लिव इन में रह रही युवती के अपहरण का प्रयास , महिला पर चढ़ाई गाड़ी ।यह खबर आज के समाचार पत्रों में प्रकाशित है । शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जिस दिन एक या एक से अधिक समाचार इस तरह की घटनाओं को लेकर प्रकाशित न होते हों । भारतीय समाज में इस तरह की घटनाएं कुछ ही वर्षो पूर्व से सुनने को मिल रही है। लिव इन रिलेशन के मामले और उससे होने वाली दुष्परिणाम की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई है । कहाँ जाकर इसका समापन होगा या यह समाज को पूरी तरह डुबो देगी कहा नही जा सकता। ताजा घटना क्रम में लिव इन रिलेशन में रह रही तावडू की एक युवती का अपहरण करने तथा उसके प्रेमी की माँ पर गाड़ी चढ़ाने का मामला सामने आया है। यह कोई एक मामला नही है इससे भी बहुत अधिक गंभीर मामले आए दिन सामने आ रहे हैं ।हर रोज प्रेमी से मिलकर पति की निर्मम हत्या के मामले सामने आ रहे हैं । कर्नाटक में पत्नी द्वारा डीजीपी पति की निर्मम हत्या भी कुछ- कुछ इसी से जुड़ा मामला सामने आया है। इस तरह की अधिकतर घटनाएं लिव इन से ही जुड़ी हुई होती है।
हरियाणा महिला आयोग की चेयर पर्सन रेणु भाटिया ने भी लिव इन की घटनाओं को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि लिव इन कानून मेरी नजरो में गलत पास हुआ है । उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि लगभग 60%केस ऐसे होते हैं जिनमे सहमति से महिला व पुरुष लिव इन में रहते हैं और बाद में मनमुटाव होने पर दुष्कर्म का केस दर्ज करवा देते हैं । उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि मैं इस कानून के पूरी तरह विरुद्ध हूँ । यदि मुझे मौका मिला तो इसके विरुद्ध जरूर आवाज उठाउंगी।
भारतीय समाज में तो इस तरह के लिव इन समाज की कल्पना भी कुछ वर्षों पूर्व तक हास्यस्पद लगती थी जहाँ जिस समाज में सात जन्मों तक का बंधन माना जाता है यानी पति – पत्नी का संबंध सात जन्मों तक चलता है । वैवाहिक सम्बन्ध पूरे समाज के सामने अग्नि को साक्षय मानकर सात फेरे लेने और सात वचन देने की रसम के माध्यम से पूरा किया जाता है ।विवाह एक पवित्र और अटूट बंधन हैं।
पाश्चात्य सभ्यता की नकल करते करते व अपने आपको आधुनिक दिखाने के फेर में हम अपने जीवन मूल्यों व संस्कारो को नष्ट -भ्रष्ट करने के साथ- साथ हम घोर नरक की ओर अपने आपको धकेल रहे हैं । भारतीय समाज पूरी तरह पतन की ओर आगे बढ़ रहा है।
कई उदाहरण ऐसे सामने आ रहे हैं जिनमे लिव इन में रहते महिलाएं गर्भवती हो जाती है ऒर फिर उनको अपने से दूर कर दिया जाता है ।महिलाओं के माता- पिता परिवार भी समाज में बदनामी के डर से उन्हें स्वीकार नही करता । वे दर- दर की ठोकरे खाने पर मजबूर हो जाती है।
भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने 29 नवम्बर 2013 को लिव इन पर अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा था इसे अपराध या पाप की श्रेणी में नही माना जा सकता , परंतु इसे वैधानिक नही माना जा सकता और न ही इसे नैतिक माना जा सकता।
बेसक हमारे देश मे लिव इन को कानूनी रूप से अपराध न माना जाता हो , परंतु भारतीय समाज नैतिक रूप से इसका समर्थन नही करता । कोई भी कानून सामाजिक मान्यताओं से ऊपर नही हो सकता । कानून समाज के हितों से ऊपर नही हो सकता और ऐसी बुराइयों की और बढ़ना , जिसमे समाज भयंकर अंधेरे की और बढ़ रहा हो । जहां घोर अंधेरा ही अंधेरा हो उज्जाले कि किरण कहीं नजर ही न आ रही हो ।
कहे जाने वाले आधुनिक माता- पिता को भी इस पाप से अपने बच्चों को बचाना होगा । कंही ऐसा ना हो कि वे आंखे मूंदे रहे और अनर्थ के भागीदार व स्वयं भी बन जाए।
सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आकर इस बुराई को रोकना होगा ।
प्रस्तुति:
सुरेश गोयल धूप वाला