राजनीति

बिहार चुनाव: मांझी के सहारे बिहार जीतेगी भाजपा

modi-manjhiआज मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई मांझी की मुलाक़ात के बाद कयासों का दौर शुरू हो गया है. राजनीतिक हलकों में मोदी और मांझी की इस मुलाक़ात को अलग-अलग नज़रिए से देखा जा रहा है. हालाकि पूछने पर श्री माझी ने इस मुलाकात को अनौपचारिक मुलाकात बताया और कहा कि वे इस चुनाव में किसी भी दल के साथ कोई गठबंधन नहीं करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अपने छोटे से मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने दलित-वंचित समाज के लिए बहुत कुछ काम किया है और आने वाले समय में वे जनता के समक्ष उसी काम के सहारे वोट मांगने जायेगे.

परन्तु राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जनता परिवार के एक होने से भाजपा की मुश्किलें बढ़ गयी हैं. दिल्ली के चुनाव परिणाम ने भाजपा को दुबारा सोचने पर मजबूर कर दिया है. भाजपा को पता है कि नीतीश कुमार और लालू अगर एक साथ मिल चुनाव में उतरते हैं तो उनकी परेशानी बढ़ जाएगी. इसके अलावा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस के पास लालू-नीतीश से मिलने के आलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है. अगर ये तीन प्रमुख दल एक साथ आ जायेंगे तो मोदी ब्रांड पर बिहार की मुहर नहीं लग पायेगी. इसका असर बिहार के अलावा उत्तरप्रदेश तक में भी पड़ेगा जिसे फतह करना मोदी-अमित शाह के एजेंडा में सबसे ऊपर है.

यही कारण है कि इस मुलाक़ात के बहाने मोदी-माझी बिहार में राजनीतिक गोटियां बिछा रहे हैं. लेकिन जीतन राम मांझी का कहना था, “गठजोड़ की बात हम प्रधानमंत्री से क्यों करेंगे? लोग तो आपस में गठजोड़ कर ही रहे हैं. हम कोई गठजोड़ क्यों करेंगे?”

हलाकि नीतीश कुमार पर अपनी नाराजगी दिखाते हुए उन्होंने कहा कि नीतीश को छोडकर पूरे बिहार में सभी के साथ उनका रिश्ता हो सकता है.

मांझी कहते हैं, “हमने इतना अच्छा काम किया है बिहार के लोगों के लिए. हम जहां जाते हैं लोग हमें अकेले में कहते हैं, ‘चुनाव अकेले लड़िए आप.’ किसी के साथ कोई गठजोड़ मत करिए. तो हम जनता कि बात मानेंगे या किसी और की बात मानेंगे? इसीलिए हमने निर्णय लिया है कि चुनाव अकेले लड़ेंगे.”

हलाकि कुछ दिन पहले ही मांझी ने भाजपा पर धोखा देने का आरोप लगाया था. लेकिन राजनीति में इस तरह के आरोपों प्रत्यारोपों का खास असर नहीं होता, ये सब जानते हैं.

लेकिन बातचीत के दौरान भाजपा के प्रति उनके तेवर नरम ज़रूर दिखाई दिए जब उन्होंने कहा, “अकेले लड़ेंगे और अकेले लड़कर जीतेंगे भी. उस समय अगर कुछ कमी-बेशी होगी, अगर समर्थन लेने या देने की ज़रुरत आ पड़ी तो तब देखा जाएगा. उसमें भाजपा भी शामिल है. भाजपा से भी हमें परहेज़ नहीं है. सिर्फ़ नीतीश कुमार से हमें परहेज़ है.”

मांझी को लगता है कि दलित नेता के रूप में खुद को स्थापित करना मुश्किल काम है क्योंकि अनुसूचित जाति के नेताओं की राजनीति में भी उपेक्षा होती रही है.

उनका कहना है कि इस उपेक्षा की वजह से दलितों नेताओं को हमेशा से चुनौतियों का सामना करना पड़ता रहा है. मांझी कहते हैं, “पता नहीं मायावती जी ने कौन सी राजनीति की है कि आज वो चुप हैं. और पासवान जी तो सिर्फ़ अपनी जाति की ही राजनीति करते रहे. वो उससे आगे कभी बढ़ नहीं पाए.” अपने समर्थकों में इजाफा करने की गरज से उन्होंने बताया, “मैंने तो सवर्णों में भी जो दलित हैं उनकी बात भी की है. उनके लिए भी आरक्षण की हिमायत की है. दलित की राजनीति के साथ-साथ ग़रीब की राजनीति भी होनी चाहिए.”

उनका कहना था, “हम मानते हैं कि पिछड़े वर्ग में भी दलित हैं. हम अल्पसंख्यकों में दलितों के बारे में भी सोचते हैं. इसलिए दलित तो मेरे साथ हैं ही, मुझे अगड़ी जातियों और समाज के हर वर्ग के ग़रीबों का समर्थन मिल रहा है.”

बिहार में मुख्यमंत्री पर अपने कार्यकाल की चर्चा करते हुए जीतन राम मांझी ने कहा कि इस दौरान उन्होंने जिन योजनाओं की घोषणा की थी वो सभी वर्गों के ग़रीबों के लिए थीं.

-अमित शर्मा