हम तुम

चट्टान थे तुम
हम लहर से ,
तुम से टकराते रहे,
चोट खा खा के फिर
वापिस आते रहे।

तुम क्षितिज थे,
हम थे राही,
तुम भ्रम थे,
हम पुजारी,
हम चले, चलते गये
तुम दूर जाते गये।

तुम थे सागर,
हम थे दरिया,
बहते बहते,

पहुँचे तुम तक,
तुम जगह से
हिले ही नहीं,
हम तुममें समाते गये।

तुम ग़ज़ल के,
रदीफ़ बनकर,
ज़रा न बदले,
हमने कितने,
वेश बदले,
काफ़िये बने,
तुम्हारे आस पास रहे,
तुम्हारे संग
हर शेर की दाद पर,
हम मुस्कराते रहे।

तुम हमें अपना
समझो न समझो,
धरती की तरह

हम सूर्य के चक्कर
लगाते रहे।

Previous articleउनके प्यार की धुप आने लगी है
Next articleनरेन्द्र मोदी की ताजपोशी की तैयारी
बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress