तेरी तेरी सब कहें, मेरी कहे न कोय

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 विनायक शर्मा

अभी बीते सप्ताह ही हिमाचल कांग्रेस के विधायक और चार्जशीट कमेटी के अध्यक्ष ने टेलीफोन पर बताया था कि चार्जशीट पर अभी काम चल रहा है और तैयार करने के बाद इसपर हिमाचल कांग्रेस के प्रभारी बीरेंद्र सिंह से चर्चा करने के पश्चात् ही आला कमान के मार्फत राष्ट्रपति को सौंपा जायेगा और तभी इसे सार्वजनिक किया जायेगा. प्रदेश में प्रो० प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में चल रही भाजपा सरकार के तमाम भ्रष्टाचार, अनियमितताएं और नाकामियों को उजागर करने का दावा करनेवाली इस चार्जशीट का राजनीतिक हलकों के साथ-साथ मीडिया को भी बड़ी बेसब्री से इसका इन्तजार है. तभी अचानक भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष ने विगत दिनों इस ६१ पन्नों की तथाकथित चार्जशीट को जारी करतेहुए जहाँ एक बार तो सनसनी ही फैला दी वहीँ प्रदेश कांग्रेस को भौंचका सा कर दिया. सकते में आयी प्रदेश कांग्रेस के हलकों में शक की सुई गुटबाजी में फंसे कई नेताओं पर टिकाने का प्रयास किया जाने लगा कि किस नेता ने इसे लीक किया होगा. भाजपा के विधायक और प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती ने इस तथाकथित कांग्रेस की लीक हुई चार्जशीट को आधारहीन और झूठ का पुलिंदा बताते हुए इन आरोपों को लगानेवाले नेताओं के विरुद्ध न्यायालय का दरवाजा खटखटाने तक की चेतावनी दे दी. ज्ञातत्व हो कि लीक हुई इस तथाकथित कांग्रेस की चार्जशीट में जहाँ मुख्यमंत्री के कई मंत्रियों पर हिमाचल को बेचने जैसे संगीन आरोप लगाये गए हैं वहीँ धूमल के पुत्र और हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर को अंपायर और स्वास्थ्यमंत्री डा. राजीव बिंदल को कैश कीपर बताया गया है. चुनाव के कुछ माह पूर्व लीक हुई मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की इस तथाकथित चार्जशीट पर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कांग्रेस को ४८ घंटों का समय दिया है कि वह अपना पक्ष जनता के दरबार में रखे. उनका यह भी कहना था कि यदि यह तथाकथित चार्जशीट असली नहीं है तो असली चार्जशीट दो दिनों के भीतर जारी करे कांग्रेस.

 

दूसरी ओर इस सारे प्रकरण को हलके से लेते हुए कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर ने इस कथित लीक हुई चार्जशीट को कांग्रेस का मानने से ही न केवल इंकार कर दिया बल्कि उनका यह कहना है कि बिना किसी नेता के हस्ताक्षर वाली सतपाल सती द्वारा जारी की गयी कथित चार्जशीट हिमाचल लोकहित पार्टी के महेश्वर सिंह, शांता कुमार या फिर भाजपा के निलंबित सांसद और असंतुष्ट नेता राजन सुशांत की हो सकती है जो इस नेताओं ने सरकार के खिलाफ राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को दी थी. इस सारे प्रकरण को भाजपा की चाल बताते हुए उनका मानना है कि यह सब जेपी थर्मल प्रोजेक्ट पर प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा हाल में ही दिए गए एक निर्णय से जनता का ध्यान बंटाने की भाजपा की असफल चाल है. जेपी थर्मल प्रोजेक्ट में हुईं अनियमितताओं में फँस रही भाजपा अब इस प्रकार के शगूफे छोड़ बचना चाहती है जिसे प्रदेश की जनता स्वीकारने वाली नहीं है. उन्होंने बताया कि कांग्रेस द्वारा जारी की जाने वाली चार्जशीट अंतिम चरण में है और इस पर चर्चा कर पार्टी हाइकमान द्वारा इसे राष्ट्रपति और प्रदेश के राज्यपाल को सौंपा जायेगा. उनका यह भी कहना है कि पर्याप्त दस्तावेजी सबूतों के साथ कांग्रेस द्वारा जारी की जाने वाली चार्जशीट भाजपा सरकार के खिलाफ कफन में आखिरी कील साबित होगी. भाजपा पर पलटवार करते हुए कौल सिंह का यह भी कहना है चार्जशीट के जरिए भाजपा द्वारा कांग्रेस का नाम उछालने के विषय में भी कांग्रेस पार्टी कानूनी राय ले रही है.

 

पक्ष और विपक्ष के दावों और खुलासों पर गौर किया जाये तो यह मात्र सनसनी फैलाने के लिए किया गया एक झूठा दावा ही लगता है. एक ओर इस कथित चार्जशीट को कांग्रेस का बताते हुए भाजपा अध्यक्ष का इस पर कानूनी कारवाई करने की चेतावनी देना और वहीँ दूसरी ओर उनका स्वयं यह कहना कि कांग्रेस यह बताये कि यह उसकी है या नहीं यह दर्शाता है कि भाजपा को स्वयं ही इस कथित चार्जशीट का कांग्रेस के होने पर संदेह है. बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि राजनीतिक आरोपों पर कानूनी कारवाई कैसी ? क्या इस प्रकार के आरोप भाजपा नहीं लगाती कांग्रेस पर ? हाँ, आरोप लगाते हुए भाषा और मर्यादा का ख्याल विशेष रूप से रखा जाये ऐसा प्रयास सभी दलों के नेताओं को करना चाहिए. राजनीतिक अपरिपक्वता और संगठन के कार्य के अनुभव के आभाव के चलते ही भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष ने अपने मंच से कांग्रेस की कथित लीक हुई चार्जशीट को स्वयं जारी कर सनसनी फैलाने का कृत किया. इससे भाजपा क्या हासिल करना चाहती थी या ऐसा कर उसे अंततः हासिल क्या हुआ, यह चिंतन करने की आवश्यकता है. व्यक्ति विशेष या सत्ता से नहीं बल्कि भाजपा नामक दल से इमानदारी से जुड़े गंभीर राजनीति में विश्वास रखनेवाले कार्यकर्ताओं ने इसे कदाचित भी पसंद नहीं किया होगा. तर्क के लिए यदि यह मान भी लिया जाये कि यह कथित चार्जशीट असली है तो क्या कांग्रेस इस तथ्य को कभी स्वीकारती ? और हुआ भी ऐसा ही. सूत्रों की माने तो एक बार तो हिमाचल कांग्रेस पार्टी स्तब्ध सी होकर रह गयी थी कि उसके घर में सेंध कैसे लगी ? कौन है वह काली भेड़ जिसने विभीषण बनने का कार्य किया ? गुटबाजी के दलदल से उभर रहे मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के कई नेताओं पर विभिन्न कड़ियाँ जोड़ने का प्रयास करते हुए शक की सुई टिकाने का प्रयत्न किया जाने लगा. परन्तु शाम ढलते-ढलते स्थिति स्पष्ट हो चुकी थी और कांग्रेस ने जवाब देने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया और वही हुआ जो सबको पहले ही से पता था. कांग्रेस ने इसे अपनी चार्जशीट बताने के आरोप को सिरे से ही नकारते हुए भाजपा की तर्ज पर उसका नाम उछालने पर कानूनी सलाह का शगूफा छोड़ दिया.

 

अँधेरे में गाना गाकर डर से बचने जैसी चेष्ठा लगती है भाजपा की इस चार्जशीट प्रकरण में. वैसे संशय और रक्षात्मक रुख का आभास भाजपा और कांग्रेस में क्रमशः स्पष्ट हो रहा है. असली नकली चार्जशीट के चक्रव्यूह में चक्कर काट रहे इन दोनों दलों ने क्या खोया क्या पाया इसकी गणना करना अब इनका काम है. हाँ, आरोप-प्रत्यारोप के इस नए दौर में जनता का मनोरंजन तो अवश्य ही हुआ है. प्रदेश के निष्पक्ष और प्रबुद्धजनों का तो यह मानना है कि कांग्रेस को तथ्यों सहित मजबूत आरोपों और अनियमितताओं का आरोपपत्र जनता के समक्ष रखने का समय मिल गया है जिसका लाभ कांग्रेस को अवश्य ही उठाना चाहिए यही विपक्ष का कर्तव्य है और स्वस्थ लोकतंत्र का तकाजा.

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विनायक शर्मा
संपादक, साप्ताहिक " अमर ज्वाला " परिचय : लेखन का शौक बचपन से ही था. बचपन से ही बहुत से समाचार पत्रों और पाक्षिक और मासिक पत्रिकाओं में लेख व कवितायेँ आदि प्रकाशित होते रहते थे. दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा के दौरान युववाणी और दूरदर्शन आदि के विभिन्न कार्यक्रमों और परिचर्चाओं में भाग लेने व बहुत कुछ सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ. विगत पांच वर्षों से पत्रकारिता और लेखन कार्यों के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर के अनेक सामाजिक संगठनों में पदभार संभाल रहे हैं. वर्तमान में मंडी, हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक समाचार पत्र में संपादक का कार्यभार. ३० नवम्बर २०११ को हुए हिमाचल में रेणुका और नालागढ़ के उपचुनाव के नतीजों का स्पष्ट पूर्वानुमान १ दिसंबर को अपने सम्पादकीय में करने वाले हिमाचल के अकेले पत्रकार.

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  1. आग लगाना एक पुण्य कर्म है| वेटे की अपने वाप से कितनी भी “खुन्नस” क्यों न हो लेकिन मुखाग्नि देना उसका पहला हक माना जाता है और इसी धर्म का पालन करने पर उसे अपने पिता का पुत्र होने का एहसास होता है| वेशक जीते जी वेटे ने बूढ़े वाप को घर से भी क्यों न निकाल दिया हो लेकिन दाह संस्कार के उपरान्त उसे पुश्तैनी रुतवा हासिल हो ही जाता है| इसी तरह अपने विभाग के दफ्तर में आग लगवाने के बाद तो चौकीदार भी उन “साहबों” के लिए हीरो ही होता है जिनकी करतूतें उस कार्यलय की नस्तियों में दफन होती हैं| शिमला जैसे काष्ठ इमारती शहर में तो किसी रिकार्ड भवन में आग लगाना सचमुच स्वर्ण पदक झटकने के सामान है| पैसे लेकर मनमर्जी के वन कटान की अनौपचारिक इजाजत देने वाले वन महकमें के कार करिंदों के लिए भी वन विभाग की लाइन फायरिंग की वार्षिक क्रिया बड़ी ही फायदेमंद हैं क्योंकि इसी वहाने अवैध कटान के ठूंठ भी अपने आप ही भस्म हो जाते है और फिर “पुराने पापों” के सुराग सिर्फ आग लगवाकर ही मिट जाएँ तो वन अधिकारी से लेकर मंत्री तक भी छानवीन करने जंगल में पधार जाएँ तब भी वे सबूत के तौर पर कुछ नहीं प्राप्त कर सकेंगे| लेकिन अगर विभाग पंचायती राज का हो तो आग लगाने से मुद्रा भी बरसती है| मनरेगा के तहत झाडियाँ उखाड़ने के लिए जो राशि किसी गाँव को आवंटित हो, उसका अगर दसवां हिस्सा भी ढंग से इस्तेमाल करके सिर्फ एक ही व्यक्ति को उन झाडियों में आग लगाने के लिए मुकर्रर किया जाए तो कितनी आमदनी होगी? सोचिये जरा!

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