आज रेगिस्तान में भी
सावणी बरसात आई,
मेघ डोल्या, सगुन बोल्या,
मानसां का यह समंदर
बढ चला आगे ही आगे
राह छोङो, पंथ रोको मत,
इक नया उत्कर्ष लाने जा रहा हूं ।
मृत पङे थे हाथ जो
उन्हे लहराने जा रहा हूं।
गैर की बंधक पङी तकदीर
खुद छुङाने जा रहा हूं ।
गैर के टुकङे नहीं,
अपनी आबरु में आब लाने जा रहा हूं ।
कल तलक थी मार मुझ पर
आज समय को खुद ही मैं
साथ लाने जा रहा हूं ।
राह छोङो, पंथ रोको मत….
आखिरी आदम सही, पर
सूबे का सरदार लाने ला रहा हूं ।
सरकार में इक नया
व्यवहार लाने जा रहा हूं ।
रेती को अपनी अनोखी
सौगात देने जा रहा हूं।
लोक हूं तो क्या,
तंत्र को नायाब करने जा रहा हूं ।
राह छोङो, पंथ रोको मत…