
डा. राधेश्याम द्विवेदी
प्राचीन इतिहास के अनुसार अयोध्या पवित्रतम शहरों में एक शहर है,जहां हिंदू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म की धार्मिक आस्थाओं को एक साथ एकजुट भारी पवित्र महत्व की एक जगह के निर्माण के लिए की गई थी। अथर्ववेद में, इस जगह एक समृद्ध शहरथा जो देवताओं द्वारा स्वर्ग के रूप में ही के रूप में वर्णित किया गया था। प्राचीन कोशल की शक्तिशाली राज्य के रूप में अपनी राजधानी अयोध्या थी। इस शहर में भी 600 ईसा पूर्व में एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र था। 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व व्यापक रूप से धारणा आयोजित है कि बुद्ध कई मौकों पर अयोध्या का दौरा किया है, जो यह 5वीं शताब्दी ईस्वी तक बने रहे के दौरान एक महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र होने के लिए इस जगह की पहचान की है।
वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग 144 कि.मी) लम्बाई , तीन योजन (36 कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी । कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम ऐवम जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।
इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। उक्त क्षत्रियों में दाशरथी रामचंद्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे।
अयोध्या – साकेत भारत का एक प्राचीन शहर भी जाना जाता है । यही राम का जन्मस्थान माना जा रहा है। यही अयोध्या कोशल किंगडम की प्राचीन राजधानी हुआ करता था । यह 93 मीटर (305 फीट) की एक औसत ऊंचाई है। राम के जन्मस्थान के रूप में विश्वास के कारण, अयोध्या सात सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों से एक के रूप में माना गया है। माना जाता है कि राम का जन्म स्थान एक मंदिर है, जो मुगल सम्राट बाबरके आदेश से ध्वस्त कर दिया था और मुगल सम्राट बाबर जन्मस्थान की जगह में एक मस्जिद खड़ा किया।
अयोध्या नदी के दाहिने किनारे पर है सरयू है । यह शहर विष्णु के सातवें अवतार राम के साथ बारीकी से जुड़ा हुआ है । रामायण के अनुसार, शहर में 9,000 साल पुराना है और मनु द्वारा स्थापित किया गया था मनु वेदों में पहला आदमी है, और हिंदुओं की कानून-दाता। स्वर्ग द्वार राम के अंतिम संस्कार के स्थल माना जा रहा है। मणि पर्वत और पर्वत सुग्रीव प्राचीन टीले पृथ्वी, प्रथम अशोक सम्राट द्वारा बनाया गया एक स्तूप पहचाने जाते हैं , और दूसरा एक प्राचीन मठ है। त्रेता के ठाकुर एक मंदिर राम के अश्वमेध यज्ञ की साइट पर खड़ा है । तीन सदियों पहले, कुल्लू के राजा एक नया मंदिर है, जिसके द्वारा सुधार किया गया था बनाया अहिल्याबाई होल्कर 1784 में इंदौर के एक ही समय आसन्न घाटों का निर्माण किया गया। काला बलुआ पत्थर में प्रारंभिक मूर्तियों सरयू से बरामद किया और नए मंदिर है, जो काला राम मंदिर के रूप में जाना जाता था। इस प्राचीन नगर के अवशेष अब खंडहर के रूप में रह गए हैं जिसमें कहीं कहीं कुछ अच्छे मंदिर भी हैं।
कुछ अच्छे मंदिर:- वर्तमान अयोघ्या के प्राचीन मंदिरों में सीतारसोई तथा हनुमानगढ़ी मुख्य हैं। कुछ मंदिर 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में बने जिनमें कनकभवन, नागेश्वरनाथ तथा दर्शनसिंह मंदिर दर्शनीय हैं। कुछ जैन मंदिर भी हैं। यहाँ पर वर्ष में तीन मेले लगते हैं – मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त तथा अक्टूबर-नंवबर के महीनों में। इन अवसरों पर यहाँ लाखों यात्री आते हैं। अब यह एक तीर्थस्थान के रूप में ही रह गया है।
रामकोट :-शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट अयोध्या में पूजा का प्रमुख स्थान है। यहां भारत और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का साल भर आना जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला रामनवमी पर्व यहां बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।
त्रेता के ठाकुर :-यह मंदिर उस स्थान पर बना है जहां भगवान राम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। लगभग 300 साल पहले कुल्लू के राजा ने यहां एक नया मंदिर बनवाया। इस मंदिर में इंदौर के अहिल्याबाई होल्कर ने 1784 में और सुधार किया। उसी समय मंदिर से सटे हुए घाट भी बनवाए गए। कालेराम का मंदिर नाम से लोकप्रिय नये मंदिर में जो काले बलुआ पत्थर की प्रतिमा स्थापित है वह सरयू नदी से प्राप्त हुई थी।
राघवजी का मन्दिर:- ये मन्दिर अयोध्या नगर के केन्द्र मे स्थित बहुत ही प्रचीन भगवान श्री रामजी का स्थान है जिस्को हम (राघवजी का मंदिर) नाम से भी जानते है मन्दिर मे स्थित भगवान राघवजी अकेले ही विराजमान है ये मात्र एक ऐसा मंदिर है जिसमे भगवन जी के साथ माता सीताजी की मूर्ती बिराजमान नहीं है सरयू जी में स्नान करने के बाद राघव जी के दर्शन किये जाते है
रामनवमी एक प्रमुख कार्यक्रम
अयोध्या अपने नाम का एक प्राचीन गढ़ तथा पूजा का मुख्य स्थान है, साल भर तीर्थयात्रियों ने दौरा किया है यह दुनिया भर से भक्तों को रामनवमी , राम के जन्म के दिन आकर्षित करते है जो चैत्र , मार्च और अप्रैल के बीच आता है। रामनवमी हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसे भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में सम्पूर्ण भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि असुरों के राजा रावण का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने त्रेता युग में राम के रूप में विष्णु का सातवां अवतार लिया था। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, राम का जन्म चैत्र मास की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में अयोध्या के राजा दशरथ की पहली पत्नी कौशल्या के गर्भ से हुआ था। तब से यह दिन समस्त भारत में रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। जीवनर्पयत मर्यादा का पालन करने की वजह से वह ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के नाम से जाने गए। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी उन्होंने अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए वैभव का त्यागकर 14 वर्ष तक जंगल में व्यतीत किया और इन्हीं गुणों से भगवान राम युगों-युगों तक भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ते आए हैं।
रामनवमी के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर उनकी जन्मस्थली अयोध्या नगरी में उत्सव का माहौल रहता है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस अवसर पर प्रात:काल सरयू नदी में स्नान कर पूजा-अर्चना शुरू कर देते हैं तथा दोपहर बारह बजे से पहले उनके जन्मदिन की प्रतीकात्मक तैयारी के लिए यह कार्यक्रम रोक दिया जाता है और बारह बजते ही अयोध्या नगरी में उनके नाम की जय जयकार शुरू हो जाती है। अयोध्या के प्रसिद्ध कनक भवन मंदिर में भगवान राम के जन्म को भव्य तरीके से मनाए जाने का रिवाज है। उनके जन्म के प्रतीक के रूप में विभिन्न मंदिरों में बधाई गीत और रामचरित मानस के बालकांड की चौपाइयों का पाठ किया जाता है। किन्नरों के समूह भी भगवान राम के आगमन को महसूस करते हुए सोहर गाते हैं और नृत्य करते हैं। अयोध्या के साथ ही पूरे देश में इस दिन भगवान राम, उनकी पत्नी सीता, छोटे भाई लक्ष्मण और भक्त हनुमान की रथ यात्राएं निकाली जाती हैं। उत्तर एवं पूर्वी भारत में कच्चे बांस के सहारे लाल रंग का ध्वज श्रद्धालु अपने घरों एवं मंदिरों में लगाते हैं जिसमें भक्त हनुमान की आकृति बनी होती है। इस अवसर पर पूजा के अलावा व्रत का भी विधान है जिसका सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दोनों महत्व है। आमतौर पर घरों एवं मंदिरों में रामदरबार का आयोजन कर उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस व्रत से श्रद्धालु भक्ति के साथ मुक्ति भी प्राप्त करते हैं।