एक तरफ योगी का प्रयास दूजी तरफ परिवार का सामाजिक बोध

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समाजिक दृष्टिकोण से इसका आकलन होना आवश्यक है कि जब शासक बदलता है तो राज्य व समाज मे क्या बदलाव आते हैं । कुछ लोगो की अपेक्षाएं इतनी बढ़ जाती है कि सकारात्मक परिणाम होते हुए भी उन्हें नकारात्मक ही लगते हैं। एक समय था जब मजहबी मनचलों के हौसले इतने बुलंद थे कि लड़कियों का घर से बहार निकलना व सुरक्षित घर वापस पहुचना ही एक बड़ा संघर्ष हुआ करता था । मजहब के नाम पर लड़कियों की दुर्दशा की जाती थी ओर अपराधियो को मजहबी तुष्टिकरण का राजनीतिक संरक्षण मिल जाता था परन्तु जब से योगी जी की सरकार ने  मजहबी संरक्षकों पर कानूनी शिकंजा कसा है। तब से जमीनी स्तर पर काफी स्कारात्मक प्रभाव  देखने को मिल रहे हैं । हाँ यह भी सत्य है कि योगी जी के अथक प्रयास व सख्त कानूनों के पश्चात भी मजहब व धर्म के नाम पर हिन्दू लड़कियों के साथ  बर्बरता होने की घटनाएं पूर्ण रूप से रोकी नही जा सकी है । इसका कारण कहीं न कहीं माता पिता की निरंकुशता व लड़कियों में समाजिक ज्ञान का अभाव भी है । जिन बिटियाओ के साथ लव जिहाद की घटनाएं होती है तो उन घटनाओं में निश्चित ही बच्चियों को यह भी पता लग जाता है कि लड़का किसी दूसरे मजहब का है परन्तु पारिवारिक ज्ञान  , सामंजस्य व आपसी समय न होने के कारण लडकिया दूसरे मजहब के लड़के के चंगुल में फसती चलीजाती हैं ओर अपने परिवार से ही दूर होती चली जाती है। अतः माता पिता के लिए आवश्यक है कि अपने बच्चो के साथ समय व्यतीत करें , बिना संकोच व घबराहट के इस तरह के मजहबी प्रेम व क्रूर षड्यंत्रों से अवगत कराएं । क्योंकि शासक कितना ही श्रेष्ठ व सशक्त क्यों न हो परन्तु संस्कार व शिक्षा तो परिवार से ही प्राप्त होती है। यदि अपने परिवार के बच्चों को इस मजहबी षड्यंत्र से अवगत नहीं कराया गया तो एक मजबूत शासक के साथ साथ , बच्चो , परिवार व राष्ट्र को अत्यधिक नुकसान होगा जिसकी भरपाई कभी भी सम्भव न हो पाएगी। उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो इसमें कोई संदेह नही की यदि योगी जी महाराज नही होते तो इस मजहबी षड्यंत्र के वीभत्स परिणाम यह समाज झेल नहीं पाता। अतः अब भी समय ही कि दलगत राजनीति व जातिगत तुष्टिकरण में न पड़ते हुए हिन्दू समाज को अपने बच्चो की सुरक्षा हेतु उचित प्रबंध करने चाहिए।

दिव्य अग्रवाल

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