बी एन गोयल
“चटर्जी साहब, देख भाल कर काम कीजिये ऐसा न हो नौकरी से हाथ धो बैठे”
“प्रसाद साहब, अपनी चिंता करो – वाले हैं. यहाँ के बाद आप को नौकरी की मुश्किल पड़ेगी. मेरी फ़िक्र मत करो, मेरास्तीफा हमेशा मेरी जेब मैं रहता है, आज भी तीन युनिवार्सिटी की वाईस चांसलरशिप की ऑफर मेरे पास है.”
‘अरे रे आप तो बुरा मान गए – मैं तो मजाक कर रहा था’
‘परन्तु प्रसाद साब मैं बिलकुल सीरियस हूँ …….’
ये हैं आपात काल में सूचना प्रसारण मंत्रालय में चल रही एक विशेष मीटिंग में सह सचिव आर एन प्रसाद IPS और आकाशवाणी के तत्कालीनमहानिदेशक पी सी चटर्जी के बीच बातचीत के अंश. पूर्णतः सत्य.
आपातकाल एक ऐसा युग था जब हर आफिस में, संस्था में, मीटिंग में, पान की दूकान पर, चाय के खोखे पर, थोडा भी भ्रमहोने पर पुलिस को डंडा चलाने की छूट दे दी गयी थी. हरकिसी को पुलिस वाला एक जासूस लगता था. जनताकी हंसने हंसाने, तंज़ कसने और मजाक करने की आदत छूट गयी थी. लोग कान में भी बात करते डरते थे. आर एन प्रसाद अगर ऐसा बोल रहे थे तो उन के पास यह कहने के अधिकार थे. लेकिनइस का सीधाउत्तर देने का साहस केवल पी सी चटर्जी के ही पास था.
आकाशवाणी के महानिदेशक का पद भारत सरकार के सह सचिवके समकक्ष माना गया है. प्रशासनिकहोते हुए भीयह पद सांस्कृतिक अधिक है. इसी कारण से इस पद को सुशोभित करने वाले लगभग सभी व्यक्तिकला, साहित्य, संगीत आदि के मर्मज्ञ रहे हैं. वी के नारायण मेनन, अशोक सेन, कृष्ण चन्द्र शर्मा भीखू, पी सी चटर्जी, सिविलसर्विस के लोगों में स्व० जगदीश चन्द्र माथुर ICS का नाम प्रमुख है जब की एस एस वर्मा, सुरेश माथुर भी कम नहीं थे. जगदीश चन्द्र माथुर यद्यपि ICS थे लेकिन साहित्यकारों के श्रेणी में भी अग्रगण्य थे.उन्होंने हिंदी ही नहीं सभी भाषाओँ में रेडियो नाटक नाम से एक नयीविधा को जन्म दिया. उन का लिखा नाटक संग्रह ‘भोर का तारा’ इस विधा का सूत्रपात माना जाता है. (बाद में हमारे घनिष्ठ मित्र डॉ जय भगवान गुप्ता ने इस विषय पर पीएच० डी० की). जिलाबुलंदशहर केजेवर नाम के गाँव में जन्मे माथुर साब ने 1939 में अंग्रेजी साहित्य में इलाहबाद विश्वविद्यालय से MA मेंप्रथम स्थान प्राप्त किया और 1941 में ICS. जेवरगाँव ने आकाशवाणी को दो और विभूतियाँ दी – स्व० डॉ राजेंद्र महेश्वरी और स्व०श्री सुरेश गुप्ता. गुप्ता जी मेरे घर के सदस्य की तरह थे उन का निधन अभी अगस्त 2015में हुआ. इन का मेरे बड़े पुत्र पुनीत के विवाह और छोटे पुत्र अमित के कनाडा विस्थापन में विशेष योगदान था. महेश्वरी जी दिल्ली केंद्र पर मेरे रूम पार्टनर थे.
हम आज बात कर रहे है स्व० श्री पी सी चटर्जी की.
आकाशवाणीको एक नयी दिशा, साहस औरबौद्धिकस्तर देने वाले महानिदेशक श्री पी सी चटर्जी (प्रभातचन्द्र) का नाम प्रसारण के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा. इन का घरेलु नाम था (Tiny) टाइनी – मित्र मंडली इन्हें इसी नाम से पुकारती थी. इन्होनेंप्रसारणकाअपना जीवन समाचार प्रभाग से प्रारम्भ किया था. समाचार प्रभाग से ये सीधे केंद्र निदेशक चुने गए थे …..बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि ये चटर्जी अवश्य थे लेकिन येपारंपरिक बाबु मोशाय / भद्र पुरुष नहीं थे.इन्हें बंगला बिलकुल नहीं आती थी. येठेठ पंजाबी थे. पंजाबी बोलने वाले, उर्दू लिखने पढने वाले औरअंग्रेजी में भाषण देने वाले प्रोफेसर थे.इन के पिता लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहेथे. ये लाहौर में पैदा हुए, वहीँ पढ़े लिखे और वहीँ से अपना जीवन शुरू किया. यह एक ऐसा विरोधाभास था जिस का इन्होने प्रायः आनंद भी उठाया. पहला महत्व पूर्ण विरोधाभास –
अप्रैल1967 देश के चौथे चुनाव संपन्न हुए. लोकतंत्र के 20 वेंवर्ष मेंचुनाव परिणाम ने देश के राजनैतिक कैनवास पर सब उल्ट पुलट कर दिया. कांग्रेस कीसीटें364 से घटकर 283 रह गयी. इसी तरह राज्यों में भी दृश्य पलट गयाबिहार, केरल, उड़ीसा, मद्रास, पंजाब उत्तर प्रदेश औरपश्चिम बंगाल में गैर कांग्रेसी सरकारें बनगयी. पश्चिमी बंगाल में सबसे अधिक खराब स्थिति बनी. पहली बार वाम पंथी दलों को सत्ता सुखमिला यद्यपि उन में परस्परझगडे चलते रहे. राज्य में राजनीतिक अस्थिरता चलती रही.आठ महीनों के लिए बांग्ला कांग्रेस के नेतृत्व में यूनाइटेड फ़्रंट ने सत्ता संभाली इसके बाद तीन महीने प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक गठबंधन ने राज किया फिर फ़रवरी 1968 से फ़रवरी 1969 तक एक साल राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा. राज नेता प्रायः अपनी असफलताओं को मीडिया के नाम मढ़ते रहते हैं – उस समय सरकारी मीडिया के रूप में आकाशवाणी एकमात्रसंस्था थी. नयी सरकार ने केंद्र से कलकत्ता रेडियो स्टेशन के डायरेक्टर कोबदलने की मांग की. केंद्र ने पी सी चटर्जी को पोस्ट कर दिया. उस समय राज्य के श्रम मंत्री थेलाहिड़ी साब, उन्होंनेआकाशवाणी से अपना सन्देश प्रसारित करनाचाहा. चटर्जी साब ने नियमानुसार उन से सन्देश का आलेख माँगा, आलेखआ गया. वहनिश्चित रूप से बंगला भाषामेंहोना था. चटर्जी साब ने केंद्र के एकस्टाफ मेम्बर को यह उत्तरदायित्व सौंप दिया कि वे केंद्र निदेशक के लिए हर बंगला आलेख को पढ़ें और उस केअंग्रेजी अनुवाद के साथ निदशकको दें–ये स्टाफ सदस्य बरुनहालदार थे जो बाद में दिल्ली में अंग्रेजी के समाचार वाचक बने और मेरे रिटायरमेंट तक मेरेअच्छेमित्रबनेरहे.वे एक बहुत ही अच्छे इंसान थे. बरुन ने निदेशक को बताया कि आलेख में एक वाक्य है –“अभी तो हमने जो कुछ भी लिया बैलट से लिया अब अगर ज़रूरत पड़ी तो हम बुलेट से भी ले सकते हैं”.
यह वाक्य वास्तव में विचलित करने वाला था. चूँकि एक मंत्रीके प्रसारण का मामला था तो चटर्जी साब ने इसआलेख को महानिदेशालय को भेज दिया. उस समय कोई फेक्स, ई – मेल तो था नहीं फोन सुविधा भी उतनी अच्छी नहीं थी. अतः डाक से आने जाने में समय लगता था.म. न. ने इसे सूचना प्रसारण मंत्री को भेज दिया और अन्ततः लाहिड़ी साहब का यह प्रसारण नहीं हो सका. इस पर उस समय लोक सभा में काफी हंगामा हुआ. इस का परिणाम हुआ कि सू प्र मंत्रालय ने प्रसारण की मार्ग दर्शिका के रूप में नौ सूत्रीय आकाशवाणी प्रसारण संहिता (AIR CODE) बना दी जो अभी भी जीवंत होनी चाहिए. यहघटनाज्यों की त्यों स्वयं चटर्जी साब ने 1968 में हमारे अनुरोध पर हमारी स्टाफ ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की क्लास में सुनायी थी. उस समय वे दिल्ली में विदेश प्रसारण सेवा के निदेशक थे, बादबरुन से मित्रता हुई तो उस ने इस की पुष्टि की थी. …..(क्रमशः…. ….. चटर्जी, अवस्थीजी और मैं)