दीपक तले अंधेरे की तर्ज पर प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के उद्देष्य से सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा सम्पूर्ण भारत में का बुलावा होता है, इस बार भी हो रहा है, लेकिन समझने योग्य और विमर्श का मुद्वा यह है, कि इन कोशिशों के बावजूद सड़क दुर्घटनाएं है, कि कम होने का नाम नहीं ले रही है। फिर सवाल उठना लाजिमी और बुनियादी भी है, कि खामी आखिर किस तह पर व्याप्त है, युवाओं की सरपट भागती गाड़ियाॅ, परिवार के लोग जो अपने नाबलिग बच्चों के हाथों में मौत की चाबियाॅं सौंपते है, या प्रशासनिक अमला। जो सड़क दुर्घटनाओं पर रोक लगाने में खानपूर्ति के रूप में नियमों को लागू कर पाता है। दोष कही न कही सबसे पहले उन परिवारवालों का है, जो अपने नवजवान बच्चों की जिद् के आगे घुटने टेक देते है, और उन बच्चों को सड़क पर खूनभरी नंगी दौड़ दौड़ाने के लिए गाड़ी थमा देते है। जब देश में कानून का अपना एक निश्चित दायरा होता है, फिर सड़क सुरक्षा के कानून को तोड़ने की पहली प्रक्रिया यही से शुरू होती है, परिवारजन चाबी तो बच्चों को थमा देते है, लेकिन शायद सड़क सुरक्षा और जीवन रक्षा के मूलभूत सिद्वांत सिखाना भूल जाते है, या लाजिमी नहीं समझते है। फिर चक्र चालू होता है, मौत के दौड़ का, रफ्तार जल्दी मौत को गले बांधने का। युवा पीढ़ी अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की दौड़ में पिछड़ता नहीं देख सकता है, यह उसकी मनोवैज्ञानिक रूचि बन चुकी है, फिर वह सड़क पर रफ्तार का जादूगर बनने की फिराक में अपने मित्रों से रेस लगाता है, और कहीं न कहीं उसकी एक भूल परिवार को सदमें में ढकेल देती है।
सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार प्रशासनिक अमला भी है, जो सड़क सुरक्षा के नियमों से सख्ती से लागू करने में विफल रहता है। दूसरी सबसे दुखती रग यह है, कि तमाम सुरक्षा मानकों के होने के बावजूद भी जागरूकता का अभाव साफ स्पष्ट नजर आता है। जब कभी ऊंट पहाड़ के नीचे पड़ता है, फिर जागरूकता की सुध जनता लेती दिखती है। सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान लोगों को जागरूक करने की सभी कवायदें की जाती है, फिर सवालिया निशान यही छूट जाता है, इस अभियान के तले से प्रत्येक वर्ष सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी कहां से हो जाती है। इस बार मनाये जा रहे सड़क सुरक्षा आयोजन में परिवहन राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने खुद जानकारी दी, कि हर वर्ष भारतीय राजमार्गों पर लगभग पांच लाख दुर्घटनाएं होती है, और इन दुर्घटनाओं में करीब डेढ़ लाख अकाल काल के मुख में विरामान हो जाते है। मंत्री के अनुसार देश में हर मिनट एक सड़क दुर्घटना होती है, और प्रत्येक चार मिनट पर एक व्यक्ति अकाल काल से लिपट जाता है। इन आकांड़ो के बावजूद न तो देश की जनता सड़क सुरक्षा कानून के प्रति जागरूक दिखाई पड़ती है, न उसको पालन करने वाले अभियंता, फिर मुद्वा यही प्रज्वलित होकर दहकता रहता है, कि देश की आबादी कब अपने जीवन को लेकर सचेत होगी, और अगर वह अपने और अपने स्नेहीजनों का ख्याल रखने में अपने आप को नाकाफी पाती है, फिर वह सामाजिक जिम्मेदारियों को कैसे वहन कर सकती है। देश के विकसित स्वरूप के साथ जो सड़क सुरक्षा को लेकर संस्कृति का पनपना जरूरी था, वह आज तक देश में देखने को नहीं मिल रहा है। हाल में सुप्रीम कोर्ट से सड़क सुरक्षा को लेकर राष्ट्रीय राजमार्गाें पर शराब के ठेके को अप्रैल से बंद करने का फरमाना सुक्षाया है, लेकिन इस फरमान का भी पैसों के ठेकेदार उचित तरीके से पालन करते दिखेगें, वह भविष्य के गर्भ में छिपा तथ्य है, फिरहाल वर्तमान समय में युवा और देश की जनता अपनी संजीदगी के अभाव में मौत को गले लगाने में पीछे नहीं दिख रहें है।
सड़क सुरक्षा के नियमों को धत्ता बताकर अपनी शान की जिंदगी के पीछे युवा अपनी जान गंवा रहा है। शराब पीकर गाड़ी चलाना, और तमाम विज्ञापनों आदि को नजरअंदाज करके गाड़ी चलाते वक्त दुर्घटना की मुख्य वजह है। आज सड़क पर चलने वाले अस्सी फीसद वाहन चालकों को यातायात नियमों की भलीभाॅति जानकारी ही नहीं है, इसके लिए जिम्मेदार प्रशासन व्यवस्था है, जो लाइसेंस प्रणाली में नियमों का पालन सही मायने में करवाती ही नहीं है। रिश्वत लेकर लाइसेंस देने की खबरें भी अखबारों का हिस्सा बनती रहती है। पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने मोटरयान सशोधन विधेयक 2016 मेें कुछ कड़े प्रावधान किए है, जिससे सड़क हादसों में कमी की उम्मीद जगती दिख रही है। नेशनल क्राइम व्यूरों की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में जो आकांड़ा जारी किया गया है, उसके मुताबिक 2014 साल के मुकाबिल 2015 में पांच फीसद घटनाएं बढ़ी है, और लगभग एक लाख 48 हजार जिंदगियाॅ कुरबान हुई है। इन तथ्यों के विश्लेषण से एक बात यह निकलकर सामने आती है, नियमों के निर्माण और जागरूकता सप्ताह का आयोजनभर इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए काफी सिद्व नहीं होने वाला है, इसके लिए एक व्यापक निगरानी तंत्र की जरूरत है, जिससे नियमों को सही दिशा में क्रियान्वयन हो सके, और युवा और परिवारजनों को भी जागरूकता दिखानी होगी, तभी देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं से निजात मिल सकती है, इसके साथ नाबालिग बच्चों के हाथों से वाहनों को दूर रखना ही समझदारी भरा रवैया हो सकता है। इसके साथ युवाओं को भी सड़क पर जोश से नहीं होश से काम लेने की आवश्यकता है। नीति के निर्माण से कार्य सफल नहीं होता है, उसके सफल कार्यान्वयन से ही सफलता अर्जित की जा सकती है।