हे कामदेव! तुम्हें रति की कसम! सच सच बतलाना!! इस द्वीप में अब तुमको क्या युवा नहीं मिल रहे जो तुमने अब संसार से विरक्तों पर भी अपने कामबाण चला उन्हें अपवित्र करना षुरू कर दिया ? माना, आज की भाग दौड़ की जिंदगी में बेचारे युवा युवा होने से पहले ही बुढि़याए जा रहे हैं। उन्हें अपनी जवानी का अहसास ही नहीं हो रहा! वे भी क्या करें बेचारे! चारों ओर दोपहर को भी रोशनी की एक किरण तक उन्हें नहीं दिख रही। बस, चारों ओर टाचेर्ं बेचने वालों की आवाजों से वे बहरे हुए जा रहे हैं। सड़क से लेकर संसद तक दिन के बारह बजे कुछ बिक रहा हो या न, टार्चें धड़ा धड़ बिक रही हैं। उन्हें घर ले जाकर जब जलाने लगते हैं तो पता चलता है कि टार्च में मसाला तो खत्म है।
हे कामदेव! काम पर तुम्हारा एकाधिकार होने से इसका मतलब तो यह कदापि नहीं हो जाता कि तुम हर किसी पर बिना सोचे समझे अपने काम के बाण चलाने लग जाओ! अरे कामदेव! ये तो कोर्इ बात नहीं हुर्इ कि तुमको अगर अपने तरकश के बाण सरकारी बजट की तरह खत्म करने ही हैं तो जहां मन किया उस ओर दे मारे। तुमने तो सरकारी बजट की तरह अपने तरकश से बाण निकालना था सो निकाल़ दिया बस! और हो गर्इ कर्तव्य की इति श्री! देखो न, अबके तुम्हारे बाण से किसे आहत करने का हल्ला है?
अरे कामदेव!तुम नहीं जानते आज के मूल्यहीन, अनैतिक होते समाज में ये हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। इन्हें तो कम से कम अपने बाणों से न बिंधो! सच कहें तो जबतक सुबह टीवी पर इनके दर्शन न हो जाएं चारपार्इ से जमीन पर पांव रखने को मन ही नहीं होता। इस द्वीप जो तुम थोड़ा बहुत धर्म का नाटक देख रहे हैं न ये इनकी कृपा का ही प्रसाद है। तथाकथित नपुंसकों को बाजार में अपने वीर्यवर्धक उत्पाद निरंकुश बेच मालामाल होने दो! असल में धर्म के फोरलेन से ही अर्थ और काम का रास्ता आजकल गुजरता है और कारावास में जा समाप्त हो जाता है।
इसलिए खुद मोह माया से परे होने वालों से शादी से पहले, शादी के बाद निराश हताश जनता को इनके स्टाल से मुस्कुराहट के नुस्खे बिन रसीद खरीदने दो! विवाह हो या न, पर सुखी वैवाहिक जीवन यहां कौन नहीं चाहता?
रे कामदेव!तुम तो इन्हें अपने बाणों से बदनाम कर इनका बाजार ही बंद करवाने पर तुल गए। आज एक यही तो एक ऐसा बाजार इस द्वीप पर बचा है जहां मंदी की बात नहीं होती! जो दिन को तो खुला ही रहता है , रात को उससे भी अधिक खुल जाता है। दूसरे बाजार में तो आटे तक को हाथ डालने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है। पर आस्था के उपभोक्ता होते हैं कि आंखें बंद किए, मोक्ष की राह तकते बैंक से आस्था खरीदने को उधार ले उनके बैंक खातों को निर्विकार भरने लाइन में लगे रहते हैं। न गर्मी में लू की परवाह न सर्दियों में नमोनिया होने का डर! वे हैं कि आस्था की चाशनी लगा बाजार में जो भी उत्पाद उतार दें अगले ही दिन आउट आफ स्टाक!
हे काम!तुमसे हाथ जोड़ बस यही विनती है कि कामबाण चलाने से पहले देख लिया करो कि किस पर कामबाण चला रहे हो ! कल को ऐसा न हो कि ये बाजार भी बंद हो जाए। वहां भी मंदी आ जाए! अगर ऐसा हुआ तो देख लेना धर्म का बाजार तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा।
अरे कामदेव! जो हर कहीं आंखें बंद कर बाण चलाने का इत्ता ही शौक है तो लो ! मैं छलनी छलनी तुम्हारे आगे हूं। मेरा क्या! मुझ निष्प्राण पर बाण तुम्हारा भी सही। पर इन पर तो रहम करो कामदेव! ये तुम्हारे बाणों से बिंधे बिना ही कौन से कम हैं! इनके नवधर्म के आसरे ही तो हम जो थोड़े बहुत तुम देख रहे हैं , चल रहे हैं। निरामय जीवन जीवन अब नहीं, अब तो छलामय जीवन ही वास्तविक जीवन है। इनके बिना तो मर्म,धर्म, कर्म सब ग्लैमरहीन हो जाएगा कामदेव!
अशोक गौतम,