अंग्रेजी हकूमत का काल बन गये थे मंगल पांडे

19 जुलाई मंगल पांडे जयन्ती पर खासः
शादाब ज़फ़र॔,शादाब’’

आज मंगलवार है, और उस महान देश भक्त की आज जयन्ती भी है जिसे हम सब लोग मंगल पांडे के नाम से जानते है। 19 जुलाई 1827 को नगवा (बलिया) में जन्मे मंगल पांडे ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह का जो कदम उठाया था बस वो कदम ही अंग्रेजी हकूमत का काल बन गया। मंगल पांडे अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में ऐसे अमर शहीदो में शुमार होते
है जिन्होने 1857 में क्रांति का बिगुल उत्तर प्रदेश के मेरठ की जमीन से बजा कर भारत पर कब्जा किये बैठी गोरी हकूमत की जडो को हिला कर रख दिया था। अंग्रेजी हकूमत ईस्ट इंडिया कंपनी में बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इनफैंट्री में अपनी सेवाए देने वाले इस देश प्रेमी के मन में अपने भारतीय भाईयो पर अगंरेजी हकूमत के जुल्मो सितम देख कब अ्रग्रेजी हकुमत के खिलाफ आग धधक ने लगी पता ही नही।
अपनी फौज में इनफील्ड पी53 राईफल शामिल कर अंग्रेजो ने आजादी की लडाई को एक मजबूत आधार प्रदान कर दिया। दरअसल इस राईफल में इस्तेमाल होने वाले कारतूस के बारे में जब मंगल पांडे की बटालियन को ये पता चला कि इस कारतूस को बनाने में गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग किया गया है तो हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों में रोष पैदा हो गया इन लोगो को लगा के अंग्रेज ऐसा जानबूझ कर हिन्दू मुसलमानो का धर्म नष्ट करने के लिये कर रहे है। क्यो कि ये धर्म के प्रति उन की आस्था के खिलाफ था क्यो कि इन कारतूसो को मुॅह से काटकर राईफल में भरा जाता था। इस के चलते हिन्दू और मुसलमान सैनिको ने अंग्रेजो को सबक सिखाने की मन ही मन में ठान ली और उक्त कारतूसो का इस्तेमाल करने से भी इंकार कर दिया। अंग्रेजी अफसरो को जब ये पता चला तो वो बोखला गये। 29 मार्च 1857 को अंग्रेजी हकूमत ने बैरकपुर की सैनिक छावनी 34वीं बंगाल नेटिव इनफैंट्री के सिपाहियो को मैदान में बुला कर राईफल इनफील्ड पी53 में सिपाहियो द्वारा प्रतिबंधित कारतूस को भर कर फायर करने को कहा पर अंग्रेज अफसरो की यातनाओ के बावजूद किसी भी सैनिक ने उस कारतूस को मुॅह से काटकर राईफल में नही भरा। अंगं्रेज अफसर मेजर हृासन मंगल झल्ला उठा और मंगल पाडे की राईफल छीनने को आगे बढ़ा पर मन में इस से पहले की कोई कुछ समझ पाता मंगल पांडे ने उस अफसर पर हमला करते हुए अपने साथियो से उनका साथ देने का आहृान किया पर उन में कोई भी कोर्ट माशर्ल के डर से मंगल पांडे का साथ देने के लिये आगे नही बढ़ा । निडर और देश भक्त का जज्बा दिल में रखने वाले इस सच्चे देश भक्त ने इस बात की जरा भी परवाह नही की और अपनी राईफल से उस अंग्रेज अफसर को वही मौत के घाट उतार जो उन की वर्दी और राईफल छीनने आगे बढ़ा था।
विद्रोही मंगल पांडे को अंग्रेज सैनिको ने पकड लिया। उन की गिरफ्तारी की खबर देशभर की सैनिक छावनियो में जंगल में आग की तरह की तरह फैल गई और विप्लवी भारतीय सैनिको ने बगावत का झंडा बुंलद कर दिया। मंगल पांडे द्वारा लगाई गई विद्रोह की ये चिंगारी पूरे देश में भडक उठी। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे का अंग्रेजी हकूमत में कार्ट माशर्ल हुआ। कोर्ट माशर्ल में अंग्रेज अफसर की हत्या के जुर्म में मंगल पांडे को फांसी देने के लिये 6 अप्रैल की तारीख तय गई। मंगल पांडे की फांसी की खबर ने देश में आग लगा दी। देश के हर व्यक्ति को अंग्रेजो के खिलाफ उद्वेलित कर दिया। पूरे देश में अंग्रेजो के खिलाफ संग्राम छिड गया। मंगल वांडे कि लगाई चिंगारी को ज्वालामुखी बनते देख पूरी अंग्रेजी हकूमत हिल गई और सोचने लगी कि यदि मंगल पांडे कि फांसी में देर की गई तो हिन्दुस्तानी बगावत उस के शासन को तबाह बरबाद कर देगीं। इस लिये डर के मारे तय तारीख से 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।
वीर पुरूष मंगल पांडे द्वारा लगाई गई स्वाधीनता संग्राम की आग देश के कोने कोने में फैल गई और मंगल पाडे की फांसी के एक महीना बाद 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गई। जिस ने अंग्रेजो को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। भारत के इस महान स्वतंत्रा सेनानी की फांसी के बाद महीनो देश में स्वतंत्रता की लडाई चलती रही। आगे चलकर 1857 के गदर का नाम मिला। लेकिन बाद में इसे पहली जंग ए आजादी के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सच मंगल पांडे जैसा देश भक्त सदियो में एक बार पैदा होता है
आज गंदी राजनीति के चलते देश पर मर मिटने वाले शहीदो को नगर निगम की कूडा गाडी में उनके पार्थिव शरीर को लाया जाता है। वही आज देश पर देश पर मर मिटने वाले जवानो और उन के परिवार वालो के पास इतना पैसा भी नही कि ये लोग देश पर मर मिटने वाले अपने लाल का अंतिम सस्कार भी कर सकें। छत्तीसग रायपुर गरियाबाद की नक्सली हिंसा में शहीद हुए जवान होमंश्वर ठाकुर का अंतिम संस्कार करने के लिये उस के परिवार को 30 हजार रूपये उधार लेने पडे। सरकार द्वारा सहायता राशि का ऐलान तो कर दिया गया था किन्तु संबंधित अफसर नक्सली हिंसा में शहीद हुए जवान के परिवार तक सरकारी सहायता राशि नही पहॅुचा पाये। सहायता राशि पहुचने में इतनी देर हुई की शहीद के परिवार ने कर्ज लेकर भारत मां की रक्षा करते हुए अपनी जान लुटाने वाले अपने लाल का अंतिम संस्कार कर्ज के पैसे से किया।

2 COMMENTS

  1. १८५७ के स्वतंत्रता के संग्राम में श्री मंगल पाण्डेय के योगदान को भारत कभी भुला नहीं पायेगा.
    हाँ यह अलग बात है की कुछ सालो बाद इतिहास धीरे धीरे बदल दिया जय और १८५७ की क्रांति को लूट मार के रूप में दिखाया जाय.

  2. जफ़र साहब आप धर्मनिरपेक्ष कतई नही है

    आपने एक हिन्दू आतंकवादी की प्रशंसा की है आप पर सरिया के अनुसार द्न्दत्म्क कार्यवाई होनी चाहिए .

    आप संघ के समर्थक है आपका लेख तो यही बया कर रहा है .

    मै राजमाता और देश के गद्दार नेताओ से आपकी फंसी की संस्तुति करता हूँ .

    शादाब जी बस इतना ही कहना चाहुगा आप अपने विचार ऐसे ही जनमानस तक पहुचाते रहे ,

    बहुत बहुत धन्यवाद

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