजाल को वह समृद्धि समझ बैठता। अपने बच्चों को शहरों में पढ़ा कर उन्हें वह गांवों और खेती से दूर करता है। कालांतर में कृषि के गलत तरीके उसकी भूमि का उपजाऊपन क्रमशः कम कर देते हैं। पैदावार घट जाती है और ऋण और कठिनाइयाँ बढ़ जाती हैं और वह आत्मा हत्या जैसे चरम कदम उठा बैठता है।
यह एक अपवाद स्वरूप कहानी नहीं है। बल्कि हमारी जनसंख्या का ७०% माने जाने वाले आम किसानों की नियति है।
एक और दृष्टि से मनुष्यों की स्थिति बेहतर है।
वन्यप्राणी जो कि पहले हजारों कि संख्या में थे, अब सैंकड़ों कि संख्या में आ गये हैं।
भूमि की सतह बंजर होती जा रही है, यह आश्चर्य की बात है कि कुछ जंगल अभी भी बचे हुए हैं।
गौ परिवार जो कि किसान का जीवन आधार है, घटता जा रहा है।
भारतीय गायों की ७० प्रजातियों में से केवल ३३ वची हैं। इन बची हुई नस्लों में भी कुछ में तो सिर्फ १० या २० गायें ही मौजूद हैं।
६० वर्षों में वधशालओं की संख्या ३०० से ३६,००० हो गई है।
स्वाधीनता से अब तक देश, अपनी ८०% गौ संख्या खो चुका है।
इस दुःखद स्थिति का एक स्थायी समाधान आज की आवश्यकता और चुनौती है। हमारे लिये गौ केंद्रित ग्रामीण जीवन ही श्रेष्ठ विकल्प है। पारस्परिक निर्भरता, देख-भाल, सम्मान और सब जीवों के हित के प्रति चिंता इस विचारधारा का मध्य बिंदु है। जीवन के प्रत्येक पल में यह सत्य परिलक्षित होता है।
विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा इन पवित्र संदेशों को भारत के कोने-कोने तक पहुँचायेगी। कृपया इसके महत्व पर गौर करें।