यह पुस्तिका 13 अगस्त 1983 को नई दिल्ली में भारत विकास परिषद् द्वारा आयोजित संगोष्ठी में सुविख्यात विचारक और प्रमुख श्रमिक नेता श्री दत्तोपंत ठेंगड़ीद्वारा दिए गए भाषण का उन्हीं के द्वारा विस्तृत किया गया रूप है।
बार बार जिसका पारायण किया जाए, ऐसी पुस्तिका| मैं तो इसे बार बार पढूंगा|
प्रवक्ता के आज तक के इतिहास में सर्वोच्च शिखर सम|
वैसे, सूरज को भी दिया दिखाने की आवश्यकता तो नहीं है|
अंग्रेजी पुस्तक से भी, हिंदी में सचमुच दुगुनी गतिमान और दुगुनी प्रभावी प्रतीत हुयी| दत्तोपंत जी और दीनदयाल जी सर्वग्राही वैश्विक स्तर के मौलिक चिन्तक थे|
इस पुस्तिका से दत्तोपंत जी का गहन और सर्वग्राही कुशाग्र चिंतन पता चलता है|
यह मेरे विचार मात्र है|
उनको प्रमाण पत्र देना कोई मेरी योग्यता नहीं| मैं अपने विचार केवल व्यक्त कर रहा हूँ|
हम भाग्यवान है|
बार बार जिसका पारायण किया जाए, ऐसी पुस्तिका| मैं तो इसे बार बार पढूंगा|
प्रवक्ता के आज तक के इतिहास में सर्वोच्च शिखर सम|
वैसे, सूरज को भी दिया दिखाने की आवश्यकता तो नहीं है|
अंग्रेजी पुस्तक से भी, हिंदी में सचमुच दुगुनी गतिमान और दुगुनी प्रभावी प्रतीत हुयी| दत्तोपंत जी और दीनदयाल जी सर्वग्राही वैश्विक स्तर के मौलिक चिन्तक थे|
इस पुस्तिका से दत्तोपंत जी का गहन और सर्वग्राही कुशाग्र चिंतन पता चलता है|
यह मेरे विचार मात्र है|
उनको प्रमाण पत्र देना कोई मेरी योग्यता नहीं| मैं अपने विचार केवल व्यक्त कर रहा हूँ|
हम भाग्यवान है|