आप तो ऐसे न थे मुनव्वर राणा

4
186

ranna” दंगे का समय था | मुल्क में हवा भी डर कर बह रही थी | पर मेरा दरवाजा सुबह ४ बजे खुलता है | किसी ने मुझसे कहा कि आजकल मुल्क का माहौल ठीक नहीं है | आप अपने घर का दरवाजा बंद रखा कीजिये | मैंने जबाब दिया “आप चिंता मत कीजिये जनाब | मैं 76 करोड़ हिन्दुओ की निगरानी में रहता हूँ |”
“बाबरी कोई मक्का मदीना नहीं है | इसकी वजह से मुल्क १० साल पीछे चला गया | ”

“ शिवाजी को हम कट्टर मुस्लिम विरोधी के तौर पर देखते हैं | जबकि वो इतने अच्छे और चरित्रवान थे की उन्होंने गौहरबानो को माँ का दर्जा दिया था जो कि उनके दुश्मन की पत्नी थी | आज इतिहास में हम ये नहीं पढ़ते | क्युकि जो इतिहास हम लोग पढ़ते हैं वो हमारा नहीं है | इस मामले में हम विदेशियों पर निर्भर हैं | हमें खुद अपना इतिहास लिखना होगा | ”
“मक्का मदीना आज इतने सक्षम हैं जो खुद अपना खर्चा चला पा रहे हैं | पहले इनकी इतनी औकात नहीं थी जो खुद का खर्चा भी उठा सकें | काबे की सुरक्षा का इन्तेजाम हैदराबाद का निजाम की जिम्मेदारी थी | निजाम वहां का सारा खर्चा उठाया करता था | ”
ये सारे बयान पढ़कर क्या लगता है आपको ? यही न कि किसी संघी ने ये बाते कहीं हैं | या ये किसी भाजपाई के बयान हैं | अगर वाकई आपको लगता है कि ये किसी संघी के उद्गार हैं तो माफ़ कीजियेगा आप बिलकुल गलत हैं | ये उद्गार व्यक्त किये हैं प्रसिद्ध शायर मुन्नवर राणा ने | दिनांक 23 सितम्बर 2014, स्थान कामराज ऑडिटोरियम वेल्लोर इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, वेल्लोर, तमिलनाडु | हिंदी लिटरेरी असोसिएशन के कार्यक्रम में राणा साहब आये हुए थे | विद्यार्थियों के बीच बोलते समय उन्होंने पाकिस्तान को भी जमकर ललकारा | मैं उस वक्त वहीँ श्रोताओं में उपस्थित था | ये सारे बयानात मैंने वही बैठकर कलमबद्ध किये थे |
उन्हीं आज राणा साहब को ABP न्यूज़ पर सुना | सहसा आखों पर विश्वास नहीं हुआ | क्या ये वही साहित्यकार हैं जिन्हें मैंने महज साल भर पहले सुना था | जो शख्स खुद को संघियों से बड़ा राष्ट्रवादी बताता रहा हो वो साहित्यकार आज कह रहा है कि “गर मुस्लमान पटाखा फोड़ दे तो आतंकवादी हो जाता है ?” जाहिर है ये उन्होंने मेनन के लिए कहा है | तो क्या मुंबई बम विस्फोट राणा साहब के लिए महज पटाखा भर है ? आप तो प्रखर राष्ट्रवादी थे सर | आपने तो सिन्धु पर लिखा कि “जहाँ से ये गुजरे समझो हिन्दुस्थान है |” आज उसी हिन्दुस्थान में बैठ कर आप हिन्दू मुसलमान करने लग गए ? क्यों सर क्यों ?
आज तक मैं समझता था कि एक शायर जिसने माँ पर लिखा हो, जिसने खुद मुस्लिम होकर शिवाजी को समझा हो कम से कम वो देश में सोचे समझे प्रायोजित बोद्धिक आतंकवाद की भर्त्सना करेगा | उन लेखकों का विरोध करेगा जो साहित्य की आड़ लेकर अपनी राजनैतिक रोटियां सेक रहे हैं | पर आप भी उसी गुट के हाथों की कठपुतली बन गए ? ऐसी कौन सी मजबूरी है जो आपको उन कथित साहित्यकारों का साथ देने को मजबूर कर रही है जिनकी रोटियां फोर्ड के चंदे से चलती है ? आप तो फकीर थे आप तो ऐसे न थे | या ये मान मान लिया जाये कि बाकियों की तरह आप की भी अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा है | क्या ये मान लिया जाये कि आज आप भी सत्ता की उस नाली में बहने को बेताब हैं जिस नाली में बहना आपको नापसंद था ?
दादरी की घटना पर पुरे हिन्दुस्थान का मत साफ़ है | हर कोई दु:खी है अखलाक के मरने पर | अपने दुःख को सभी व्यक्त कर रहे हैं | आप भी कीजिये | पर जायज तरीके से कीजिये | यूँ सुर्खियाँ बटोरने के लिए बिग बॉस वाले ड्रामे मत कीजिये | आप कलम के सिपाही हैं आप कलम उठाइए | देश में प्रशांत नाम का लड़का भी मरा है | कुछ उस पर भी विचार कीजिये | सत्य लिखने का साहस कीजिये | अन्यथा जो कलम सत्य नहीं लिख सकती फिर उस कलम का टूट जाना ही बेहतर है | आशा करता हूँ आप मेरा आशय समझ रहे होंगे |

4 COMMENTS

  1. मुन्नवर राणा ने जो न्यूज़ चेनल के न्यूज़ कक्ष में इतना बड़ा नाटक किया – वह सब से निराला था । वे बड़े ही सुनियोजित ढंग से गए, शोर किया – सम्मान और एक लाख का चेक वहाँ रख दिया जैसे कि सम्मान अकादमी ने नहीं न्यूज़ चेनल ने दिया हो । साथ में हमारे मित्र श्री नन्द भारद्वाज भी थे । उन्हों ने भी अपना सम्मान लौटाया लेकिन अकादमी को। राणा जी से किसी को यह आशा नहीं थी कि वे इतना शोर करेंगे । वैसे साहित्यकारों से कोई नहीं पूछ रहा कि आखिर उन की नाराजगी किस से है – सरकार से या अकादमी से। यदि सरकार से है तो कौन सी सरकार से – राज्य की सरकार से अथवा केंद्र की सरकार से। चलिये किसी भी सरकार से हो – लेकिन किस बात पर है नाराजगी । वे कहते हैं देश का माहौल बिगड़ गया है । लेकिन ठीक कब था ? हम मानते है – माहौल तो बिगड़ा है – देश में शांति और सुरक्षा समाप्त हो गई है । क्या यह आज की घटना है ? इस के लिए कौन जिम्मेदार है ? आप किसी भी राज्य को देख लें – वहाँ किसी भी पार्टी की सरकार हो – दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, …… सब जगह एक जैसा ही वातावरण है । उ प्र में किसी भी तरफ निकाल जाओ – चेन, पर्स छिनना साधारण सी बात है कहीं कानून का कोई डर नहीं । लेकिन कोई भी साहित्यकार खड़े होकर सरकार से कुछ नहीं पूछता। यह कहना कि देश का माहौल खराब हो गया है – यह आज की नई घटना नहीं है ? इस के लिए किस की ज़िम्मेदारी है ? हवा में लाठी भाँजने से कोई समस्या हल नहीं होगी …………………..

    • साहित्यकारो की नाराजगी वस्तुतः केंद्र सरकार से है । वो भी उनकी विचारधारा के कारण । पर सहारा साहित्य अकादमी का लिया जा रहा है ।

  2. No one ever says why Dadari happened The muslim killed became pakistani agent and cow thief no one blaming his acts shame on media and writers.

  3. मधुसूदन जी का कमेन्ट था सुबह | तब प्रतिउत्तर नहीं दे सका | माफ़ी चाहूँगा उसके लिए |
    भाईसाहब ये मैंने उनके फेसबुक पर भेज दिया है | जबाब शायद ही आये |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here