जब-जब दुनिया में विश्वयुद्ध की भयावह तारीखें आई हैं तब-तब इनकी नींव में सदियों पुराने धर्म व इनकी संकीर्ण व बर्बर सोच के बीज मिले हैं। आज फिर इतिहास दोहराव के कगार पर है जहां धर्म की खूनी जंग छेड़े हुए आईएस से निबटने के लिए दुनियाभर के देशों में गुटबंदी व रणनीति बन रही है। आज धर्मयुद्ध के मुहाने पर खड़ी दुनिया की तस्वीर भयावह हो गई है।
चिर-परिचित सदियों पुराने सड़ चुके धर्म और तमाम पराकाष्ठाओं को लांघती धर्मों की बर्बर संकीर्ण सोच, जिसके कारण सदियों से इस धरती पर बड़ी-बड़ी लड़ाइयां होती रही हैं। आज भी वही कारण है जिसे ले कर दुनिया एक बार फिर विश्वयुद्ध के कगार पर है। विश्व के देशों में आईएस से निबटने की रणनीति तैयार की जा रही है। दूसरे विश्वयुद्ध की तर्ज पर विभिन्न देशों के बीच गुटबंदी शुरू हो चुकी है। एकदूसरे पर जबान और हथियारों से हमले किए जा रहे हैं। सामरिक रणनीतियां परवान चढ़ाई जाने लगी हैं।
इराक, सीरिया, लेबनान, तुर्की, सऊदी अरब, सूडान, लीबिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत समेत कई देश आईएस के निशाने पर हैं। आईएस इन देशों को इस्लामिक राज्य घोशित करना चाहता है और फिर यहां इस्लामिक शरीया कानून थोपने की सोच रहा है। यह बात आईएस कई बार जाहिर कर चुका है। यह कट्टरपंथी संगठन मध्य-पूर्व की प्राचीन धरोहर को नष्ट करने में लगा है। वह दूसरे धर्मों के स्थलों को नेस्तनाबूद कर रहा है। सैकड़ों लड़कियों को अपहृत कर वह उनके साथ बलात्कार, जबरन शादी करता है और उनका धर्म परिवर्तन करा रहा है। वह सीरिया के कुछ हिस्से पर कब्जा कर चुका है जहां उसी की हुकूमत चलती है। अब वह लीबिया में घुस गया है।
एशिया एकमात्र महाद्वीप है जो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान में हुए परमाणु हमले का घाव झेल चुका है। चिंता इस बात की है कि एशिया में कई देशों के पास परमाणु हथियार हैं। रूस, भारत, चीन, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया परमाणु हथियारांे से लैस हैं। मौजूदा समय में एशिया में शक्ति संतुलन के लिए कई देशों में होड़ लगी है। शीतयुद्ध की महाशक्ति रूस सहित चीन और भारत भी महाशक्ति के तौर पर अपना दावा पुख्ता करने में लगे हैं।
2013 में उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण करने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उस पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे। उसके बाद अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने सालाना संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू किया जिसके बाद उत्तर कोरिया ने आरोप लगाया था कि अमेरिका इस क्षेत्र में अपनी शक्ति स्थापित करने के लिए उसे जंग की ओर ढकेलना चाहता है। इस क्षेत्र में धर्म की कट्टरता और खूनी नफरत का फैलाव जारी है।
पश्चिम एशिया में मजहब बड़ी समस्या है। राज्य की पहचान स्थापित करने मुसलमानों और उसकी ताकत दिखाने में वहाबी मुसलमानों और शिया मुसलमानों द्वारा इस्लाम के इस्तेमाल किए जाने का वहां इतिहास रहा है। क्षेत्र में संस्कृति बहुल के लिए कोई विशेष जगह नहीं रही है कि शिया, सुन्नी, यजिदी, कुर्द, तुर्क, ईसाइयों के विभिन्न पंथ हाशमी, बेडूइन और यहूदी शांतिपूर्ण रहे हांे। फ्रांस और ब्रिटेन सहित यूरोप द्वारा उपनिवेश बनाने तथा अमेरिका के हाल के हमले का यहां इतिहास रहा है।
विश्वयुद्ध के लिए विश्वभर में जनमत तैयार होने लगा है। यूरोप के अधिकांश देशों में मुसलमानों को शक की निगाहांे से देखा जाने लगा है और उनसे भेदभाव बढ़ने लगा है। इस्लामिक स्टेट की बर्बरता का जवाब यूरोप या अमेरिका में रह रहे आम मुसलमानों के प्रति अपमानजनक व्यवहार किया जाना नहीं है। पर कट्टरपंथी चाहते हैं कि ऐसा हो ताकि दुनिया इस्लाी और गैरइस्लामी खेमों में बंट जाए ताकि हथियारों में कमजोर मुस्लिम आत्मदाह को हथियार बना कर पश्चिमी देशों में भयंकर भय का वातावरण बना सकें।
अब के युद्ध में और पिछले युद्धों में फर्क यह है कि अब यूरोप और अमेरिका अपने नागरिकों की जान की बहुत परवा कर रहे हैं। पिछले युद्धों में सरकारों ने सैनिकों की जानों की कोई चिंता न की थी। दूसरी तरफ मुस्लिम देशों में जिहाद का प्रचार खूब हो रहा है और धर्म के नाम पर मुसलमान मरने को तैयार हैं। क्या यूरोप, अमेरिका अपनी तकनीक के सहारे इस्लामिक स्टेट को समाप्त कर पाएंगे? यह न भूलें कि बहुत सी तकनीकें तो पहले से ही इस्लामिक स्टेट के हाथांे में हैं।
धर्म के कारण ही आईएस, तालिबान, जैश-ए-मोहम्मद जैसे खूंखार आतंकवादी संगठन कामयाब होते रहे हैं। विश्व में बड़ी संख्या में युवा इन संगठनों में भर्ती होने को लालायित दिखाई देते हैं। इनमें अनपढ़ ही नहीं, पढ़े-लिखे लोगों की तादाद भी ज्यादा है। ये लड़ाके यूरोप, अमेरिका जैसे समृद्ध देशों में जा कर उन पर हमला करके धर्म का मकसद पूरा करने में जुटे हैं। एक धर्म को दूसरा धर्म फूटी आंखांे नहीं सुहाता। इसलिए मुस्लिम देशों के ये आतंकी कभी अमेरिका, कभी ब्रिटेन, कभी फ्रांस तो कभी अन्य धर्म वाले देशों में खून-खराबा करते हैं।
ये संगठन भावी विश्वयुद्ध का कारण बनेंगे। युद्ध हमेशा बरबादी ले कर आता है। पहले से ही गरीब, पिछड़े, भुखमरी के शिकार देशों की हालत और खराब होगी। सीरिया, इराक से भाग कर यूरोप, अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों में शरण लेने के लिए समुद्र में डूबते, भूख, बीमारी से मरते लोगों को देख कर धर्मयुद्धों के दृश्य ताजा हो रहे है। आईएस के हमलों में हजारों लोग मारे जा चुके हैं, लाखों बेघर हो चुके हैं।
धर्म और आतंकवाद अलग नहीं हो सकते। धर्म का नफरत, बैर, अषांति, कलह, हिंसा और युद्ध से हमेशा से नाता रहा है। यही धर्म की फितरत है। धर्म शांति का वाहक कभी रहा ही नहीं है। न कभी हो सकता है। धर्म कहां र्सिहष्णुता की सीख देता है। धर्म की उपस्थिति जहां भी रहेगी, वहां लड़ाई की पक्की गारंटी है। दुनिया में शांति, प्रेम, भाईचारा धर्मों के खात्मे से ही स्थापित हो पाएगा, यह पक्का है। अगर इस धरती पर धर्म मौजूद रहा तो धरती का खात्मा तय है। मानवता के बचाव के लिए धर्मों का त्याग करना ही पड़ता है।
– नरेन्द्र देवांगन