राम के मित्र महावीर हनुमान का आदर्श व अनुकरणीय जीवन

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Hanuman-Jayanti2-Wallpaperमनमोहन कुमार आर्य

आज आर्य धर्म व संस्कृति के महान आदर्श आजन्म ब्रह्मचारी महावीर हनुमान जी की जयन्ती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के साथ महावीर हनुमान जी का नाम भी इतिहास में अमर है व रहेगा। उनके समान  ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, स्वामी-भक्त, अपने स्वामी के कार्यों को प्राणपण से पूरा करने वाला व सभी कार्यों को सफल करने वाला, आर्य धर्म व संस्कृति का उनके समान विद्वान व आचरणीय पुरुष विश्व इतिहास में अन्यतम है। वीर हनुमान जी ने श्रेष्ठतम वैदिक धर्म व संस्कृति का वरण कर उसका हर पल व हर क्षण पालन किया। वह आजीवन ब्रह्मचारी रहे। रामायण एक प्राचीन ग्रन्थ होने के कारण उसमें अन्य ग्रन्थों की भांति बड़ी मात्रा में प्रक्षेप हुए हैं। कुछ प्रक्षेप उनके ब्रह्मचर्य जीवन को दूषित भी करते हैं जबकि हमारा अनुमान व निश्चय है कि उन्होंने जीवन भर कठोर व असम्भव ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्ण रूप से पालन किया था। वैदिक धर्म व संस्कृति की यह विशेषता रही है कि इसमें महाभारतकाल से पूर्व काल में बड़ी संख्या में आदर्श राजा, वेदों के पारदर्शी व तलस्पर्शी गूढ़ विद्वान, ऋषि, मुनि, योगी, दर्शन-तत्ववेत्ता, आदर्श गृहस्थी, देश-धर्म-संस्कृति को गौरव प्रदान करने वाले स्त्री व पुरुष उत्पन्न हुए हैं जिनमें वीर हनुमान जी का स्थान बहुत ऊंचा एवं गौरवपूर्ण है।

हनुमान जी वानरराज राजा सुग्रीव के विद्वान मन्त्री थे। वानरराज बाली व सुग्रीव भाईयों के परस्पर विवाद में धर्मात्मा सुग्रीव को राजच्युत कर राजधानी से निकाल दिया गया था। वह वनों में अकेले विचरण करते थे। वहां उनका साथ यदि किसी ने दिया तो वीर हनुमान जी ने दिया था। धर्म पर आरूढ़ हनुमान जी ने सत्य व धर्म का साथ दिया व राजसुखों का त्याग कर वनों के कठोर जीवन को चुना। राम वनवास के बाद जब रावण ने महारानी सीता जी का हरण किया तो इस घटना के बाद श्री रामचन्द्र जी की भेंट पदच्युत राजा सुग्रीव के मंत्री हनुमान से होती है। राम व हनुमान जी में परस्पर संस्कृत में संवाद होता है। रामचन्द्र जी हनुमान की संस्कृत के ज्ञान व भाषा पर अधिकार व व्यवहार करने की योग्यता से प्रभावित होते हैं और अपने भ्राता लक्ष्मण को कहते हैं कि यह हनुमान वेदों का जानकार व विद्वान है। इसने जो बाते कहीं हैं, उसमें उसने व्याकरण संबंधी कोई साधारण सी भी भूल व त्रुटि नहीं की। इस घटना से हनुमान जी की बौद्धिक क्षमता व राजनैतिक कुशलता आदि का ज्ञान होता है। हनुमान जी की प्रशंसा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी ने स्वयं अपने श्रीमुख से वाल्मीकि रामायण में की है।

हनुमान जी का मुख्य कार्य महारानी सीता की खोज व राम रावण युद्ध में रामचन्द्र जी की सहायता व उनकी विजय में मुख्य सहायक होना भी है। उन्होंने हजारों वर्ष पूर्व लंका पहुंचने के लिए समुद्र को तैर कर पार किया था, ऐसा अनुमान होता है। साहित्यकार व कवि कई बार तैरने को भी भावना की उच्च उड़ान में घटनाओं को अलंकारिक रूप देकर उसे लाघंना कह सकते हैं। यह उनका वीरता का अपूर्व व महानतम उदाहरण है। वह लंका पहुंचे और माता सीता से मिले और उन्हें पुनः रामचन्द्र जी के दर्शन व उनसे मिलने के लिए आश्वस्त किया। उन्होंने लंका में अपने बल का परिचय भी दिया जिससे यह विदित हो जाये कि राम अविजेय हैं और लंका का बुरा समय निकट है। हनुमान जी रावण के दरबार में भी पहुंचे और वहां रामचन्द्र जी का सन्देश सुनाने के बाद अपनी वीरता व पराक्रम के उदाहरण प्रस्तुत किये। लंका के सेनापति, सैनिक व रावण के परिवार के लोग चाह कर भी उनको बन्दी बना कर दण्डित नहीं कर पाये और वह सकुशल लंका से बाहर आकर, माता सीता से मिलकर रामचन्द्र जी के पास सकुशल पहुंच गये और उन्हें माता सीता के लंका में जीवित होने का समाचार दिया। यह कितना बड़ा कार्य हनुमान ने किया था, यह रामचन्द्र जी ही भली भांति जानते थे। इस कार्य ने रामचन्द्र जी को उनका एक प्रकार से कृतज्ञ बना दिया था। इसके बाद राम-रावण युद्ध होने पर भी समुद्र पर पुल निर्माण और लक्ष्मण जी के युद्ध में घायल व मूच्र्छित होने पर उनके लिए वहां से हिमालय पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाना हनुमान जी जैसे वीर व विचारशील मनीषी का ही काम था। बताया जाता है कि वह उड़कर हिमालय पर्वत पर पहुंचे थे। ऐसा होना सम्भव नहीं दीखता। यह सम्भव है कि उन्होंने अवश्य किसी विमान की सहायता ली होगी अन्यथा वह हिमालय शायद न पहुंच पाते। मनुष्य का बिना किसी विमान आदि साधन के उड़कर जाना असम्भव है। साधारण भाषा में आज भी विमान में यात्रा करने वाला व्यक्ति कहता है मैं एयर से अमुक स्थान पर गया था। इसी प्रकार विमान के लिए उड़ कर जाने जैसे शब्दों का प्रयोग रामायण में किया गया है। आज ज्ञान व विज्ञान उन्नति के शिखर पर हैं परन्तु आज भी संसार के 7 अरब मनुष्यों में से किसी को उड़ने की विद्या व कला का ज्ञान नहीं है। अतः यही स्वीकार करना पड़ता है व स्वीकार करना चाहिये कि हनुमान जी किसी छोटे स्वचालित विमान से हिमालय पर आये और संजीवनी आदि इच्छित औषधियां लेकर वापिस लंका पहुंच गये थे। यह भी वर्णन कर दें कि प्राचीन साहित्य में इस बात का उल्लेख हुआ है कि उन दिनों निर्धन व्यक्तियों के पास भी अपने अपने विमान हुआ करते थे। सृष्टि के आरम्भ काल में भी लोग विमान से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे और उन्हें जहां जो स्थान अच्छा लगता था, वह वहीं जाकर अपने परिवारों व इष्ट मित्रों सहित बस जाते थे। इसी प्रकार से सारा संसार यूरोप व अरब आदि के देश बसे हंै। यह तथ्य है कि आदि सृष्टि भारत के तिब्बत में हुई थी। सृष्टि के आदि काल में नेपाल, तिब्बत व चीन आदि देश नहीं थे। तब सारा ही आर्यावर्त्त था।

माता सीता के प्रति हनुमान जी का माता-पुत्र की भांति अनुराग व प्रेम था। विश्व इतिहास में यह माता-पुत्र का संबंध भी विशेष महत्व रखता है। आज संसार के सभी देश व उनके नागरिक हनुमान जी के चरित्र की इस विशेषता से बहुत कुछ सीख सकते हैं। ‘‘पर दारेषु मात्रेषु” अर्थात् अन्य सभी स्त्रियां माता के समान होती हैं। यह भावना वैदिक संस्कृति की देन है। यह वैदिक धर्म व संस्कृति का गौरव भी है। आदर्श को अच्छा मानने वालों को इसी स्थान पर आना होगा अर्थात् वैदिक धर्म व संस्कृति को अंगीकार करना होगा।

हमारे पौराणिक भाई हनुमान जी को वानर शब्द के कारण बन्दर समझते हैं जो कि उचित नहीं है। हनुमान जी हमारे जैसे ही मनुष्य थे तथा वनों में रहने के कारण वानर कहलाते थे। आजकल भारत में इसका एक प्रदेश नागालैण्ड है जिसके निवासी नागा कहलाते हैं। देश व विश्व में कोई उनकी सांप के समान आकृति नहीं बनाता। इसी प्रकार इंग्लिश, चीनी, जर्मनी, फ्रांसीसी आदि नागरिक हैं। यह सब हमारे जैसे ही हैं और हम उनके जैसे। इसी प्रकार से हनुमान व सुग्रीव आदि सभी वानर हमारे समान ही मनुष्य थे। उनमें से किसी की पूंछ नहीं थी। उनकी पूंछ मानना व चित्रों में चित्रित करना बुद्धि का मजाक व दिवालियापन है। वैदिक धर्मी मननशील व सत्यासत्य के विवेकी लोगों को कहते हैं। अतः वानर हनुमान जी बिना पूछ वाले राम, लक्ष्मण व अन्य मनुष्यों के समान ही मनुष्य थे, यह विवेकपूर्ण एवं निर्विवाद है। इस पर विचार करना चाहिये और इसी विचार व मान्यता का सभी पौराणिक भाईयों को अनुसरण भी करना चाहिये। हनुमान जी की पूंछ मानने वाले हमारे भाई इक्कीसवीं सदी में दूसरों का मजाक न बने और अपने महापुरुषों का अपमान न करायें, यह हमारी उनसे विनम्र प्रार्थना है। इसी के साथ इस संक्षिप्त लेख को विराम देते हैं और भारतीयों व विश्व के आदर्श हनुमान जी को स्मरण कर उनसे प्रेरणा ग्रहण कर उनके पथ का अनुसरण करने का प्रयास करने का व्रत लेते हैं।

4 COMMENTS

  1. एक बार मैं सम्यक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित बाबा साहब अंबेडकर की एक पुस्तक पढ़ रहा था, जिसका नाम है – “सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें”.
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    इस 56 पेज की पुस्तक को पढ़ते हुए जब मैं पेज नंबर 32 पर पहुंचा तो मुझे हनुमान के बारे में एक आश्चर्यजनक जानकारी मिली।
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    अंबेडकर कहते हैं कि –
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    “”हनुमान की पूजा अस्पृश्य और शूद्र करते हैं। सप्ताह में एक बार उपवास भी करते हैं। बंदरनुमा देवता की पूजा करके अस्पृश्य और शूद्र अपना उद्धार करना चाहते हैं, हनुमान बड़ा व्यभिचारी था।

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    वाल्मीकि रामायण (सर्ग 128, श्लोक 44 युद्ध कांड) में कहा गया है कि जब उस बंदरनुमा मनुष्य ने राम और सीता के सम्बंध में कुशल समाचार भरत को दिया तब भरत ने इसे 16 लड़कियों को उपहार में दिया। हिन्दू धर्म का आधार रामायण कि कथाएँ हैं। “”
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    अब इसको पढ़कर मैं सोचने लगा कि हनुमानजी के बारे में तो यही सुना है कि वे बाल-ब्रह्मचारी थे, स्त्री के कभी नजदीक भी नहीं जाते थे, लोग भी यही समझते हैं।
    तो पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, लेकिन फिर ये बात अंबेडकर ने लिखी है तो कुछ सोचकर-पढ़कर ही लिखी होगी।
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    मैंने तो ठान ली कि मुझे ये 16 लड़कियों वाली बात की पुष्टि करनी है। जब Internet पर वाल्मीकि रामायण (सर्ग 128, श्लोक 44 युद्ध कांड) पढ़ा तो मुझे इस बात की पुष्टि मिल गयी। लेकिन वो पेज साफ नहीं था . Internet पर जो वाल्मीकि रामायण है उसमें 130 सर्ग (अध्याय) हैं।
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    तो इस बात को पक्का करने के लिए मैं गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित वाल्मीकि रामायण (प्रथम खंड एवं द्वितीय खंड ) खरीदकर घर लाया, तो मुझे उसमें ढूँढने में थोड़ी मुश्किल हुई, क्यूंकि गीताप्रेस, गोरखपुर वाली वाल्मीकि रामायण में सिर्फ 128 सर्ग (अध्याय) हैं।
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    थोड़ी खोजबीन की तो गीताप्रेस, गोरखपुर वाली वाल्मीकि रामायण के अध्याय 125, श्लोक 44-45 से यह बात स्पष्ट हो गयी. जिसमें भरत हनुमान को उपहार के रूप में जो दे रहे हैं वो है –
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    1 लाख गायें,
    100 उत्तम गाँव,
    16 कुलीन व उत्तम कुमारी कन्याएँ पत्नी रूप में
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    अब जिसको उपरोक्त उपहार दिये गए हो, वो बंदर तो नहीं हो सकता, इंसान ही रहा होगा

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    अब पाठकगण खुद ही फैसला करें कि हनुमान क्या थे ?
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    • बरखुरदार, मुझ पाठक ने फैसला किया है कि जो लोग दो शतक से ऊपर हिन्दू-विरोधियों के गोद में खेले हैं, बड़े पले हैं, और जिन्होंने उनकी सेवा में भारतीय उप महाद्वीप के मूल निवासियों का शोषण किया है वे मेरा मार्गदर्शन नहीं कर सकते| आज स्वतन्त्र भारत में सद्भाव व भारतीयों में परस्पर आदर-सम्मान जगाने हेतु उन्हें भुलाना होगा|

      • ंआपके कमेन्ट के सन्दर्भ में निवेदन है कि मैंने श्री भुवनेश कुमार जी के कमेन्ट का उपर उत्तर दिया है। आप कृपया उसे देखने का कष्ट करें। इसी में आपके कमेन्ट का उत्तर व स्पष्टीकरण विद्यमान है। सादर।

    • बाल्मीक रामायण अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ है। इसकी रचना लाखों व करोड़ों वर्ष पूर्व हुई थी। महाभारत काल के बाद भारत में अविद्या का अन्धकार फैल गया। इस अविद्या प्रधान मध्यकाल में स्वार्थी लोगों ने मनुस्मृति, बाल्मीकी रामायण और महाभारत आदि ग्रन्थों में बड़ी मात्रा में प्रक्षेप अर्थात् मिलावट की है। उन्हें सफलता इस लिए भी मिल गई की उन दिनों आजकल की तरह मुद्रण की सुविधा नहीं थी। ऐसा भी नहीं है कि किसी एक ही व्यक्ति ने एक समय में ही प्रक्षेप किया हो। यह सिलसिला जारी रहा और समय समय पर अनेक लोगों ने अनेकानेक प्रक्षेप किये है जिससे उनका स्वार्थ सिद्ध हो सके। हनुमान जी का जो मूल चरित्र है, वह बाल ब्रह्मचारी थे। राम के राज्याभिषेक तक भी ब्रह्मचारी रहे। रामचन्द्र जी के राजा बन जाने के बाद भरत जी द्वारा उन्हें उपहार दिया जाना उचित नहीं था। वह रामचन्द्र्र जी के मित्रवत् थे। बाल ब्रह्मचारी को या तो देश प्रिय होता है या फिर ईश्वर प्राप्ति के लिए साधना व अज्ञानियों का मार्ग दर्शन। यदि भरत जी उन्हें कोई उपहार देते भी तो वह सधन्यवाद अस्वीकार कर देते। अतः विवेकीजन कभी बाल्मीकी रामायण के उक्त प्रक्षेप को स्वीकार नहीं कर सकते। यह महर्षि बाल्मीकि जी का लिखा व रचा नहीं है। यह प्रक्षेप हनुमान जी पर मिथ्या दोषारोपण है। जहां तक डा. अम्बेडकर जी की बात है, वह महर्शि दयानन्द जी की तरह वेद, वैदिक साहित्य, धर्म व दर्शन किंवा संस्कृत के पारदर्शी विद्वान नहीं थे। वह कानून के अध्येता थे। अतः उन्होंने पुस्तक पढ़कर यह बात लिखी है। इस विषय में हम यही कह सकते हैं कि अम्बेडकर जी बाल्मीकी रामायण के प्रक्षेपों को जान व पहचान नहीं सके। यह उनका क्षेत्र ही नहीं था। इसके लिए दोषी यदि कोई है तो वह प्रक्षेपकर्ता हैं। इसमें अम्बेडकर जी की गलती नहीं है। बाल्मीकि रामायण के विषय में यदि प्रामाणिकता है तो वह महर्षि दयानन्द की विचारधारा की है। ऋषि दयानन्द सहित उनके उत्तरवत्र्ती सभी वैदिक विद्वान भी प्रामाणिक हैं। अतः हनुमान जी के जीवन व चरित्र पर किसी पौराणिक विद्वान द्वारा किया गया प्रक्षेप स्वीकार नहीं किया जा सकता। सत्यानुगामी लोग विवेचना कर सत्य का ग्रहण करते हैं और असत्य का त्याग कर देते हैं। अतः सच्चरित्र के धनी हनुमान जी सबके आदर्श हैं व आदर के योग्य हैं। यही उनकी पूजा है। उपासनीय तो केवल एक ईश्वर है जो सर्वव्यापक है और जिसने संसार को बनाकर न केवल हमें जन्म दिया है अपितु वह हमारे सभी कर्मों का द्रष्टा और पालक है। इति।

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