यान ही यान हैं यहाँ रमते !
शिकागो के गगन से
यान ही यान हैं यहाँ रमते,
तरा ऊपर तलों में वे उड़ते;
धरणि नीचे वे देख हैं लेते,
साये आकाश के वे छू लेते !
कोई आते कोई चले जाते,
पट्टियों पर कोई उतर चलते;
कोई उन पट्टियों से उड़ जाते,
उड़ते चलते कोई ठहर जाते !
आत्म ऐसे ही धरा पर धाते,
समय में गोते लगाते चलते;
ठहर कुछ समय हैं कभी जाते,
वक़्त आने पे विचरते लगते !
मेघला रात दिन कभी आते,
कभी घबड़ा के मन चले जाते;
ख़ुशी में भर के कभी वे जाते,
कभी गम की तहों में ले जाते !
नियंत्रित जब तलक आत्म होता,
तटस्थित जब भी उर रहा होता;
‘मधु’ गण सफ़र का लुत्फ़ लेते,
रास रस कृष्ण के जगत लेते !
गोपाल बघेल ‘मधु’