लेख अनिश्चित भविष्य एवं आभासी दुनिया से दुःखी युवापीढ़ी September 10, 2025 / September 10, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग – पूरी दुनिया की सरकारें युवा के मुद्दों, उनमें बढ़ रहे तनाव एवं दुःखों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे। न केवल सरकारें बल्कि आम-जनजीवन में भी युवकोें की स्थिति, उनके सपने, उनके जीवन लक्ष्य आदि पर चर्चाएं हो, अन्यथा युवकों की जीवनशैली में रचनात्मक परिवर्तन के स्थान पर हिंसा-आतंक-विध्वंस की […] Read more » The youth generation is unhappy with the uncertain future and virtual world अनिश्चित भविष्य एवं आभासी दुनिया
पर्यावरण लेख प्रकृति ने हमें चेताया है, उसे सुनें और अपनी दिशा बदलें September 10, 2025 / September 10, 2025 by राजेश जैन | Leave a Comment राजेश जैन उत्तर भारत इन दिनों एक गहरी त्रासदी से गुजर रहा है। यहां हो रही भीषण बारिश के कारण आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है। मौसम विभाग के अनुसार 22 अगस्त से 4 सितंबर के बीच क्षेत्र में सामान्य से तीन गुना अधिक बारिश दर्ज हुई है। यह पिछले 14 वर्षों में सबसे अधिक और 1988 के बाद सबसे बरसात वाला मानसून है। भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने कई राज्यों को बुरी तरह प्रभावित किया है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और दिल्ली बाढ़ और भूस्खलन से जूझ रहे हैं। अब तक सौ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। अकेले पंजाब में इस दशक की सबसे भीषण बाढ़ ने 50 से अधिक लोगों की जान ले ली है और लाखों लोग बेघर हो गए हैं। गांव डूब गए, सड़कें और पुल बह गए, खेत बर्बाद हो गए और शहरों का जीवन ठप हो गया है। त्रासदी का गहरा असर जब बाढ़ का पानी उतर जाएगा तो कैमरे और प्रशासन वहां से लौट आएंगे लेकिन प्रभावित लोगों की पीड़ा बरसों तक बनी रहेगी। गिरे हुए मकान, डूबे खेत, कर्ज में दबे किसान और पढ़ाई से वंचित बच्चे हमें लगातार याद दिलाएंगे कि यह महज मौसम की सामान्य घटना नहीं बल्कि एक चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की चिंता नहीं बल्कि वर्तमान की कठोर सच्चाई है। सवाल यह है कि क्या हम इसे गंभीरता से लेकर रोकथाम की राह पकड़ेंगे या हर साल राहत और मुआवजे की रस्म अदायगी दोहराते रहेंगे। क्यों बदल रहा है मानसून का पैटर्न दरअसल, मानसून अब पहले जैसा नहीं रहा। कहीं बेहद कम बारिश होती है तो कहीं अचानक बादल फट जाते हैं और कुछ घंटों में महीनों का पानी बरस जाता है। हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों में जलप्रवाह अचानक बढ़ जाता है। वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार बनेगा और वर्तमान घटनाएं आने वाले भयावह समय की झलक मात्र हैं। मानवीय त्रासदी और प्रशासनिक विफलता इस आपदा का असर केवल भूगोल तक सीमित नहीं है बल्कि लाखों लोगों के जीवन पर पड़ा है। अपनों को खो चुके परिवारों के लिए यह आंकड़े नहीं बल्कि अधूरी कहानियां हैं। लाखों लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसानों की खड़ी फसलें डूब गईं। स्कूल बंद हैं, अस्पतालों में दवाओं की कमी है और महामारी का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन यह त्रासदी जितनी भीषण है, उससे भी बड़ा सवाल है कि हमारी नीति और तैयारी बार-बार क्यों विफल हो जाती है। हर साल बाढ़ आती है और हर साल वही दृश्य दोहराए जाते हैं। दिल्ली में यमुना बार-बार खतरे के निशान से ऊपर चली जाती है क्योंकि नालों और जलनिकासी तंत्र पर अतिक्रमण हो चुका है। हिमालयी राज्यों में अंधाधुंध सड़कें, होटल और बांध बनने से पहाड़ और असुरक्षित हो गए हैं। सरकारें राहत और मुआवजे पर तो जोर देती हैं लेकिन दीर्घकालिक रोकथाम और जल प्रबंधन पर कम ध्यान देती हैं। सही है कि यह समस्या केवल भारत की नहीं है। जलवायु संकट वैश्विक है लेकिन भारत जैसे देशों पर इसका असर कहीं ज्यादा है। हम वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तीसरे स्थान पर हैं। उद्योग और शहरी उपभोग मॉडल प्रदूषण और उत्सर्जन को बढ़ा रहे हैं लेकिन सबसे अधिक पीड़ा गरीब और कमजोर वर्ग झेल रहा है। पहाड़ी इलाकों के छोटे किसान, मजदूर और आदिवासी इसकी सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं। समाधान की राह समाधान असंभव नहीं है पर इसके लिए दृष्टिकोण बदलना होगा। हिमालयी राज्यों में संवेदनशील इलाकों की पहचान कर निर्माण पर रोक लगानी होगी। नदियों के किनारे फ्लड ज़ोन मैपिंग जरूरी है ताकि वहां नई आबादी बसाने से बचा जा सके। शहरी क्षेत्रों में ड्रेनेज और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य करना होगा। मौसम पूर्वानुमान को और सटीक बनाने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग जरूरी है। आपदा प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी ताकि राहत और बचाव केवल सरकारी मशीनरी पर निर्भर न रहे। साथ ही विकसित देशों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण वही हैं। अब समय है कि वे कार्बन उत्सर्जन में कटौती करें और विकासशील देशों को जलवायु फंडिंग उपलब्ध कराएं। भारत को भी नवीकरणीय ऊर्जा की ओर और तेजी से बढ़ना होगा और विकास मॉडल को प्रकृति के अनुकूल बनाना होगा। उत्तर भारत की यह बाढ़ हमें आईना दिखाती है कि यदि हमने अब भी सबक नहीं सीखा तो आने वाले वर्षों में आपदाओं का यह सिलसिला और विकराल रूप लेगा। जब तक नीतियों और विकास की दिशा को बदलकर प्रकृति के साथ संतुलन नहीं साधा जाएगा, तब तक त्रासदियां हमारे जीवन का हिस्सा बनी रहेंगी। प्रकृति ने हमें चेताया है, अब जिम्मेदारी हमारी है कि हम उसे सुनें और अपनी दिशा बदलें। राजेश जैन Read more » listen to it and change your direction Nature has warned us भीषण बारिश
लेख आत्महत्या किसी भी सामान्य जीव की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ही नहीं September 9, 2025 / September 9, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ. एच.एस. राठौर पृथ्वी पर जीवन विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी एवं सूक्ष्म जीवों के रूपों में प्रकट होता है और एक समय पर इनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है जिसे मृत्यु कहते है। मनुष्य जीवों में सर्वश्रेष्ठ है एवं विकासवाद के क्रम में सर्वोच्च स्थान पर है। सबसे परिष्कृत मस्तिष्क एवं किसी भी ऋतु […] Read more » आत्महत्या आत्महत्या किसी भी सामान्य जीव की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ही नहीं
लेख हिंदी दिवस हिंदी हैं, हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा! September 9, 2025 / September 9, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment (14 सितंबर हिंदी राजभाषा दिवस पर विशेष लेख) वेदव्यास इस बार भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाएगा और हिंदी भाषी राज्यों में परम्परा के अनुसार सरकारी खर्च पर सरकारी संस्थानों में खूब तालियां और थालियां बजेगी और बधाइयां भी बंटेगी। मुझे इस बात की खुशी भी है कि साल में एक दिन […] Read more »
पर्यावरण लेख अरब सागर और हिन्द महासागर के बादलों की भिड़ंत September 9, 2025 / September 9, 2025 by जयसिंह रावत | Leave a Comment जयसिंह रावतजलवायु परिवर्तन और ऋतुचक्र में गड़बड़ी के कितने भयावह परिणाम निकल सकते हैं, इसका उदाहरण इस साल का मानसून है जो सितम्बर में भी डरा रहा है। पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र—हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में रिकार्ड तोड़ वर्षा, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई। अगस्त में लद्दाख में सामान्य […] Read more » Clash of clouds of Arabian Sea and Indian Ocean बादलों की भिड़ंत
लेख समाज अकेलेपन से आत्महत्या तक: मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने का समय September 9, 2025 / September 9, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर) पर विशेषजीवन की रक्षा में संवाद ही सबसे बड़ा हथियार– योगेश कुमार गोयलविश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से प्रतिवर्ष 10 सितम्बर को दुनियाभर में तेजी से बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के उद्देश्य से ‘विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत ‘इंटरनेशनल […] Read more » From loneliness to suicide: Time to talk openly about mental health विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस
लेख सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है पंजाब की बाढ़ September 9, 2025 / September 9, 2025 by राजेश कुमार पासी | Leave a Comment राजेश कुमार पासी इस समय हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, राजस्थान और पंजाब-हरियाणा विनाशकारी बाढ़ का सामना कर रहे हैं । देखा जाए तो भारी बारिश ने पूरे उत्तर-भारत में तबाही मचाई हुई है । टीवी मीडिया और सोशल मीडिया में आने वाले भयानक दृश्य देखकर पूरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती है । हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कई बार बादल फटने की घटनाएं हो चुकी हैं जिसके कारण सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है । इसके अलावा इन पहाड़ी प्रदेशों में सड़कों और पुलों की जबरदस्त तबाही हुई है । इन प्रदेशों में जो बुनियादी ढांचा बर्बाद हुआ है, उसे दोबारा बनाने में काफी समय लगने वाला है । हरियाणा में भी बाढ़ ने भयानक तबाही मचाई है लेकिन पंजाब की बर्बादी परेशान करने वाली है । पंजाब की लगभग तीन लाख एकड़ भूमि बाढ़ के पानी में डूब चुकी है जिसके कारण फसलों की पूरी बर्बादी हो गई है । इसके अलावा कृषि भूमि में नदियों की रेत इस तरह से भर गई है कि दोबारा खेती करने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी । पंजाब के लगभग 2000 गांव बाढ़ में डूबने से भारी तबाही हुई है. मरे हुए मवेशियों की लाशें तैरती नजर आ रही हैं । इसके अलावा सैकड़ों मवेशी बाढ़ के पानी में बहकर पाकिस्तान जा चुके हैं । बाढ़ के कारण हजारों लोगों की अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है । हिमालय से निकलने वाली जीवनदायिनी नदियों ने अपनी ताकत का अहसास करवाया है । पंजाब को बाढ़ से बचाने के लिए जो बांध बनाए गए थे, वो अपना काम करने में नाकाम रहे हैं । इसके विपरीत इन बांधो ने भी इस समस्या को बढ़ाया है । इस पर विचार करने की जरूरत है कि जिन बांधों को बाढ़ से बचाव के लिए बनाया गया था, क्यों वो अपना काम नहीं कर पाए । पंजाब को पांच नदियों का प्रदेश कहा जाता है. इन नदियों के विकराल रूप ने न केवल भारतीय पंजाब बल्कि पाकिस्तान पंजाब को सहमा दिया है । पंजाब में हुए विनाश को देखते हुए केंद्र सरकार से जनता दखल देने की मांग कर रही है । इस समय पंजाब के बाढ़ पीड़ितों को भोजन, दवाइयों और वित्तीय मदद की जरूरत है । पंजाब में क्रिकेटर, सिंगर, खिलाड़ी, अभिनेता और अन्य सेलिब्रिटी मदद के लिए आगे आए हैं जिससे राहत कार्य चल रहे हैं । 9 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी भी पंजाब का दौरा कर रहे हैं जबकि केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह पहले ही पंजाब का दौरा कर चुके हैं । उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के दौरे के बाद पंजाब के लिए केन्द्र सरकार द्वारा कोई राहत पैकेज घोषित किया जाए । केन्द्र सरकार की समस्या यह है कि भारत के बड़े हिस्से में बाढ़ से तबाही हुई है और सभी उससे राहत पैकेज की मांग कर रहे हैं । वैसे देखा जाए तो पंजाब की समस्या ज्यादा गंभीर दिखाई दे रही है इसलिए केन्द्र सरकार को इस पर ध्यान देना होगा । वैसे हमारे देश में हर मुद्दे पर राजनीति होती है, इसलिए ऐसे मामले सुलझाने में समस्या आती है । पंजाब में विपक्ष की सरकार है इसलिए केन्द्र सरकार से राहत पैकेज के नाम पर इतनी राशि मांगी जा रही है, जिससे राहत पैकेज के बाद राजनीति की जा सके । देखा जाए तो ऐसी विभीषिका से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करना चाहिए लेकिन भारत में राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि देशहित से ऊपर दलहित हो गया है । इस विभीषिका के लिए केन्द्र और राज्य की सरकारों को दलगत हितों से ऊपर उठकर काम करने की जरूरत है । हमारे देश की विडम्बना है कि नौकरशाही और नेता बाढ़ जैसी आपदा को अपने लिए एक मौका मानते हैं । कौन नहीं जानता है कि भारत में ऐसी आपदाओं के राहत कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार होता है । राहत कार्यों का प्रचार तो जबरदस्त होता है लेकिन जनता का फायदा बहुत कम होता है । बाढ़ के समय जनता की शिकायत सामने आ रही है कि राज्य सरकार की मशीनरी दिखाई नहीं दे रही है । यही कारण है कि पंजाब की मदद के लिए सेलिब्रिटी सामने आए हैं । केन्द्र सरकार की आपदा एजेंसी एनडीआरएफ ने बहुत काम किया है और इसके अलावा सेना ने भी भारी मदद की है । वास्तविक समस्या बाढ़ का पानी उतरने के बाद सामने आने वाली है । पानी के जमाव के कारण बीमारियां फैलने का खतरा है । बाढ़ के कारण पंजाब के बुनियादी ढांचे को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करना आसान होने वाला नहीं है । वास्तव में पंजाब की आर्थिक स्थिति पहले ही खराब चल रही है, ऐसे में बाढ़ के कारण किसानों और पशुपालकों को हुए नुकसान की भरपाई करना राज्य सरकार के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है । पहले ही पंजाब भारी कर्ज से दबा हुआ है, इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को और कर्ज लेना पड़ सकता है । पंजाब में जो तबाही हुई है, उसे प्राकृतिक आपदा कहा जा सकता है लेकिन यह पूरा सच नहीं है । इस आपदा के लिए नौकरशाही, प्रशासन और जनता जिम्मेदार हैं । पिछले कई वर्षों से जीवन पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखाई दे रहा है । अत्याधिक गर्मी, वर्षा और ठंड के मामले लगातार बढ़ रहे हैं । ग्लोबल तापमान बढ़ता जा रहा है । कई दिनों तक होने वाली बारिश कुछ ही घंटो में हो जाती है जिसके कारण पानी निकलना मुश्किल हो जाता है । पहाड़ो में बादल फटना आम बात हो गई है । बेशक पंजाब को पांच नदियों का प्रदेश कहा जाता है लेकिन ऐसी बाढ़ का इतिहास बहुत कम है । पंजाब को बाढ़ से बचाने के लिए बांधों का निर्माण किया गया था लेकिन उनके प्रबंधन में हुई गलती का परिणाम भी पंजाब को भुगतना पड़ रहा है । इसके लिए पंजाब की राजनीति भी जिम्मेदार है । मानसून से पहले बांधों को खाली किया जाता है ताकि बारिश के अतिरिक्त पानी को रोककर उन्हें दोबारा भरा जा सके । इसके लिए बांध प्रबंधन भारतीय मौसम विभाग, यूरोपीय मौसम विभाग और ग्लोबल वेदर एजेंसी से डाटा लेता है जिसके अनुसार वो यह तय करता है कि कितना पानी बांध से निकालना है । इस बार सामान्य से ज्यादा बारिश की संभावना जताई गई थी लेकिन बांध इतने खाली नहीं किए गए कि पंजाब को बाढ़ से बचाया जा सके । बांध से पानी छोड़ने के मामले में राजनीति भी देखने को मिली थी । यह जांच विषय है कि समय पर बांध से ज्यादा पानी नहीं छोड़ा गया जिसके कारण उसमें पानी धारण करने की क्षमता कम हो गई । बाढ़ के प्राकृतिक कारणों पर हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन मानवीय कारणों से निपटने की कोशिश होनी चाहिए । नदियों, नालों, और तालाबों पर अतिक्रमण आम बात हो गई है । नदियों के किनारे बड़ी-बड़ी कलोनियां बन गई हैं और नालों को पाटकर उनपर मकान बना दिए गए हैं । गुड़गांव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां नालों को पाटकर पूरा शहर बसा दिया गया है । यही कारण है कि हर बार गुड़गांव पानी में डूब जाता है क्योंकि पानी के रास्ते में भवन, सड़के और फ्लाईओवर खड़े हुए हैं । पंजाब में भी रियल स्टेट सेक्टर ने नालों और तालाबों को पाटकर पानी निकलने के रास्ते बंद कर दिए हैं । इसके अलावा तालाबों को पाटकर खेती शुरू कर दी गई है जिसके कारण जल संग्रहण की क्षमता खत्म हो गई है और कृषि भूमि पानी से डूब रही है । थोड़ी सी बरसात के बाद ही जलजमाव बड़ी समस्या बनती जा रही है जिसके कारण सड़कों पर जाम लग जाता है । सीवरेज की गंदगी नालों के जरिये नदियों में जा रही है, जिसके कारण नदियों में गाद जमा हो रही है । गाद के कारण नदियों की जल संग्रहण क्षमता बहुत कम होती जा रही है । सतलुज नदी की जल ग्रहण क्षमता तीन लाख क्यूसेक की है लेकिन गाद के कारण यह क्षमता घटकर सत्तर हजार रह गई है । अब यह तय होना चाहिए कि नदियों से गाद निकालना किसकी जिम्मेदारी थी । अगर यह जिम्मेदारी सही तरह से निभाई गई होती तो नदियां इस तरह नहीं उफनती और पंजाब इस तरह नहीं डूबता । क्या देश की जनता नहीं जानती कि गाद हटाने का काम सिर्फ एक खानापूरी बन गया है । कुछ दिनों बाद जनता फिर अपनी जिंदगी में मस्त हो जाएगी और व्यवस्था अपनी चाल से चलती रहेगी । बाढ़ जैसी आपदाओं से निपटने के लिए राजनीति से ऊपर उठकर केन्द्र और राज्य की सरकारों को मिलकर काम करने की जरूरत है । बाढ़ आने पर अल्पकालिक उपायों से कुछ होने वाला नहीं है बल्कि भविष्य को देखकर दीर्घकालिक योजनाएं बनाने की जरूरत है । बांधो के प्रबंधन में राजनीति का दखल नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारे इंजीनियर अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें क्या करना है । वास्तव में राजनीति के कारण ही बांधों को इतना खाली नहीं किया गया कि वो सही तरीके से अपना काम नहीं कर सके । नदियों से गाद निकालना प्रशासन का काम है और इसके लिए उचित धनराशि उपलब्ध करवाई जानी चाहिए । सरकार और समाज को तालाबों को जीवित करने की जरूरत है ताकि वो अतिरिक्त पानी को जमा करके ऐसी समस्या से बचा सके । नालों की सफाई का ध्यान रखने की जरूरत है ताकि वो समय पर शहरों से पानी को बाहर निकाल सके । जलवायु परिवर्तन एक सच्चाई है और हमें इसकी कीमत चुकानी है । जनता को अपनी जिम्मेदारी समझने की भी जरूरत है । राजेश कुमार पासी Read more » पंजाब की बाढ़
लेख जनसंख्या असंतुलन : खतरनाक स्थिति September 8, 2025 / September 8, 2025 by डॉ.बालमुकुंद पांडेय | Leave a Comment डॉ. बालमुकुंद पांडे जनसंख्या देश की सबसे बड़ी पूंजी हैं क्योंकि यही राज्य का तत्व श्रम शक्ति, प्रतिभा एवं विकास की नींव होती है। जब जनसंख्या असंतुलन की स्थिति में पहुंच जाती है तो यह जनशक्ति देश के लिए अभिशाप एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष संकट का आकार धारण कर लेती है। समकालीन में वैश्विक […] Read more » Population imbalance जनसंख्या असंतुलन
लेख स्वास्थ्य-योग प्लास्टिक किसी को न भाये – उसका कचरा सबका दर्द भगाये September 8, 2025 / September 8, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment चंद्र मोहन बाजार से खरीदारी करके घर लौटते सभी के हाथों मे छोटे बड़े प्लास्टिक के थैलों को हर कोई आसानी से देखता है. प्यास लगी हो तो पानी की बोतल भी प्लास्टिक की ही बाजार मे उपलब्ध है. रेलगाड़ी मे सफर करो तो स्टेशन पर भी पानी की प्लास्टिक बोतल भी सभी पहचानते हैँ. […] Read more » प्लास्टिक से पैरासिटामोल
पर्यावरण लेख पंजाब जल प्रलय : दुनिया के मददगारों को आज मदद की दरकार September 8, 2025 / September 8, 2025 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment तनवीर जाफ़री भारत का “अन्न भंडार” कहा जाने वाला देश की खाद्य आपूर्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य पंजाब इन दिनों जल प्रलय जैसे अति गंभीर संकट […] Read more » पंजाब जल प्रलय
लेख वो कच्ची सड़क गाँव की September 8, 2025 / September 8, 2025 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment नवदीप कौरलूणकरणसर, राजस्थान भारत के गाँवों की तस्वीर अक्सर हरे-भरे खेतों, बैलों की गाड़ियों और मिट्टी की खुशबू से सजाई जाती है, लेकिन असली तस्वीर इससे कहीं अलग है। असली संघर्ष उन कच्ची सड़कों से झलकता है, जो गांव वालों की ज़िंदगी को हर दिन कीचड़ और धूल में उलझाए रखती हैं। सड़क किसी भी […] Read more » वो कच्ची सड़क गाँव की
लेख विधि-कानून नागरिक कर्त्तव्यों का प्रचार-प्रसार आवश्यक September 6, 2025 / September 6, 2025 by डॉ.वेदप्रकाश | Leave a Comment डा.वेदप्रकाश नागरिकों द्वारा कर्त्तव्यों के ज्ञान और निर्वाह के बिना संकल्प से सिद्धि का मार्ग बाधित होता है। इसलिए आज व्यापक स्तर पर यह आवश्यक है कि संविधान सम्मत नागरिक कर्त्तव्यों का प्रचार-प्रसार हो। विकसित भारत के संकल्प में सभी को अधिकार मिलें इसके लिए यह भी आवश्यक है कि सभी नागरिक कर्तव्यों का पालन […] Read more » Publicity of civic duties is essential नागरिक कर्त्तव्यों का प्रचार-प्रसार आवश्यक