लाखो घर बर्बाद हो गये इस दहेज़ की बोली में ,
अर्थी चड़ी बहुत कन्याये बैठ न पाई डोली में ,
कितनो ने अपनी कन्यायो के पीले हाथ कराने में
कहाँ कहाँ तक मस्तक टेकें आती शर्म बताने में ,
जिस पर बीती वही जानता ,शब्द नहीं है कहने को ,
कितनो ने बेचें मकान है ,अब तक अपने रहने के ,
गहने खेत मकान रख दिए ,सिर्फ भोज की रोली में ,
लड़के वाले दरें बढ़ाते जाते धन की आशा में ,
लाखो घर बर्बाद हो गये इस दहेज़ की बोली में ……
२ यही हमारा मनुज रूप हैं यही अहिंसा प्यारी है ,
लड़की वालो की गर्दन पर संतोष यही कटारी हैं ,
आग लगे ऐसे दहेज़ को , जिसको मानवता की फिक्र नहीं ,
लाखो घर बर्बाद हो गये इस दहेज़ की बोली में ……
अब भी चेतो लड़के वालो ,कन्याओ की शादी में ,
नहीं बटाओ हाथ इस तरह ,तुम ऐसी बर्बादी में ,
तुम को भी ऐसा दुःख होगा ,जब ऐसा पल आएगा
अथवा ये बेवस का पैसा तुम्हे नरक ले जायेगा ,,,,
मनीष जाइसवाल