राहुल का करिश्मा कब तक

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-डा. सुभाष राय

कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी की भूमिका प्रतिपक्ष जैसी है। सरकार जो नहीं कर सकती, वह राहुल करने की कोशिश करते हैं। उन पर जिस तरह लोग भरोसा कर लेते हैं, सरकार पर नहीं कर सकते। वे जिस तरह युवकों, गरीबों, दलितों और आदिवासियों का मन मोह लेते हैं, सरकार नहीं कर पा रही। कारण बहुत साफ है। सरकार पर तमाम जिम्मेदारियां हैं, उससे लोगों की उम्मीदें बाबस्ता हैं और लोग देख रहे हैं कि वह जनता की, देश की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही है। सरकार के भीतर भी तमाम राष्ट्रीय सवालों पर मतभिन्नता की स्थिति है। संगठन और सरकार की आवाज में भी फर्क देखा जा सकता है। कई कांग्रेसी नेता अपने ही मंत्रियों के विरुद्ध बोलते सुने जाते हैं। जब जिम्मेदारी हो, तब मूल्यांकन भी होता है, स्वयं जनता करती है। पैमाना बहुत सीधा सा होता है। उसकी कठिनाइयां कम हुईं या नहीं, उसकी सहूलियतें बढ़ीं या नहीं। देश में शांति है या नहीं। भ्रष्टाचार कम है या बढ़ रहा है। ये बहुत छोटी-छोटी बातें तय करती हैं कि सरकार जिम्मेदारी से काम कर रही है या नहीं। पर जिस पर कोई जिम्मेदारी न हो, जिसे केवल बोलना हो, दूसरों की कमियां और गलतियां निकालनी हों, जिसे अपने चेहरे पर दूसरों से चेहरे का अक्स भर लाना हो, उसके लिए क्या कठिनाई है। यह तो बहुत आसान काम है। जो भी नेता विपक्ष में होते हैं, उनके पास सिर्फ यही काम बचता है। वे बखूबी इसका निर्वाह करते हैं। कुछ भी बोलते हैं, किसी की भी आलोचना करते हैं, कभी-कभी गालियां भी दे लेते हैं। इससे चर्चा ज्यादा होती है, नाम होता है, जनता की नजर में ऐसा नेता खरा बहादुर बन जाता है।

राहुल गांधी समझदार लगते हैं। असहज और दुखद परिस्थिति में पिता राजीव गांधी की मृत्यु, अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में निर्णय ले पाने में मां सोनिया के ऊहापोह और विपक्ष के नेताओं द्वारा उनके विदेशी मूल को लेकर किये गये वितंडावाद से उपजी परेशानियों में वे अपनी मां के बहुत करीब रहे। इन संकटों ने उन्हें बहुत कुछ सीखने का मौका दिया। वे चाहते तो मंत्री या कदाचित प्रधानमंत्री भी बन सकते थे पर उन्होंने बहुत ही सधा हुआ और सटीक फैसला किया, राजनीति की प्रयोगशाला में रहकर सीखने का। राजनीति में शुरू में वे बहुत सीमित भूमिका में सामने आये। मां के बहाने अमेठी और रायबरेली की जमीन पर लोगों के बीच जाना, उनसे मिलना, उनकी बातें सुनना और कभी-कभी उनसे रूबरू होकर बातें करना उनके आत्मप्रशिक्षण का हिस्सा था। इस अभ्यास से धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व में मुखरता आती गयी। स्वभाव से वे या तो सहज रहे या फिर लोगों के दुख-दर्द को करीब से देख पाने के कारण उनमें सहजता और कुछ करने का संकल्प पैदा हुआ। युवा मन वैसे भी अधिकतर साफ-सुथरा, संवेदनशील और स्वप्नदर्शी होता है। यह बात जरूर है कि उन्होंने अपनी यह सहजता और धैर्य बनाये रखा, सीखने का क्रम जारी रखा। पहली बार जब उन्होंने संसद में वक्तव्य दिया था, तब इस बात के संकेत मिल गये थे कि वे अपने भीतर एक राजनीतिक शख्सियत विकसित करने के लिए निरंतर मेहनत कर रहे हैं। हाल के दिनों में उन्होंने जिस राजनीतिक चेतना का प्रदर्शन किया है, उससे साफ है कि अब राहुल गांधी दो साल पहले वाले राहुल गांधी नहीं रह गये हैं। वे राजनीतिक मुद्दों को पहचानने लगे हैं, बड़े और दिग्गज विरोधियों को भी सटीक जवाब देने लगे हैं और कुछ बात कहने एवं कुछ छिपा जाने के कौशल में भी काफी निपुण हो गये हैं।

केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए राहुल गांधी के लिए यह कठिन नहीं है कि वे लोगों में उम्मीदें जगायें और कभी-कभी उन्हें पूरा भी करें। इससे उन्हें खुद की प्रामाणिकता और विश्सनीयता स्थापित करने में मदद मिल सकती है। उन्हें कांग्रेस भी विकास के सिपाही की तरह प्रस्तुत करने में जुटी है। उन्होंने उत्तर प्रदेश से अपना अभियान शुरू किया पर अब उनके आपरेशन का दायरा बढ़ गया है। अचानक किसी दलित बस्ती में पहुंच जाना, लोगों से मेल-मुलाकात, उनके साथ खाना खाने से लेकर उनकी दिक्कतों पर संसद और सरकार के स्तर पर बातचीत से उनकी एक ऐसी छवि बनी है कि वे गरीबों के भाग्य को लेकर चिंतित हैं और उनके लिए कुछ करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री मायावती के तीखे एतराज के बावजूद उन्होंने अपनी कार्य शैली में कोई परिवर्तन नहीं किया है। उनकी सहजता और भोलेपन का प्रभाव तो उत्तर प्रदेश की जनता पर महसूस किया जाने लगा है। मायावती सरकार चिंतित भी है इसीलिए न केवल बुंदेलखंड संबंधी पैकेज पर राज्य सरकार ने टांग अड़ाने की कोशिश की बल्कि राहुल की यात्राओं को लेकर भी उसके तेवर तल्ख दिखते हैं। किसान आंदोलन की भनक लगते ही जिस तरह राहुल अचानक अलीगढ़ के टप्पल कस्बे में पहुंच गये और भारी बरसात और कीचड़ के बाद भी पैदल चलकर पीड़ित किसानों के गांव तक गये, वह किसी को भी मोहने वाली बात हो सकती है। राहुल को बहुत जल्दी नहीं लगती, पर वे ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते, जो कांग्रेस की सेहत के लिए लाभदायक हो सकता है। कहना नहीं होगा कि उनके इन प्रयासों से राज्य में लगभग मरी हुई कांग्रेस अपने थके हुए पांव सम्हालकर उठ खड़ी हुई है।

कालाहांडी में भी उन्होंने आदिवासियों का दिल जीत लिया। दो साल पहले जब वे वहां गये थे तो वादा कर आये थे कि उनकी जमीनों के लिए लड़ेंगे और इस बार जब केंद्र सरकार ने नियामगिरी पहाड़ियों में वेदांत उद्योग समूह को बाक्साइट खनन की इजाजत देने से इनकार कर दिया, उन्होंने लांजीगढ़ में आदिवासियों की सभा की और वहां न केवल उनकी जीत का एलान किया बल्कि भावनात्मक निकटता का प्रदर्शन करते हुए यह भी कहा कि राहुल गांधी दिल्ली में उनका सिपाही है और जब भी वे आवाज देंगे, उनके बीच हाजिर मिलेगा। आदिवासियों के लिए दोहरा संकट था। नियामगिरी की वे पूजा करते हैं, अगर यहां खनन होता तो उनका पूज्य पर्वत बहुत समय तक खड़ा नहीं रह पाता। दूसरे वेदांत की एल्यूमीनियम परियोजना के विस्तार में उनकी जमीनें भी जातीं। फिलहाल यह संकट टल गया है। पर्यावरण कारणों और वन कानून के उल्लंघन के बहाने केंद्र ने वेदांत के खनन करार को रद कर दिया है। विकास विरोधी होने के आरोपों पर राहुल का कहना है कि आदिवासी संस्कृति के विरुद्ध होकर नहीं, उसके साथ सामंजस्य बिठाकर ही विकास संभव है। यह सब सरसरी नजर से देखने में बहुत अच्छा लगता है, गैरराजनीतिक समझ वाले लोगों को यह भी लग सकता है कि राहुल कितने करिश्माई नेता हैं पर सच का एक पहलू यह भी है सरकार बहुत ही नियोजित तरीके से राहुल गांधी की छवि लोगों के दिल में बिठाने में जुटी हुई है। इक्का-दुक्का मामलों में लोकप्रिय फैसले सरकार के लिए बहुत मुश्किल नहीं। अन्य तमाम मोर्चों पर अपनी विफलता के बावजूद वह ऐसा कर सकती है। उसे मालूम है कि अगले चुनाव तक मनमोहन सरकार अपनी उपलब्धियों के आधार पर चुनाव लड़ने की हालत में नहीं होगी, ऐसे में एक ऐसे नेता की जरूरत पड़ेगी, जिसके प्रति लोग आश्वस्त हो सकें। राहुल गांधी अगर लोगों की उम्मीदों के नये केंद्र बन सकें तो कांग्रेस की यह कठिनाई थोड़ी आसान हो सकती है। राहुल का जो चेहरा दिखायी पड़ रहा है, वह वक्त की जरूरतों के अनुसार रचा गया है, रचा जा रहा है। पर यह भी कड़वा सच है कि जब राहुल के सामने पूरा देश होगा, सारी समस्याएँ होंगी, तब वे शायद इतने करिश्माई न साबित हो सकें।

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डॉ. सुभाष राय
जन्म जनवरी 1957 में उत्तर प्रदेश में स्थित मऊ नाथ भंजन जनपद के गांव बड़ागांव में। शिक्षा काशी, प्रयाग और आगरा में। आगरा विश्वविद्यालय के ख्यातिप्राप्त संस्थान के. एम. आई. से हिंदी साहित्य और भाषा में स्रातकोत्तर की उपाधि। उत्तर भारत के प्रख्यात संत कवि दादू दयाल की कविताओं के मर्म पर शोध के लिए डाक्टरेट की उपाधि। कविता, कहानी, व्यंग्य और आलोचना में निरंतर सक्रियता। देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं, वर्तमान साहित्य, अभिनव कदम,अभिनव प्रसंगवश, लोकगंगा, आजकल, मधुमती, समन्वय, वसुधा, शोध-दिशा में रचनाओं का प्रकाशन। ई-पत्रिका अनुभूति, रचनाकार, कृत्या और सृजनगाथा में कविताएं। अंजोरिया वेब पत्रिका पर भोजपुरी में रचनाएं। फिलहाल पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय।

15 COMMENTS

  1. राय साहब बहुत अच्छा लिखा है .बहुत अच्छी समीक्षा है .ये सच है की आज राहुल जी लोगो कीं उम्मीदों की किरण बन गए है ,उन्होंने और नेता पुत्रो की तरह तुरंत पद पाने की लिप्सा नहीं दिखा कर भी लोगो का दिल जीता है .अभी तक के उनके व्यव्हार से उनकी सादगी तथा ईमानदारी ही दिखाई पड़ी है .ये सच है की भारत की सम्स्यवो को खुद नाकि नौकरशाही की निगाह से देख लेने के बाद जब जिम्मेदारी सर पर होगी असली परीक्षा तब होगी .उम्मीद करनी चाहिए की राहुल जी तब भी ऐसे ही साबित हो .ऐसा ही देश हित में है और बहुत दिनों से जनता कुछ ऐसा ही देखने की उम्मीद लगाये बैठी है .मई तो आशावादी हूँ .निराशावादी लोग और कोई खास चश्मा लगाये हुए लोग क्या सोचते है उससे फर्क नहीं पड़ता है क्योकि वे केवल बुरे कर घर में सो जाते है .हमें वो भी देखना होगा जब राहुल ने कहा की हम पाकिस्तान को इतना महत्व ही क्यों देते है आखिर एक जमीन का छोटा सा टुकड़ा ही तो है ,यह मजबूत सोच उन्हें औरो से अलग करती है ,जिस तरह बिना सुरक्षा की परवाह किये वे टप्पल गए कीचड और बारिश में घर घर घूमे ,जबकि तमाम छोटे नेता जिन्हें कोई खतरा नहीं है सुरक्षा के लिए लड़ते रहते है क्या उन्हें औरो से अलग नहीं करती ,वे नेता जो बहुत गरीब घरो में पैदा हुए और धन पशु बन जाने के बाद अपना खाना और पानी लेकर चलते है क्या राहुल उनसे अलग नहीं दीखते .जब उन नेताओ की नौटंकी की पोल खुलती है तब वे झेंप मिटने के लिए राहुल के कार्यों को नाटक कह कर संतुस्ट हो लेते है
    राय साहब एक बड़ा खतरा फिर से देश को दंगे की आग में जाने का सामने है .मेरी पक्की जानकारी है की इसके लिए आर एस एस पूरी तयारी कर रहा है और जिन दलों को दंगे से विपरीत फैयदा हो सकता है वे भी रोटी सेकने की तैयारी कर रहे है .जागरूक लोगो की बड़ी जिम्मेदारी है ,हिन्दू परिषद् का भा जा पा विरोधी बयान भी इनकी रणनीति का हिस्सा है .मेरा देश अब दंगा न देखे ऐसी कामना करनी चाहिए और सभी को सम्मिलित प्रयास भी करना चाहिए .
    इस लेख के लिए आप को बधाई

  2. “राहुल का करिश्मा कब तक” -by- डा. सुभाष राय

    कांग्रेस में कोई नहीं जो राहुल गाँधी को प्रधान मंत्री का पद्द देने का विरोध कर सकता हो बल्कि सभी कांग्रेस नेता एक दूसरे से आगे होकर उनके नाम के प्रस्ताव के लिए आतुर हैं.

    भाजपा दूसरी बड़ी पार्टी है. भाजपा अगले चुनाव में क्या अपनी स्थिति बेहतर कर पायगी – यह प्रश्न है.

    प्रचार चल रहा है. जन तंत्र है. सभी अपनी अपनी रण-निति बना रहें हैं.

    जनता सब जानती है.गठबंधन का युग है.

    मनमोहन असफल तो राहुल क्या पास हो सकेगें ?

    करिश्मा किसे नज़र आ रहा है ?

    लगे रहो मुन्ना भाई.

  3. कुछ भी हो लेकिन वो एक ऐसी पार्टी के साथ है जिसने एस देश के बहुसंख्यक हिन्दू संस्कृति परंपरा एवं समुदाय को कालांतर मैं जबरदस्त नुक्सान पहुँचाया है. आदिवासिओं और दलितों को उपेक्षित बताकर उन्हें हिन्दू समाज से अलग एक इकाई निरुपित किया है. परिवार नियोजन पर दुलमुल नीति अपनाकर समुदायों मैं संख्यात्मक असंतुलन (प्राक्रतिक संतुलन का विपरीत) सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए किया.
    लम्बे समय की खतरनाक रणनीति पर काम कर रही कांग्रेस को देश का वोटर जरूर सबक सिखाएगा….अगर वोटिंग मशीन से छेड़खानी न हुयी तो….

  4. आज भारत के सामने एतिहासिक चुनोतियाँ हैं .जूझने के विकल्प कम हैं .ऐसे में आशा की किरण के रूप में युवाओं की और मुखातिब होना नितांत जरुरी है .भारत में जितने भी दल हैं वे अपनी युवा टीम खड़ी करते रहते हैं .अच्छे संस्कारवान तथा .देश और सर्व समाज को सामान रूप से देखने वाले धर्मनिरपेक्ष -प्रजातंत्र -समाजवाद में यकीन करते हुए ;सशक्त भारत के निर्माण में यदि राहुल गाँधी वाकई गंभीरता से आगे बढ़ते हैं ;तो यह देश का सौभाग्य होगा .और यदि किसी अन्य दल में कोई उनसे बेहतर लोकप्रिय युवा आगे आता है तो उसका भी हमें तहेदिल से स्वागत करना चाहिए .क्योंकि यदि राहुल जी कभी पी एम् वन गए तो एक पी एम् इन वेटिंग भी तो चाहिए की नहीं .
    सुभाष जी आप का आलेख न तो कांग्रेस का समर्थन करता है और न विरोध ;
    एक खास सोच के लोगों को साम्प्रदायिक सिंड्रोम है सो वे किसी अच्छे नेता को ‘खासकर कांग्रेसी हो तो कैसे मंजूर करेंगे /ये वही लोग हैं जो सोनिया जी के विदेशी होने के नाम पर लगभग सत्ता के नज़दीक पहुँच चुके थे .और जब सोनिया जी ने सत्ता ठुकरा दी तो यही लोग विगत ५ साल तक वामपंथ को पानी पी पी कर कोसते रहे की उनके कारण अल्पमत कांग्रेस सत्ता में आ गई और ये हाथ मलते रह गए .अब इन्हें फिकर लगी है की राहुल की लोकप्रियता से कैसे निपटा जाए सो सारे खबरिया चेनल जिन्हें एन दी ऐ के जमाने में पालतू बनाया गया था ;अब उसका भरपूर return दे रहे हैं .लेकिन -रहिमन हांडी काठ की चढ़े न दूजी बार .
    कांग्रेसी भी धोके में न रहें की कमजोर और बिखरे विपक्ष के चलते पुनः सत्ता में आ ही जायेगी .अथ उसकी भलाई और देश की भलाई इसी में है की देश में व्याप्त
    भय भूंख भृष्टाचार पर रोक लगाये और sarmaayedar parast neetiyan badle .akele राहुल के bharose कोई kranti नहीं होने jaa rahi है .

  5. rahul gandhi ko aap bhondu kahian ya kuch,unhone vo mudde uthaye hain jo vipach ko uthana chahiye.lekin durbhagya se vipach ki neta ko karnatack me mafiyao ki peeth dhap dhapa rahi hain.reddy bandhu utne hi gunahgar hain jitne vedanta ke agrwal.kam se kam rahul ne aadiwasiyo ki bat to ki ,aaj ke samai jab sari rajnetik party aadiwasiyo ko naxal ke nam se khatam karne par tuli ho us samai kisi ka yah kahna ki naxal bhi apne log hi hain ,bahut mayne rakhta hain.yah kah kar ve aadiwasiyo ke sangharsh ko rekhankit kar rahe hain.jai ram ramesh jo tabadtod nirnai kar rahe hain vo bhi rahul jaise logo ki sahmati se hi, aapne bahut achhi bat kahi hain ki congresh me vipach ki bhomka ve ada ka rahe hain,
    vese bhi loktantrik partyo me vipach ki sambhavna bani hi rahni shahiye,lekin comunisto aur bjp jaisi party me koi vipach hota hi nahih hain.thosi si asahmati me coumust somnath chatarjee ko hata dete hain aur thodi si bay par jasvant singh ya adwani ji tak shikar ho jate hain.

  6. राहुल बाबा को “प्रोजेक्ट” करने का काम सिर्फ़ कांग्रेस ही नहीं कर रही कुछ पत्रकार भी कर रहे हैं… एक बुद्धू और भोंदू किस्म के कम पढ़े-लिखे व्यक्ति को परिवार की चमचागिरी के नाम पर भारत पर थोपा जायेगा यह तय जानिये…

    • Apanee drishti na ho, udhaar ke vichaaron se nirmit drishti ho to aksar jo sach hota hai, vah najar naheen aata. aise men koi tathyparak baat kahane kee jagah doosaron par aarop laga dene men aasaanee dikhatee hai.

  7. प्रभास जी अपने राहुल गांघी की राजनीतिक प्रशिक्चद के बारे में अघा छुपाते और अघा दिखाते बहुत कुछ लिखा है.लेकिन कुल सबकुछ वैसा नहीं है जैसा काग्रेस चाह रही है.अप एक बंदर को प्रोफेसर बनाने का जबर दस्तीप्रयास करे तो स्थिति हास्यास्पद हो जाती है और तब राहुल की नेतागिरी का प्रहसन खुल केर सामने आ जाता है.जैसे १४ अप्रल को अम्बेद्केर्नागेर जो मायावती का चुनाव चेत्र भी है,एक कांग्रेस की स्मारिका का लोकार्पद किया भाषादो में अम्बेडकर अपना नेता तथा कांग्रेसी वागढ़ सब कुछ कह डाला लेकिन उन्हें यह भी पता नह्गी था की उसमे अम्बेडकर के बारे ने एक लाइन नहीं था..सोचिए क्या स्थिति रही होगी.अभी देश के अंदर है कुछ बन गए जो इस कार्यकाल में बन सके तो ही संभव लगता है.दूसरी बात अप मीडिया के लोग यह मन केर चलते है कि २०६ सदस्यों से ही सर्कार बन जतेगी अप्जैसो के विश्लेषद से मदों सोनिया पिचली बार मुझे २७२ का समर्थन का दावा राष्ट्रपति से की और मुलायम के विरोध और उन्हें अपना नेता मानाने से इंकार किया और सोनिया को अपमानित हो खामोश होना पड़ा इस बात को मीडिया के लोग कैसे कह सकते है कि अल्पमत क़ी सर्कार के नेत्रित्य्व के प्रश्न पैर एनी दल भी हामी भर देगे.यह सब और कुछ नहीं मीडिया बेशर्मी से राहुल को अनायास प्रधान मंत्री बनाने की हवा बने जा रही है और इस मुहीम में लगभग सभी पत्रकार एक्पक्चीय खबरे दे रहे है.जब की वास्तव में किसी को नहीं नालुम क़ी महगाई,देश की आतंरिक सुराचा,विदेस नीति इत्यादि पैर कता vichar है.yaha मीडिया के लोग natik और बोधिक धोखा धडी केर रहे है इनलोगों क़ी निगाह में राहुल बाबा बड़े हो चुके अब खिजुओंस्द छोड़ केर देश दे खेलना चाहिए .वसे आपका विश्लेषद बहुत नाधिया है.लेकिन इस में पत्रकारीय ईमानदारी यही है क़ी लिखे क़ी दलितों के यहाँ खाने के बाद ओना जन्म दिन मानाने ब्रिटन गए.

  8. श्रीमन अभिषेक जी, आप ने या तो पूरा पढ़ा नहीं या समझा नहीं. गुणगान कहां है. इस आलेख में यही बताया गया है कि सरकार उन्हें प्रोजेक्ट कर रही है, पर जब जिम्मेदारियां आती हैं, तब असली परीक्षा होती है. केवल बोलना है तो अच्छी बातें कोई भी बोल सकता है, पर जब करना पड़ता है, तब पता चलता है कि कितना करिश्मा है. जैसे राहुल बोलते हैं, वैसे ही आप प्रतिक्रिया में कुछ भी लिख कर चले जायं तो अच्छा नहीं लगता. कम से कम पढ़ कर तो लिखिये.

    • हम कही नही गये है सहाब जि,यही बैठे है,और जायेंगे भी नहीं,पता नही आपने क्या सोच कर यह लिखा पर मुझे जो समझ मे आया उस पर मेने प्रतिकिर्या दी,किसी का बेटा होना कोयी योग्य्ता नही है,अगर ये कोयी योग्यता है तो फ़िर लोकतन्त्र का ढोंग करने की भारत को जरुरत भी नही है स्व्तन्त्रता सेनानी को हथा कर अध्य्क्ष पर अधिकार जमाने वाले लोगो की चमचा गिरि करने वाले यहा बहुत है,आप एसे नही हो ओर मेने बिना बात लिखा तो मुझे खेद है,लेकिन आप एसे है तो जरा विचार किजियेगा कि क्यो अभि तक हम लोगो को उस परिवार के बारे कुछ पता नही है???क्या कोन्गेर्स और देश एक परिवार कि जागिर है??क्या एस पार्टि मे कोय भारतिय नेता नह है??मुझे अनेक नेता जो असमय काल कलवित हो गये जैसे लाल बहादुर शास्त्रि,संजय गाँधी,राजेश पायलट,माधव राव सिंदिया के पिछे गहरा षडय्न्त्र नजर आता है,किस तरह एक परिवार कि सत्ता का वर्चस्व बनाने रखने के लिये ये सारे संसार से गये और नाम कुछ और दिया गया.
      राजनिति मे जो दिखता है हकिकत मे कुछ ओर ही होता है.ये देश किसि गाँधि का गुलाम नही है,मनमोहन जी को मोहरा बना कर एसा खेल खेल जा रहा है जिस कारण अचानक सत्ता तथाकथित “युवराज” को दे दि जाये,और अगर ये सम्भव ना हुवा तो सारा खराब और दोष मनमोहन जी के मथे जैसे अभी नरसिंह राव जी के मथे हो रहा है.
      यहाँ पर कोन्गरेसि चाटुकार{आप के बारे मे नही} ये जवाब दे कि क्यो कश्मिर,असम,मणिपुर सुलग रहा है??क्यो नक्सल्वाद है???क्यो मँहगायी है?????क्यो देश को जातिवादि युध मे धकेलने की तैयारी हो रही है???सारि कि सारि धज्जिया बिखेर कर केवल एक “मजहब
      ” के लोगो के लिये आयोग बन रहे है,क्यो????क्या हिन्दु गरिब नहीं????या हिन्दु कोय़ि वोट बैन्क नही है,सो किसि दल को पडि नही??जान बुझ कर हिन्दु एकता को तोडने के लिये जातीवादि लोगो को बडावा दिया जा रहा है,आरक्षण की सरकारी मलायी के लिये हिन्दु आपस में लडते रहे और मलायि तिसरा कोय़ि बण्दर ले उडॆ,एसा कराना किन लोगो का स्वार्थ???प्रश्न बहुत है उत्तर भी मेरे पास,मेरे पास क्या प्रत्येक चिंतक को पता है,लेकिन कोयी भी चिंतन जब तक व्यवहार मे नही उतरता कोयी काम का नही,और उसे उतारेने के लिये प्रबल हिन्दु संगटन ही एक मात्र विक्लप है,अनेक लोग सहमत नही होंगे कोय़ि फ़्रक नही पडता,संगटित साम्र्थ्य को तो देव भी नमन करते है………………………

  9. ये सब ड्रामे बजी है……….. श्रीलालू प्रसादयादव महा ध्रामेबाज विश्श्वविध्यालय से डॉक. की डिग्री ले कर आया है…………
    मेरा व्यंग ………… दिल्ली से सिपयीहा आया है………… इसी पर है.

  10. जरा बतायेंगे,ये सहाब जिनका गुणगान कर रहे है उनके पास डिग्रि क्या है???क्या सोच है???जरा एक प्रेस कोन्फ़्रेस तो क्राएये???लिखे हुवे भाषण को पढ कर कोय़ि कहे तुर्रा मार लिया तो कया कहने??हमारे शहर मे आये थे तो हर कोलेजो मे सरकारी सहाबो का फ़्ररमान पहुच गया कि ज्यदा से ज्यादा युथ लाओ,तो भी जगह खालि पडि रही……………………………..अगर यह ही हाल रहा तो वो दिन दुर नही कि भारत को एक और आपात्काल देखना पडे,जब कलम बिक जाती है तो समझो देश का पतन हो रहा है

  11. सम्राट अशोक को भारतीय इतिहास में महान कहा जाता है इसलिए नहीं की उसने अपने शाषणकाल में बहुत सारे युद्ध जीते “दूसरों के लिए जो अपने आप को बदल ले महान वही है”…राहुल गाँधी भी चाहते तो आराम की जिंदगी उठा सकते थे लेकिन नहीं,इसके बदले वे गरीबों के घर में जाते है वहां खाना खाते है,यह कोई कम बड़ी बात है क्या?. जब भी कोई समाज में परिवर्तन करने की सोचता है तो उंगलिया तो उठती ही है…….

    • Lagta hai tum bhi Rahul ki sabha sun kar aaye ho, NSUI Join ki ya nahi…kyuki bakol rahul NSUI hi desh ko sahi disha de sakti hai(dilli ka naina sahni kand to yad hi hoga)….ye sab satta lolupata hai bandhu….ek bar PM banane ke bad ise yuva yad bhi nahi aayenge(vaise ye PM nahi banane wala)…ankhe kholo aur apane vote ka sahi upyog karo….congress ne desh ko kya diya hai jara aaklan karo….60 sal ke bad bhi bharat vikassheel hi kyu hai….viksit kyu nahi…aam aadmi ka dam bharne vali parti ne aaj aam adami ka hi nivala chheen liya hai….bahko mat vichar karo….ye bhashan dene wale to bahut aayenge…parivartan ke liye kuchh nahi ho raha hai….sab marketing hai….

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