विमलेश बंसल
क्या आप जानते हो श्रावण मास में काँवड़ का क्या महत्व है? यह कांवड़ गंगोत्तरी से जल लाकर महादेव पर चढ़ाई जाती है
आइये जानें – वर्षा ऋतु के 4 महीने चातुर्मास्य कहलाते हैं श्रावण मास मैं घनघोर बारिश के चलते आवाजाही ठप्प रहती है चारों और तालाब और गड्ढे पानी से भरे हुए दिखाई देते हैं व्यापारी वर्ग पर भी सुस्ती छायी रहती है इंसान कर्म शील प्राणी है खाली बैठना आलस्य को आमंत्रण है ऋषियों ने सोचा क्यों न ये दिन ज्ञान श्रवण के लिए रखे जाएँ और सभी वर्ग के लोगों को आमंत्रित किया जाए जिससे सब ज्ञान युक्त कर्म कर अपने अपने जीवन का सफल निर्वाह कर सकें उस ज्ञान पद्धति को श्रवण चतुष्टय नाम दिया गया जिससे श्रवण, मनन और निदिध्यासन द्वारा चारों वर्णों का विकास किया जा सके| हमारा हृदय एक कावड़ है कावड़ की सफलता उसके भरने,ज्ञान जल ग्रहण करने और उसके चारों ओर प्रचारित प्रसारित कर वितरण में निहित है जिससे सभी सुखी समृद्ध सुंदर शतायु जीवन प्राप्त कर सकें। नंगे पैरों से चलना स्वच्छता का प्रतीक है। रास्ते में कावड़ ले जाते वक़्त विशेष ध्यान रखा जाता है कोई छू न ले पाँचों विषयों के विकार काम क्रोध मद मोह लोभ कहीँ छू न लें इसलिए सामान्य लोगों से बचते बचाते हुए कावड़ को लाया जाता है तत्पश्चात प्रभु निर्मित मानव मंदिरों पर छिड़क दिया जाता है।
ध्यान देने योग्य विशेष बात—बिना भोलेपन के भोले भंडारी को प्राप्त नहीं किया जा सकता उसको कुछ भी बोल दो कैसा भी बना दो कुछ भी पहनादो कुछ भी खिलादो विष भी हँसकर पी लेते हैं उसे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर ऐसा जीवन आप का है तो आप उससे बहुत जल्दी मिल सकते हो। जय भोलेनाथ—-व्योम शब्द से बम शब्द बना है – ज्ञान जल पीने वाला और पिलाने वाला श्रवण कुमार की तरह सबके दिल में जगह बना लेता है व्याप्य होकर व्यापक से संबंध कर लेता है। अंधे माता पिता को सेवा शुश्रुषा द्वारा ज्ञान जल पिलाने वाले श्रवण कुमार हर घर में सोना श्रवण बनकर दीवार पर अंकित हो गए। हम भी अगर ज्ञान जल भरकर अज्ञानियों के बीच जाकर उन्हें ज्ञान जल पिलाने का काम शुरू कर दें तो वह दिन दूर नहीं जहाँ ढूंढने पर भी अंधकार नजर नही आएगा। आओ हम सब मिलकर एक साथ चलें और हृदय रूपी काँवड़ में ज्ञान जल लाने के लिए अपने कंधे मज़बूत करें और छिड़ककर अपने हाथ पवित्र करें।
वेद, दर्शन, उपनिषद् रामायण, गीता इत्यादि सद्ग्रन्थों का पढना-पढ़ाना, सुनना- सुनाना, अमल कर आचरण में लाना सभी मानवों का परम धर्म है।
कावड़ यात्रा ,शिर्डी तक पैदल यात्रा ,सांवलियाँ जी तक पैदल यात्रा ,रामदेवरा की यात्रा। पंढरपुर तक वरकरियों की यात्रा ,उज्जैन में पंचक्रोशी की यात्रा ये सब यात्राएं आस्था के प्रतीक हैं. एक तो साहसिक पदयात्राएं हैं दूसरे आम जनता को कष्टों की अनुभूति हो ,तीसरे समाज के विभिन्न तबकों के संपर्कों में व्यक्ति आये इन सब उद्देश्यों के साथ ये यात्रा सम्प्पन होती है,