डॉ. वेदप्रताप वैदिक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत के बयान का मैं हार्दिक स्वागत करता हूं। उन्होंने वही बात कहने की हिम्मत दिखाई है, जो मैं पिछले कई वर्षों से लिख रहा हूं और कह रहा हूं। मोहनजी ने यही तो कहा है कि आरक्षण के आधार पर पुनर्विचार हो ताकि वास्तविक वंचितों तक उसके फायदे पहुंचाए जा सकें। उन्होंने यह तो नहीं कहा कि आरक्षण ही खत्म कर दो। उनकी बात को ज़रा ध्यान से समझें तो उसका अर्थ यही निकलेगा कि आरक्षण को व्यापक बनाओ ताकि वह सर्वहितकारी बन सके। उन्होंने जैसा आयोग बनाने का सुझाव दिया है, वह सर्वथा वैज्ञानिक है। उन्होंने आरक्षण से राजनीतिक फायदे उठाने को भी अनुचित बताया है।
इसमें मोहनजी ने गलत क्या कहा है? मोहनजी की बात से सबसे ज्यादा मिर्ची किसे लगी है? मलाईदार नेताओं को! पिछड़ों के मलाईदार वर्गों में सबसे ज्यादा मलाई मारनेवाले नेता बौखला गए हैं। उन्हें डर लग रहा है कि कहीं उनकी दुकानों पर ताले न पड़ जाएं। उनकी दुकान में सिर्फ एक ही सड़ी रबड़ी बिकती है, जिसका नाम है, जातिवाद। यदि जातिवाद खत्म हो गया तो ये नेतागण तो बेचारे भूखे मर जाएंगे। इन्हें वोट कौन देगा? ये अपनी ‘ईमानदारी’, ‘सज्जनता’, ‘सादगी’ और ‘योग्यता’ के लिए सारे देश में कुख्यात हो चुके हैं। पिछड़े, आदिवासी और अनुसूचित लोगों को भी पता चल गया है कि उनके अवसरों पर झपट्टा मारनेवाला वर्ग कौनसा है? उनके नेता ही उनकी पीठ में छुरा भोंकने का काम कर रहे हैं। वे लोग किसी की दया और भीख पर जिंदा नहीं रहना चाहते। वे चाहते हैं कि वे इस योग्य बनें कि नौकरियां खुद चलकर उनके पास आएं। यह तभी हो सकता है जबकि उनके बच्चे सुशिक्षित होंगे। यदि शिक्षा में उन्हें शत प्रतिशत आरक्षण मिलेगा तो नौकरी उन्हें अपने आप मिलेंगी। यदि वे शिक्षित नहीं होंगे तो आरक्षित नौकरी भी उन्हें कौन दे देगा? शिक्षा में आरक्षण उन सबको मिलेगा, जो गरीब हैं, वंचित हैं, जरुरतमंद हैं। जात के आधार पर नहीं, जरुरत के आधार पर आरक्षण मिलेगा। इस नई व्यवस्था में कोई दलित, कोई आदिवासी, कोई पिछड़ा छूटेगा नहीं। उनमें सिर्फ जो मलाईदार लोग हैं, वे छूट जाएंगे। वे अगड़ों से भी अगड़े हैं। मोहनजी तो इतनी दूर भी नहीं गए हैं। उन्होंने तो सिर्फ इशारा किया है। नए सोच की जरुरत बताई है। गुजरात में पटेलों, महाराष्ट्र में मराठों, हरयाणा में जाटों और राजस्थान में गूजरों के आंदोलन ने भी इस जरुरत को रेखांकित किया है। आरक्षण की अटपटी और अवैज्ञानिक व्यवस्था के कारण भारत की विभिन्न जातियों में गृहयुद्ध की नौबत न पैदा हो जाए, इसीलिए सरकार और सारे देश को मोहनजी के सुझाव पर ध्यान देना चाहिए।
वैदिक जी,
आज तक आरक्षण के नाम पर अशिक्षित या अल्प शिक्षितों को ही तो नौकरियाँ देती आयी हैं सरकारें. बेचारे शिक्षित तो मारे ही गए जातिवाद के चक्कर में.