आप सदा भारतीयों के दिल में रहेंगे नरेश भारतीय जी

विश्व-प्रसिद्ध लेखक हिंदी लेखक को प्रवक्ता-डॉट-कॉम परिवार की ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजलि

संजीव सिन्हा जी

नई दिल्ली: नरेश भारतीय ऊर्फ नरेश अरोड़ा हिन्दी साहित्य के एक ऐसे नाम रहे जो केवल भारत ही नहीं,
बल्कि भारत के बाहर भी अपनी कलम के दम पर प्रसिद्ध रहे। अब वह हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन कहते हैं
हर शब्द ब्रह्म है, चाहे वह लेखनी में हो, या उच्चारित हो, इन फ़िज़ाओं में उसी रूप में विद्यमान होता है।
महान पुरुषों की अमरता के पीछे भी यही तार्किक भी है, क्योंकि वो प्रकृति को उसी रूप में आने वाली पीढ़ियों
को संस्कारपूर्वक दे चुके होते हैं और उसका भुगतान ये प्रकृति उन्हें करती है और वे आने वाली सदियों के लिए
अमर हो जाते हैं। आदरणीय श्री नरेंद्र भारतीय जी ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक रहे। एक लम्बे
अरसे से बी.बी.सी. रेडिया हिन्दी सेवा से जुड़े रहे। उनके लेख भारत की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।
पुस्तक रूप में वह लेख संग्रह `उस पार इस पार' के लिए पद्मानंद साहित्य सम्मान से वर्ष 2002 में सम्मानित
भी हुए। उनके इस संकलन की विशेषता यह है कि उनके जो लेख पहले पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे,
उन्होंने संकलन में आवश्यक बदलाव करने में कोई गुरेज़ नहीं किया। हिन्दी लेखकों के लिए यह एक
अनुकरणीय कदम है। वर्ष 2003 में आतंकवाद पर उनकी पुस्तक `आतंकवाद' प्रकाशित हुई। आदरणीय श्री नरेश
भारतीय जी में एक छंद-कवि भी मौजूद रहा जिनके दोहे आज भी कई पत्रिकाओं में हैं, उनके संकलन में हैं।
किन्तु उनके लेख उनकी प्रिय विधा रही, जिसकी सुंदर-अक्षरित रौशनाई ने विदेश से कभी भारतीय संस्कार को
झकझोरा, तो कभी भारतीय व्यवस्था को, तो कभी आंतकवाद को, तो कभी राजनीतिक वर्णवाद को… वह किसी
भी प्रकार की साहित्यिक राजनीति से दूर निरंतर लेखन में व्यस्त रहे। लेखनी की धारा ऐसी कि मानो हर शब्द
कह रहा हो कि हम ध्यान में हैं, हमें मत छेड़िए। उनके पहले उपन्यास ‘दिशाएं बदल गईं’ का विमोचन भारत
की राजधानी दिल्ली में ही किया गया।प्रवक्ता डॉट कॉम के इस लेख का हर शब्द आज प्रवक्ता डॉट कॉम परिवार की ओर से श्री नरेश भारतीय जी
को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है, क्योंकि प्रवक्ता डॉट कॉम के साथ उनका भावुक भरा सफर रहा।
18 अक्टूबर 2013 को जब श्री भारतीय ब्रिटेन से प्रवक्ता डॉट कॉम के वार्षिक समारोह में भाग लेने दिल्ली आ
रहे थे तो उन्होंने इससे पहले 10 अक्टूबर 2013 को हमारे प्रवक्ता डॉट कॉम के संपादक श्री संजीव सिन्हा जी
को एक शुभकामनाओं भरा पत्र लिखा, जो आप सबों के बीच प्रस्तुत हैःवह जब 18 अक्टूबर 2013 को प्रवक्ता के उस कार्यक्रम-मंच पर आए, और उनका परिचय हुआ तो मानो वहमंच सुशोभित और हर्षित हो उठा। उस कार्यक्रम में उपस्थित सैंकड़ों पत्रिकार प्रफुल्लित हुए और फिर प्रवक्ता
डॉट कॉम के लिए उनका हर शब्द मानो आज भी कानों में गूंज रहा हो, मंगलकामनापूर्वक कह रहा हो कि हां
प्रवक्ता डॉट कॉम के लिए वह एक महान व्यक्तित्व की वाणी थी… जिन्होंने हमें आत्मविश्वास का दंभ भरा…
ढेरों आशीर्वाद दिए… प्रवक्ता डॉट कॉम पर उनके लेखों का संग्रह आज पढ़ रहा था तो एक आह निकली कि
अब उस महान शब्दपुरोधा की कलम से और भी सुंदर रचनाएं पढ़ने को नहीं मिलेंगी… लेकिन तुरंत बाद ही एक
अश्रु-भाव प्रकट होता है जो कहता है प्रवक्ता डॉट कॉम पर उनके लेख सदियों तक अपने अमरत्व का एहसास
कराती रहेगी। जो आने वाली पीढ़ियों को बताती रहेगी कि एक महान शख्स ने अपने शब्द से भारत को एक
सीख दी कि ‘ऐसे इतिहास को बदल डालो’ –
युग बदल रहा है
बदल रही है सोच
आने वाली है अंततः होश
विस्मरण नहीं अब राष्ट्रवीरों का
सम्मान, अभिवादन, सादर नमन

2 COMMENTS

  1. श्री प्रभु जी से दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते मैं नरेश भारतीय जी द्वारा प्रवक्ता.कॉम पर प्रस्तुत लेखों के सूची में उनकी निष्ठावान भारतीयता की भीनी-भीनी प्रशंसा करता हूँ| मई ६, २०१४ को कहे उनके विचार, “सही मायनों में रामराज्य ही देश के शासकीय नेतृत्व का संबल बन सकता है, क्योंकि भारत में यही सर्वपंथ समभाव संरक्षक राजधर्म है|” मानों केंद्र में युगपुरुष मोदी जी के आगमन का स्वागत था| नरेश भारतीय जी की पुण्य स्मृति में क्यों न उनके लेख-संग्रह का एक विशेषांक प्रस्तुत किया जाए!

  2. व्यक्तिगत परिचय ना होते हुए भी आप की टिप्पणियों से परिचय हुआ ही था.
    हिन्दी की सेवा में आप का परिश्रम सदैव प्रेरणा देता रहेगा.
    ईश्वर दिवंगत आत्मा को परम शान्ति प्रदान करे.

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