
विवेक कुमार पाठक
कुछ उम्मीदें हर पल होनी चाहिए
जिंदगी है तो खुलकर जीना चाहिए
भले हो रात हसीन सपनों वाली
पर जिंदा रहने सुबह तो होनी चाहिए
माना तुम्हे पसंद है चाय मीठी वाली
पर कभी कॉफी तो पीनी चाहिए।
पसंद है लिखावट सबको साफ सुधरी
कभी तो बेतरतीब होना चाहिए
माना अमीरी चाहत है सभी की
कभी तो फकीरी होना चाहिए।
जिंदगी है तो खुलकर जीना चाहिए।
चलो हकीकत है कि हम हैं दूर तुमसे
कभी तो याद करना चाहिए
सरपट चलती रहे जिंदगानी सबकी
कभी तो सीटी बजना चाहिए।
वो खुशियां चाहते हैं हर दिन
मगर कभी तो रोना चाहिए
भले हो पसंद तुमको मुंह फेरना
कभी तो आंखें चार करना चाहिए
जिंदगी है तो खुलकर जीना चाहिए।
चला करते हो हो तुम अकड़कर
कभी तो झुकना चाहिए
हां जाते हो हरदिन टाइम पर
कभी बेटाइम हो जाना चाहिए
हमेशा देखते हो तुम उन्हीं को
कभी तो उनको देखना चाहिए
जिंदगी है तो खुलकर जीना चाहिए।
गिराते रहे हैं वे सभी को
कभी आके उठाना चाहिए।
सुबकना छोड़ना भी सीखो किसी से
कभी तो खुलकर रोना चाहिए।
हमेशा खाते रहे हो अपनी पसंद से
कभी उनकी भी पसंद होना चाहिए
जिंदगी है तो खुलकर जीना चाहिए।
रहा है वो समंदर जैसा ही हमेशा
कभी तो कुए सा मीठा होना चाहिए
दुपट्टा डाला करती हो हमेशा नीला
कभी तो लाल भी दिखना चाहिए
वो बाजार चलते साथ है बीबी तुम्हारी
कभी तो बूढ़ी मां भी होना चाहिए
जिंदगी है तो खुलकर जीना चाहिए
हमेशा से ही कैद करते हैं सभी तो
किसी को तो पिंजरा खोलना चाहिए
केवल चाहते हैं सभी अपने ही लोगों को
कभी तो गैरों को भी चाहना चाहिए
जिंदगी है तो खुलकर जीना चाहिए।