
दिन ऊगा औ
करने बैठा
सूरज से अरदास।
पंछी उड़ान
भरते हैं
गगन से दूर।
लेकिन बाज
के पंजे
होते हैं क्रूर।।
टहनी में
तोते सा बैठा
होठों पर परिहास।
अर्श से फर्श
पर है जिसने
ला पटका।
बना हुआ है
बुरे समय का
अक्सर खटका।।
हैं भक्ति और
भजन में डूबे
संत कवि रैदास।
अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर