राजनीति के अपराधीकरण पर राजनीति

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Criminal-Politics 
भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है जिसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का दर्जा प्राप्त है यानि अप्रत्यक्ष लोकतंत्रात्मक प्रणाली में जनता के सर्वाधिक प्रतिनिधियों का देश । जहा¡ जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करती है । जिसमें प्रतिनिधियों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है । इस अवधि में देश के विकास की कमान इन्हीं के हाथ में होती है । ऐसे में इनका ईमानदार, सचरित्र तथा निष्ठावान (देश के संविधान, संवैधानिक संस्थान, जनता के प्रति) होना परम आवश्यक शर्त है । अन्यथा जिस राजनीति को मानव समाज के कल्याण की व्यवस्था कहा जाता है, वह इसके पतन का कारण बन सकती है ।
यदि हम राजनीति के इस पक्ष पर नजर डाले जहा¡ कानून निर्माता (यानि निर्वाचित जन प्रतिनिधि ) ही कानून के सबसे बड़े उल्लंघनकर्ता बन गए हों, तो हमें यह स्थिती आज की तारीख में भयावह दिखाई पड़ती है । एसोसिएशन आँफ डेमोक्रेसी  रिफॉर्म के रिपोर्ट के अनुसार – देश की सबसे बड़ी पंचायत यानि संसद भवन के 775 संसदों में से 202 अपराधिक पृष्ठ-भूमि के हैं, जिनमें से 92 पर तो हत्या एवं बलात्कार जैसे गंभीर अपराध का मुकदमा चल रहा है । वहीं राज्य विधायिकाओं में 4032 विधायकों में से 1258 पर अपराधिक मामले हैं जिनमें 596 गंभीर किस्म के हैं ।
राजनीति के अपराधिकरण की यह प्रवृति कोई नई नहीं है पर आज इसमें काफी तेजी और बदलाव आ चुका है । पहले जहा¡ अपराधियों का सहारा लेकर चुनाव जीता जाता था, आज वहीं अपराधी चुनाव जीत कर संविधान एवं स्वौधानिक संस्थाओं की गरिमा को गिरा रहे हैं । ऐसी स्थिती में लोगों का लोकतंत्र पर से विश्वास उठना स्वभाविक है । जो हमें कम मतदाताओं की उपस्थिति के द्वारा भी संकेत के तौर पर प्राप्त होता है । जोकि लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है क्योंकि यह पुन: राजनीति के अपराधिकरण को ही बढ़वा देगा ।
राजनीति के इस अपराधिकरण को रोकने हेतु सर्वोच्च न्यायालय ने कई प्रयत्न किए जैसे 12 जनवरी 2005 के अपने फैसले में सुधार करते हुए – 10 जुलाई 2013 को जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 की उपधारा (4) में सुधार किया जिसके तहत अदालत द्वारा दोषी सिद्व 2 वर्ष या उससे अधिक के सजा प्राप्त जन प्रतिनिधि  की अब अपनी सदस्यता का त्याग करना
होगा । सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला राजनीति में बढ़ते अपराधी प्रवृति पर रोक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ।
परन्तु इस फैसले के गलत शिकार कई मेहनती समाजसेवी राजनीतिक कार्यकर्ता  भी हो सकते हैं । इसीलिए राजनीतिक दलों ने जनप्रतिनिधि कानून में सुधार का निर्णय किया । जिसके सम्बन्ध में का¡ग्रेस पार्टी द्वारा मानसून सत्र में एक विधेयक लाया गया । पर इसमें काफी सुधार की गुंजाईश होने के कारण यह विधेयक लोकसभा में यू0पी0ए0 सरकार के बहुमत में होने के कारण तो पास हो गया पर राज्यसभा में कई प्रमुख राजनीतिक दलों के विरोध के कारण पास न हो सका ।
पर असली प्रश्न चिन्ह तब आ खड़ा हुआ जब यू0पी0ए0 मं.त्रीमण्डल ने अध्यादेश के द्वारा इस विधेयक को कानूनी रूप देने का प्रयास किया । आखिर क्या कारण है जो कांग्रेस संविधान के उस आपातकालीन कानून निर्माण की व्यवस्था को हथियार बना रही है जो अनु0 123 के तहत संसद के सत्र में न होने पर मंत्रीमण्डल को कानून बनाने का अधिकार देता है । क्या का¡गेस को डर है कि वह उस सत्ता के सुख से वंचित हो जाएगी जिसका भोग वह लगभग बीच के कुछ सालों को छोड़ दे तो  आजादी के बाद से लगातार भोगती चली आ रही है ? शायद इसी डर ने कांग्रेस  को इस अनैतिक, प्रक्रिया  के प्रयोग के लिए बाध्य किया, जो कि इंदिरा गा¡धी के तानाशाही शासन के दौर की याद दिलाता है तथा संविधान के लहू-लुहान होने की गाथा को पुनर्जिवित करता है । परन्तु कांग्रेस अभी इस मकसद में कामयाब हो पाती इससे पूर्व ही भाजपा ने अध्यादेश लाए जाने की तीखी आलोचना की और महामहीम से मिलकर अध्यादेश पर हस्ताक्षर न कर, वापस करने का आग्रह किया ।
पर कांग्रेसी  की अनैतिक राजनीति इतने मात्र से ही नहीं रूकी तो उसने अपना पैंतरा बदला और कांग्रेस के महामहीम राहुल गा¡धी ने जनता के बीच कांग्रेस गिरती साख को बचाने के लिए अपने ही मंत्रीमण्डली द्वारा लाए गए अध्यादेश के असफल हो जाने पर इसे बेवकूफी का पिटारा कह कर कचरे में फेंकने की बात कह डाली । शायद कांग्रेस के भावी युवा प्रधानमंत्री प्रत्याशी यह भूल रहे हैं कि देश की बुजुर्ग तो कांग्रेस  के इस पुराने दोहरे चरित्र को बहुत अच्छी तरह समझते हैं और आज का युवा वर्ग भी इनके ख्याली विकास मॉडल से प्रभावित होने वाला नहीं है । क्योंकि यह मॉडल भी आगे चलकर कूड़ा ही बनेगा और अगर का¡ग्रेस पुन: सत्ता  में आ गई तो कूड़े को जलाकर देश के वातावरण को दूषित करते हुए उनके राजनीतिक अपराधी म¡हगाई, बेरोजगारी एवं गरीबी की आग पर अपनी राजनीतिक रोटिया सेंक रहे होंगें ।
इसीलिए अब जनता को जागरूक होकर सर्वोच्च न्यायालय के कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते हुए राजनीति के अपराधीकरण पर लगाम लगाने का प्रयास करना होगा जिसका पहला मौका आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिलने वाला है ।
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डॉ. अनिल जैन
डॉ अनिल जैन जी का सामाजिक परिचय उनके विद्यार्थी जीवन काल से ही प्रारंभ हो जाता है,जब उन्होंने लखनऊ में मेडिकल की अपनी पढाई के साथ-साथ छात्रों की आवाज़ को मजबूत किया | पढाई पूरी करने के पश्चात् आपने झारखण्ड के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में वनबंधुओं के बीच कई वर्षों तक समाजसेवा का कार्य किया | रचनात्मकता और सामाजिक जीवन के अनुभव ने राजनीतिक जीवनधारा की दिशा प्रदान की | अपने चिकित्सकीय सेवा को भी जारी रखते हुए वर्तमान में आप इन्द्रप्रस्थ अपोलो हास्पिटल, दिल्ली में सीनियर कंसल्टेंट सर्जन हैं तथा भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य व जम्मू-कश्मीर के सह प्रभारी हैं | आप भाजपा चिकित्सा प्रकोष्ठ के अखिल भारतीय संयोजक तथा उत्तराखंड के सह प्रभारी के दायित्व में भी रह चुकें हैं |

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