पाकिस्तान का दोमुंहापन

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-अरविंद जयतिलक-

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विडंबना कहा जाएगा कि भारत जब भी पड़ोसी देश पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की पहल करता है, वह पलटकर डंस देता है। उम्मीद थी कि नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के शिरकत के बाद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार आएगा। दोनों देश कश्मीर समेत सभी विवादित मुद्दों को सुलझाने की दिशा में ठोस पहल करेंगे। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। पाकिस्तानी सैनिक लगातार सीमा संघर्ष विराम का उलंघन कर रहे हैं। अभी पिछले दिनों ही उसके सैनिकों ने आरएस पूरा और अखनुर सेक्टर में घात लगाकर सीमा पर गश्त कर रहे भारतीय जवानों को निषाना बनाया। उनका यह कायराना कृत्य अब भी जारी है। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले चार महीने में पाकिस्तान द्वारा तीस से अधिक बार और पिछले तीन सालों में 200 से ज्यादा बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया है। नवाज शरीफ ने सत्ता संभालते वक्त भरोसा दिया था कि उनकी सरकार भारत से बेहतर संबंधों की हिमायती है। लेकिन उनके सत्ता संभालने के तीन महीने बाद ही पाकिस्तानी सैनिकों ने आतंकियों के साथ मिलकर पांच भारतीय जवानों की हत्या कर दी और एक अन्य हमले में दो भारतीय जवानों को मौत के घाट उतारकर एक जवान के सिर काट ले गए।

लाहौर के कोट लखपत जेल में भारतीय कैदी सरबजीत को पीटकर मार डाला। यह प्रमाणित करता है कि नवाज शरीफ और पाकिस्तान की कथनी व करनी में भारी भेद है। सच तो यह है कि नवाज ने अभी तक शांति, सुरक्षा, स्थिरता और दोनों देशों के बीच विवादित मसलों को सुलझाने के लिए एक भी ऐसी पहल नहीं की है जिससे सकारात्मक नतीजे की उम्मीद की जाए। कश्मीर के मसले पर उनका रुख अभी भी उलझाने और उकसाने वाला ही है। याद होगा गत वर्श अमेरिकी दौरे से पहले वे यह कहते सुने गए कि अगर अमेरिका मध्यस्थता को राजी हो जाए तो कश्मीर समस्या शीघ्र सुलझ सकता है। उन्होंने ब्लैकमेलिंग भरे अंदाज में यह भी कहा कि दोनों देशों के पास परमाणु बम है और ऐसे में अगर कष्मीर मसला नहीं सुलझा तो इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। यह अलग बात है कि उनके प्रस्ताव को अमेरिका ने सिरे से खारिज कर दिया और भारत ने कड़ा प्रतिवाद जताया। पिछले वर्ष ही उन्होंने न्यूयार्क में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात से ठीक पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ में कश्मीर का मसला उठाया। यही नहीं उन्होंने एक बातचीत के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह के लिए देहाती महिला शब्द का इस्तेमाल भी किया। ऐसा प्रतीत होता है कि नवाज शरीफ भारत से संबंध सुधारने के पक्ष में ही नहीं है। अन्यथा कोई कारण नहीं कि भारत बार-बार धैर्य का परिचय दे और उनके सैनिक सीमा पर कोहराम मचाए। यह विडंबना है कि भारत शांति का पक्षधर है और पाकिस्तान इसे भारत की कमजोरी समझता है। अब भारत को भी समझ लेना होगा कि न तो नवाज षरीफ बदले हैं और न ही पाकिस्तान। पूर्ववर्ती हुक्मरानों की तरह उनका मकसद भी भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देना और कष्मीर मसले का अंतर्राश्ट्रीयकरण करना है। गौर करें तो भारत के मामले में नवाज का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं है। 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी ने उनके निमंत्रण पर लाहौर की ऐतिहासिक बस यात्रा की। तब नवाज शरीफ ने वाजपेयी की कोशिश को सकारात्मक एवं प्रगतिशील बताया। दोनों देश सौहार्दपूर्ण वातावरण में तीन महत्वपूर्ण दस्तावेजों लाहौर घोषणा, संयुक्त वक्तव्य तथा आपसी समझ के स्मरण पत्र पर दस्तखत किए। साथ ही जम्मू-कश्मीर सहित आपसी सभी समस्याओं के निराकरण तथा एकदूसरे की संप्रभुता का सम्मान करने की बात कही। यहां तक कि शिमला समझौते के प्रावधानों को लागू करने एवं पूर्ण सार्वभौमिक निःशस्त्रीकरण तथा परमाणु अप्रसार के उद्देश्यों पर अपनी प्रतिबद्धता जतायी। लेकिन पाकिस्तान कसौटी पर खरा नहीं उतरा। उसने तीन महीने के अंदर ही भारत की आंख में धूल झोंककर कारगिल सेक्टर के कुछ चोटियों पर कब्जा कर लिया। नतीजतन कारगिल युद्ध हुआ। यह अलग बात है कि इस युद्ध में उसे करारी षिकस्त मिली और विश्व बिरादरी में उसका दोहरा चरित्र भी उजागर हुआ। नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री रहते हुए ही 12 मार्च 1993 को मुंबई में बम धमाका हुआ और उसके गुनाहगार भागकर पाकिस्तान में शरण लिए। यदि नवाज षांति के पक्षधर होते तो बम धमाके के सरगना दाऊद इब्राहिम एवं अन्य गुनाहगारों को भारत को सौंप दिए होते। लेकिन उन्होंने ऐसा न कर अपनी बदनियति का ही परिचय दिया है। 1997 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने भी पाक से संबंध सुधारने की दिषा में ठोस पहल की। याद होगा तब भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज षरीफ ही थे। उन्होंने गुजराल थ्योरी की जमकर प्रशंसा की। लेकिन मौका लगते ही उन्होंने भारत के पीठ में छूरा भोंक दिया। संयुक्त राश्ट्र महासभा के अधिवेषन में कश्मीर मसले को जोर षोर से उठाया। उनका मकसद मसले का अंतर्राश्ट्रीयकरण करना था। यह दर्शाता है कि उनका मकसद कश्मीर समस्या को सुलझाना नहीं बल्कि उसकी आड़ में अपना उल्लू सीधा करना है। दुनिया के सामने उजागर हो चुका है कि नवाज शरीफ ने कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के लिए बकायदा एक सेल का गठन कर रखा है और उसी रणनीति के तहत जम्मू-कश्मीर से लगी सीमा पर उकसावे का खेल खेला जा रहा है ताकि विश्व समुदाय का ध्यान इधर जाए। उचित होगा कि भारत पाकिस्तान से बातचीत के दौरान संघर्ष विराम के बार-बार उलंघन पर कड़ा प्रतिवाद जताए और 26/11 आतंकी हमले के मास्टरमाइंड जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद को सौंपने की मांग करे। यह उचित नहीं कि पाकिस्तान बार-बार दावा करे कि 26/11 मुंबई आतंकी हमले मामले में हाफिज सईद के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और भारत चुप रहे। देश-दुनिया से यह छिपा नहीं रह गया है कि हाफिज सईद शांति का मसीहा नहीं बल्कि एक खतरनाक आतंकी है और उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए। गौर करने वाली बात यह भी कि अमेरिका ने उसके सिर एक करोड़ डॉलर का इनाम रख चुका है। इसके अलावा नवंबर 2008 में उसके संगठन जमात-उद-दावा को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिशद की ओर से लश्करे तैयबा का एक मुखौटा घोषित किया जा चुका है। यही नहीं पाकिस्तान की सरकार वहां होने वाली कई अप्रिय घटनाओं के सिलसिले में उसे कई बार गिरफ्तार कर जेल भी भेज चुकी है। पाकिस्तान की यह दलील भी उचित नहीं कि वह भी आतंकवाद से पीड़ित है और आतंकवाद के खिलाफ जंग में बराबर का साझीदार है। उसे स्पष्ट करना होगा कि अगर वह आतंकवाद से पीड़ित है तो फिर उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ भारत के खिलाफ पाकिस्तान अधिकृत कष्मीर में आतंकी षिविरों को खाद-पानी मुहैया क्यों करा रही है? क्या यह सच नहीं है कि जम्मू-कश्मीर में पसरे आतंकी समूहों को आईएसआई द्वारा वित्तीय मदद दी जा रही है? अमेरिका भी कह चुका है कि पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मिल मदद को विकास कार्यों पर खर्च करने के बजाए भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों पर लूटा रहा है। उचित होगा कि पाकिस्तान अपने दोहरे खेल से बाज आए अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब उसे इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।

3 COMMENTS

  1. पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधरने की कोशिश अब भारत द्वारा अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
    बेहतर है कि भारत पाकिस्तान से अपनी रिश्तो को विराम देकर पाकिस्तान के खिलाफ अपनी सीमाओं को लॉक कर ले। और उसकी किसी भी हरकत का मुहतोड़ जबाब दे। यदि पडोसी दोस्ती के नाम पर धब्बा है तो उसे दोस्तों की लिस्ट से हटा देना ही बेहतर है।
    और इस मामले में भारत के शांति प्रिय मुसलमानों को सबसे पहले आवाज उठानी चाहिए

  2. सर्प को आप कितना भी दूध पिला दें वह अपने डंसने के स्वभाव को नहीं छोड़ता , पाकिस्तान से भी उम्मीद करनी व्यर्थ है जिस देश की नींव भारत से घृणा के आधार पर हुई हो , जिस देश की सरकार भारत, विरोध से ही राज करती हो वहां से सदभाव की आशा नहीं की जा सकती यह सिरदर्द तो सदैव रहेगा ही

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