1.
फूलों को मत तोड़ो
छिन जायेगी मेरी ममता
हरियाली को मत हरो
हो जायेंगे मेरे चेहरे स्याह
मेरी बाहों को मत काटो
बन जाऊँगा मैं अपंग
कहने दो बाबा को
नीम तले कथा-कहानी
झूलने दो अमराई में
बच्चों को झूला
मत छांटो मेरे सपने
मेरी खुशियाँ लुट जायेंगी।
2.
नदियाँ
हजार-हजार
दु:ख उठाकर
जन्म लिया है मैंने
फिर भी औरों की तरह
मेरी सांसों की डोर भी
कच्चे महीन धागे से बंधी है
लेकिन
इसे कौन समझाए इंसान को
जिसने बना दिया है
मुझे एक कूड़ादान।
3.
हवा
मैं थी
अल्हड़-अलमस्त
विचरती थी
स्वछंद
फिरती थी
कभी वन-उपवन में
तो कभी लताकुंज में
मेरे स्पर्श से
नाचते थे मोर
विहंसते थे खेत-खलिहान
किन्तु
इन मानवों ने
कर दिया कलुषित मुझे
अब नहीं आते वसंत-बहार
खो गई है
मौसम की खुशबू भी।
4.
पहाड़
चाहता था
मैं भी जीना स्वछंद
थी महत्वाकांक्षाएँ मेरी भी
पर अचानक!
किसी ने कर दिया
मुझे निर्वस्त्र
तो किसी ने खल्वाट
तब से चल रहा है
सिलसिला यह अनवरत
और इस तरह
होते जा रहे हैं
मेरे जीवन के रंग, बदरंग
5.
इंसान
आंखें बंद हैं
कान भी बंद है
और मर रहे हैं चुपचाप
पेड़, पहाड़, नदी और हवा
बस
आनंद ही आनंद है।
-सतीश सिंह
बहुत सुंदर रचनाएँ । आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ।
Beautiful poetry
good thinking
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pad jian ka aadhr hain