तुम जलाते रहे,मै जलती रही

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आर के रस्तोगी

तुम जलाते रहे,मै जलती रही |
बिन आग के ही,मै जलती रही ||

तुम यकीन देते रहे,मै करती रही |
धोखा खाया तो,हाथ मलती रही ||

वादा मुझसे किया,शादी और से की |
ये बात जिन्दगी में,मुझे खलती रही ||

तुम वादा करते रहे,और मुकरते रहे |
धीरे धीरे पैरो की जमीं निकलती रही ||

तुम्हारी हर ख्वाश्य मै पूरी करती रही |
पर मेरी हर ख्वाश्य यूही मचलती रही ||

पास रहकर भी मुझसे तुम दूर होते रहे |
दूरियां मुझको जिन्दगी भर खलती रही ||

तुम्हे हर वख्त,मै दिल से चाहती रही |
यही जिन्दगी में, हर बार गलती रही ||

कहने को तो बहुत कुछ है,पर कहती नहीं |
यही कारण है,ये दिल में मेरे पलती रही ||

तुम सदा मुस्कराते रहे,मै सदा रोती रही |
इसी तरह से,ये मेरी जिन्दगी चलती रही ||

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम (हरियाणा)

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जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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