भाजपा को भीतर की बारुदी सुरंगें पहले साफ़ करनी होंगी

डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

गडकरी के बहाने भाजपा को घेरने की कांग्रेस की रणनीति बहुत साफ़ और स्पष्ट है । कांग्रेस को अपने भ्रष्टाचार से कुछ लेना देना नहीं है । क्योंकि यह उसकी कार्यशैली का हिस्सा है । यह उसके “इनबिल्ट”सिस्टम का हिस्सा है । भारत के लोग भी यह अच्छी तरह जानते हैं । सोनिया कांग्रेस इसे छिपाती भी नहीं है । वह मतदाता के पास अपने इसी रुप में जाती है । परन्तु जब वह अपने भ्रष्टाचार समेत मतदाता से वोट की अपील करती है तो क्या उसे मतदाता द्वारा रिजैक्ट किये जाने का ख़तरा नहीं है ? यक़ीनन यह ख़तरा है । इसी ख़तरे को दूर करने के लिये भाजपा को घेर रही है । उसे केवल लोगों को यह विश्वास दिलाना है कि भाजपा भी भ्ष्टाचार में डूबी हुई है । ऐसा नहीं कि भाजपा के सभी लोगों का आचरण शुद्धता के मानकों पर खरा ही उतरता हो । लेकिन सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार भाजपा की नीति और कार्यशैली का हिस्सा नहीं है । जबकि कांग्रेस की नीति का मुख्य हिस्सा ही भ्रष्टाचार है । यही कारण है कि सोनिया कांग्रेस के शासन में प्रकारान्तर से कारपोरेट जगत का ही शासन हो गया है । लेकिन कांग्रेस की समस्या है कि वह अपने तमाम प्रयासों के बाबजूद भाजपा की छवि को बहुत हद तक धूमिल नहीं कर पाई । इस लिये उसने प्रतीक रुप में गडकरी पर प्रहार करने का निर्णय लिया है । यदि प्रतीक को खंडित कर दिया जाये तो जाहिर है सेना निराश होगी और उसमें भगदड़ मचेगी । भारतीय इतिहास तो इस प्रकार की घटनाओं से भरा पड़ा है जब प्रतीक के गिर जाने पर देश की सशक्त सेना में भी भगदड़ मच गई । मुहम्मद बिन कासिम ने जब सिन्ध के राजा दाहिर पर हमला किया था तब राजा की सेना को हरा पाना कठिन था । तब विदेशी सेना ने राज्य के प्रतीक को गिरा दिया और सेना अस्त व्यस्त हो गई । जाहिर है भाजपा के प्रतीक पर आक्रमण के लिये कांग्रेस को बांछित देशी विदेशी सहायता मिली ही होगी । क्योंकि भाजपा को पराजित करने का ख्वाव , वे विदेशी शक्तियाँ भी रखती हैं जिनको उसकी राष्ट्रीय नीतियों पसंद नहीं हैं । लेकिन ये मिल कर भी भाजपा के प्रतीक को कलुषित नहीं कर पाईं । ऐसे मौके पर राम जेठमलानी और महेश जेठमलानी की बाप बेटे की जोड़ी मैदान में उतरी । उनकी माँग थी कि गडकरी को इस्तीफा दे देना चाहिये क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं । सारी उम्र मुकद्दमें ही लड़ते रहे राम जेठमलानी भी अच्छी तरह जानते हैं कि केवल आरोप लगने से ही कोई दोषी नहीं हो जाता । यदि ऐसा होता तो राम जेठमलानी का करोड़ों का वकालत का धन्धा ही ठप्प न हो जाता ? किसी पर भी आरोप लगता और उसको सजा हो जाये तो जेठमलानी की ज़रुरत क्यों पड़ेगी । लेकिन जेठमलानी को आरोपों से कुछ लेना देना भी नहीं था । वे सिन्ध के रहने वाले हैं , इसलिये अच्छी तरह जानते हैं कि निर्णायक प्रहार प्रतीक पर ही होता है । लेकिन जेठमलानी का दुर्भाग्य है कि सामाजिक विषयों को लेकर की गई उनकी टिप्पणियों को कोई गंभीरता से नहीं लेता । कम से कम भाजपा का सामान्य कार्यकर्ता तो नहीं ही लेता । जेठामलानी की प्रसिद्धि हाजी मस्तानों और अफजल गुरुओं के वकील के नाते है न कि एक सामाजिक कार्यकर्ता के नाते । लेकिन इसी हड़बड़ी में वे उल्टे तर्क देने लगे । उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर ही आक्रमण कर दिया । कहने लगे कि मैं राम को इस लिये पसन्द नहीं करता कि उन्होंने मात्र एक धोबी के आरोप लगाने पर अपनी पत्नी सीता को छोड़ दिया । इसके बाबजूद जेठामलानी चाहते हैं कि किसी भी ऐसे गैरे द्वारा आरोप लगाने पर गडकरी इस्तीफा दे दें ।

जेठामलानी का अभियान भाजपा के बाहर उन लोगों को तो प्रभावित कर रहा होगा जो गडकरी के त्यागपत्र की आशा लगाये बैठे थे । लेकिन भाजपा के भीतर लाखों कार्यकर्ताओं पर उस का प्रभाव नगण्य ही रहा । जेठमलानी भी इसे जानते ही थे । लेकिन वे ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि राजा दाहिर को हराने में मुख्य भूमिका क़िले के अन्दर के लोगों ने ही निभाई थी । क्या जेठामलानी भी भाजपा के भीतर क़िले के अन्दर की वही भूमिका तो नहीं निभा रहे थे ? लेकिन जब गुरुमूर्ति ने कहा कि गडकरी ने न तो क़ानूनन और न ही नैतिक दृष्टि से कुछ ग़लत किया है तो भाजपा पर निशाना साध रही सभी शक्तियाँ सकते में आ गईं । उनका मकसद भाजपा के भीतर घमासान मचाना था और उसी में वे सफल नहीं हो रहे थे । भाजपा और देश की राष्ट्रवादी शक्तियों में गुरुमूर्ति की विश्वसनीयता जेठामलानी से कहीं ज्यादा है । जेठामलानी नाम की भीतर की बारुदी सुरंग गीला साबित हुई ।

अब यशवन्त सिन्हा को मैदान में उतारा गया है । अब तक गडकरी को घेरने वालों ने लड़ने के लिये कम से कम भ्रष्टाचार की की सच्ची झूठी ढाल तो संभाली हुई थी लेकिन यशवन्त सिन्हा ने वह ढाल भी परे रख दी । उनका कहना है कि गडकरी ठीक है या ग़लत , यह तो प्रश्न ही नहीं है । गडकरी को हर हालत में इस्तीफा देना चाहिये । सिन्हा का कहना है कि जनभावना को ध्यान में रखते हुये यह किया जाना चाहिये । जब कोई जनभावना का प्रश्न संसद के सत्र से एक दिन पहले करने लगे तो समझ जाना चाहिये यह ढाल के पीछे की रणनीति है । यह जनभावना दिसम्बर मास तक इसी प्रकार भड़कती रहेगी , जब नये भाजपा अध्यक्ष के चुने जाने का वक्त आयेगा । यह लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं बल्कि गडकरी की दूसरी टर्म को रोकने की घेराबन्दी है । क्या यह जरुरी नहीं होगा कि २०१४ के लोकसभा के चुनावों से पूर्व भाजपा अपने घर के भीतर की लैंड़ माइन्ज को साफ़ कर ले ? यदि सिन्हा को सचमुच भ्रष्टाचार की चिन्ता होती तो वे यह सभी मुद्दे पार्टी के भीतर उठाते न कि घर के बाहर मीडिया से बात करते ।

ताज्जुब है ये सभी लोग गडकरी को बिना कुछ सिद्ध हुये , लटका देना चाहते हैं । लाखों कार्यकर्ताओं के तप त्याग से सिंचित संगठन को कुछ लोगों द्वारा हाईजैक करना ही इसे कहा जा सकता है । देश के लोगों को भाजपा पर विश्वास है लेकिन भीतर के ही कुछ लोग इसे खंडित करना चाहें तो क्या कहा जाये ? भाजपा को पहले अपने घर के भीतर की लड़ाई लड़नी होगी । उसे इस प्रकार की अनुशासनहीनता को रोकना होगा । यदि इस में देर की गई तो काफ़ी नुक़सान हो जायेगा और शायद उसकी भरपाई भी संभव न हो । यह तो सभी के ध्यान में होगा ही कि जनसंघ से बलराज मधोक को नीतिगत मतभेद के कारण नहीं बल्कि अनुशासनहीनता के कारण निकाला गया था । वे भी पार्टी बैठक में उठाये जाने बाले मुद्दों को मीडिया में उठाने लगे थे । लेकिन कहा भी गया है बाहरी आदमी से लड़ना आसान होता है , “भीतरी” से लड़ना ही मुश्किल होता है । देखना है भाजपा यह काम कितनी सफलता से कर पाती है ।

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डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।

1 COMMENT

  1. मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने अपने पिता की तीन पत्नियों के बजाय एक पत्नीव्रत धर्म का निर्वाह किया. आधुनिक राम ( जेठमलानी) ने पुनः बहु पत्नी प्रथा का अनुसरण किया अतः उन्हें भगवन राम में दोष नजर आना स्वाभाविक है.

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