कविता

“आप” हुए मदहोश

poetry 

 आम आदमी के लिए, कौन आम या खास।
तोड़ा है सबने सुमन, आम लोग विश्वास।।

आम आदमी नाम से, बना सुमन दल एक।
धीरे-धीरे खो रहा, अपना नित्य विवेक।।

दांव-पेंच फिर से वही, वही पुराना राग।
आम आदमी पेट में, सुमन जली है आग।।

बड़बोले, स्वारथ भरे, जुटे अचानक लोग।
आम आदमी का सुमन, भला मिटे कब रोग।।

वादे थे अच्छे सुमन, लोग लिया आगोश।
दिल्ली की गद्दी मिली, “आप” हुए मदहोश।।