सुरेश चिपलूनकर
संघ-भाजपा-हिन्दुत्व के कटु आलोचक, बड़बोले एवं “पवित्र परिवार” के अंधभक्त श्री कुमार केतकर के खिलाफ़ दापोली (महाराष्ट्र) पुलिस ने कोर्ट के आदेश के बाद मामला दर्ज कर लिया है। अपने एक लेख में केतकर साहब ने सदा की तरह “हिन्दू आतंक”, “भगवा-ध्वज” विरोधी राग तो अलापा ही, उन पर केस दर्ज करने का मुख्य कारण बना उनका वह वक्तव्य जिसमें उन्होंने कहा कि “भारतीय न्यायपालिका में संघ के आदमी घुस गये हैं…”।
इस लेख में केतकर साहब ने अयोध्या मामले के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस, प्रशासन, प्रेस और न्यायपालिका में “संघ के गुर्गे” घुसपैठ कर गये हैं। पहले तो सामाजिक कार्यकर्ता श्री एन आर शिगवण ने केतकर से पत्र लिखकर जवाब माँगा, लेकिन हेकड़ीबाज केतकर ऐसे पत्रों का जवाब भला क्यों देने लगे, तब शिगवण जी ने कोर्ट में केस दायर किया, जहाँ माननीय न्यायालय ने लेख की उक्त पंक्ति को देखकर तत्काल मामला दर्ज करने का निर्देश दिया…। लेख में अपने “तर्क”(???) को धार देने के लिए केतकर साहब ने महात्मा गाँधी के साथ-साथ राजीव गाँधी की हत्या को भी “हिन्दू आतंक” बता डाला, क्योंकि उनके अनुसार राजीव के हत्यारे भी “हिन्दू” ही हैं, इसलिए… (है ना माथा पीटने लायक तर्क)। यह तर्क कुछ-कुछ ऐसा ही है जैसे दिग्विजय सिंह साहब ने 26/11 के हमले में संघ का हाथ होना बताया था। केतकर साहब का बस चले तो वे अजमल कसाब को भी संघ का कार्यकर्ता घोषित कर दें…।
जहाँ अपने इस लेख में कुमार केतकर ने ठेठ “रुदाली स्टाइल” में संघ-भाजपा के खिलाफ़ विष-वमन किया, वहीं इसी लेख में उन्होंने “पारिवारिक चरण चुम्बन” की परम्परा को बरकरार रखते हुए सवाल किया कि “RSS के “प्रातः स्मरण” (शाखा की सुबह की प्रार्थना) में महात्मा गाँधी का नाम क्यों है, जबकि जवाहरलाल नेहरु का नाम क्यों नहीं है…” (हो सकता है अगले लेख में वे यह आपत्ति दर्ज करा दें कि इसमें जिन्ना का नाम क्यों नहीं है?)। इससे पहले भी कुमार केतकर साहब, बाल ठाकरे को “मुम्बई का अयातुल्लाह खोमैनी” जैसी उपाधियाँ दे चुके हैं, साथ ही “अमूल बेबी” द्वारा मुम्बई की लोकल ट्रेन यात्रा को एक लेख में “ऐतिहासिक यात्रा” निरूपित कर चुके हैं…
इन्हीं हरकतों की वजह से कुछ समय पहले केतकर साहब को “लोकसत्ता” से धक्के मारकर निकाला गया था, इसके बाद वे “दिव्य भास्कर” के एडीटर बन गये… लेकिन लगता है कि ये उसे भी डुबाकर ही मानेंगे…। (पता नहीं दिव्य भास्कर ने उनमें ऐसा क्या देखा?)।
उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले माननीय प्रधानमंत्री “मौन ही मौन सिंह” ने पूरे देश से चुनकर जिन “खास” पाँच सम्पादकों को इंटरव्यू के लिए बुलाया था, उसमें एक अनमोल नगीना कुमार केतकर भी थे, ज़ाहिर है कि “नमक का कर्ज़” उतारने का फ़र्ज़ तो अदा करेंगे ही…, लेकिन न्यायपालिका पर “संघी” होने का आरोप लगाकर उन्होंने निश्चित रूप से दिवालिएपन का सबूत दिया है।
==========
नोट :- सभी पाठकों, शुभचिंतकों एवं मित्रों को दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं, आप सभी खुश रहें, सफ़ल हों…। इस दीपावली संकल्प लें कि हम सभी आपस में मिलकर इसी तरह हिन्दुत्व विरोधियों को बेनकाब करते चलें, उन्हें न्यायालय के रास्ते सबक सिखाते चलें…हिन्दुओं, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू संतों, हिन्दू मन्दिरों के द्वेषियों को तर्कों से ध्वस्त करते चलें…
स्रोत :- https://en.newsbharati.com//Encyc/2011/10/21/Kumar-Ketkar-saving-face-on-Court-action-for-his-defamatory-article-.aspx?NB&m2&p1&p2&p3&p4&lang=1&m1=m8&NewsMode=int
ऐसे श्री केतकर के न्यायपालिका के बारे में व्यक्त विचारों से मैं सहमत नहीं हूँ,पर न्यायपालिका को भी अन्य विभागों की तरह ही मानता हूँ,जिसमे भ्रष्टाचार सहित अन्य बुराईयाँ भी दूसरे विभागों की तरह ही है.उसको मैं अंग्रेजी में जो होली काऊ कहा जता है,ऐसा कुछ नहीं मानता हूँ,किसी निर्णय को लटकाए रखने का सबसे बड़ा दोषी भी न्यायपालिका ही है.मैं समझता हूँकि मेरी टिप्पणी विषय से हटकर है,पर यह न्यायपालिका को वख्स दीजिये शीर्षक के साथ जुडी है,क्योंकि शीर्षक से ऐसा लगता है कि न्यायपालिका की आलोचना नहीं करनी चाहिए.
कुछ लोग जिस दिन मरते हैं, एक दिन भी, जिए बिना ही मरते हैं। ऐसे लोगों का सिरमौर हैं, यह पादतल- चाटुकार- बावला केतकर।
ऐसे भांड और मानसिक कुष्टरोगी का ईलाज तो हिन्दू समाज द्वारा समाजिक बहिष्कार या शांति भूषण -छित्रैल ही है…उतिष्ठकौन्तेय