सुभाष चंद्र बोस*भारत के अमर स्वतन्त्रता सेनानी नेताजी शुभाषचन्द्र बोस के *
* जन्मदिवस २३ जनवरी के पुनीत अवसर पर श्रद्धा सुमन -*
है समय नदी की बाढ़ कि, जिसमें सब बह जाया करते हैं ,
है समय बड़ा तूफ़ान , प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।
अक्सर दुनिया के लोग समय में, चक्कर खाया करते हैं ,
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं , इतिहास बनाया करते हैं ।।
ये उसी वीर इतिहास-पुरुष की , अनुपम अमर कहानी है ,
जो रक्तकणों से लिखी गई,जिसकी “जयहिन्द” निशानी है ।
प्यारा सुभाष, नेता सुभाष , भारत-भू का उजियारा था ,
पैदा होते ही गणिकों ने , जिसका भविष्य लिख डाला था ।।
यह वीर चक्रवर्ती होगा, या त्यागी होगा सन्यासी ,
जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग युग तक भारतवासी।
सो वही वीर नौकरशाही ने , पकड़ जेल में डाला था ,
पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं , फंदे में टिकने वाला था ।।
बाँधे जाते इंसान , कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं ,
काया ज़रूर बाँधी जाती, बाँधे न इरादे जाते हैं ।
वह दृढ़प्रतिज्ञ सेनानी था,जो मौक़ा पाकर निकल गया,
वह पारा था अंग्रेज़ों की , मुट्ठी में आकर फिसल गया ।।
जिस तरह धूर्त्त दुर्योधन से बचकर यदुनन्दन आए थे,
जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के, पहरेदार छकाए थे ।
बस उसी तरह यह तोड़ पींजड़ा , तोता सा बेदाग़ गया,
जनवरी माह सन् इकतालिस , मच गया शोर वह भाग गया।।
वे कहाँ गए, वे कहाँ रहे, ये धूमिल अभी कहानी है ।
हमने तो इसकी नयी कथा, आज़ाद फ़ौज से जानी है ।।
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ये १९४५ में प्रकाशित व्यास जी की कविता की पुनर्प्रस्तुति है ।
– शकुन्तला बहादुर
आझाद हिन्द फौज के संचलन जैसी आगे कूच करती कविता, पुनर-प्रस्तुत कर शकुन्तला जी ने अवश्य सुभाष चंद्र की “बहादुरी” का परिचय तो दिया ही है। अत्योचित प्रासंगिक कविता पढकर आज का मेरा दिन भी उत्साह से भर आया है। लगता है संचलन के साथ साथ कहीं पीछॆ, घोष (बॅण्ड) पथक भी सुनाई दे रहा है। ऐसे शब्द ही अमरता प्राप्त करते हैं। स्मरण दिलाने के लिए धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर