डा.राज सक्सेना
कुर्सी ही श्रेष्ट बन गई, कलि के कराल पर |
कितने ही ताज सज गए,गिद्धों के भाल पर |
सम्पूर्ण कोष चुक गया बाकी रहा न कुछ,
नेता की आंख गढ गई, वोटर की खाल पर |
इस गंदगी के खेल को, कहते हैं राज-नीति,
आकंठ सन गए सभी , कीचड़ उछाल कर |
शहीदों ने अपने रक्त से, ज़िंदा रखी थी जो,
रिश्वत की राख डालदी , बुझती मशाल पर |
भृष्टों के झुण्ड भृष्टता, करते पकड़ गए ,
बेशर्म जेल भी गए , सीना निकाल कर |
पक्के सबूत मिल गए, फिर भी बरी हुए,
हैरां हैं आज तक सभी , उनके कमाल पर |
सियासत के रंग देखिए सबसे अलग हैं राज’,
कउए भी हंस बन गए,खादी को डाल कर |
जोरदार कविता बधाई