कलाकार: अजय देवगन, श्रेया सरन, तब्बू, रजत कपूर, इशिता दत्ता, कमलेश सावंत
निर्माता: कुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक, अजीत अंधारे
निर्देशक: निशिकांत कामत
कहानी: जीतू जोसफ
गीत-संगीत: विशाल भारद्वाज
एक आम इंसान जिसकी दुनिया उसके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है, कैसे परिवार पर आए अनचाहे संकट से उसे उबारता है, इसी की कहानी कहती है ‘दृश्यम’। मलयालम, कन्नड, तेलूगु और तमिल के बाद ‘दृश्यम’ को निशिकांत कामत ने हिंदी में पारिवारिक थ्रिलर के रूप में प्रस्तुत किया है। दक्षिण भारत की चारों भाषाओं में फिल्म ने बड़ी कमाई की थी और हिंदी में भी ऐसी उम्मीद जताई जा सकती है। देखा जाए तो जुलाई का यह माह भारतीय सिनेमा के लिए इस साल का यादगार महिना बन गया है। ‘बाहुबली’, ‘बजरंगी भाईजान’ और अब ‘दृश्यम’, कुल मिलाकर दर्शकों को फूहड़ता से दूर मनोरंजक देखने को मिला है। ‘दृश्यम’ को हम लंबे समय तक याद रखेंगे क्योंकि इस तरह की फिल्में एक तरह का जोखिम होती हैं जिन्हें निर्माता उठाना पसंद नहीं करते।
कहानी: विजय सालगांवकर (अजय देवगन) अनाथ है और चौथी क्लास फेल होने के बावजूद मेहनत से अपने मुकाम तक पहुंचा है। उसका एक परिवार है जिसमें उसकी पत्नी नंदिनी (श्रेया सरन) और दो बेटियां हैं। उसकी बसी-बसाई जिंदगी में तब तूफ़ान आ जाता है जब गोवा की आईजी मीरा देशमुख (तब्बू) का बेटा उसकी बड़ी बेटी का अश्लील एमएमएस बना लेता है और उसे ब्लैकमेल करता है। उसकी बेटी जब उसकी अनुचित मांग को खारिज करती है तो वह उसकी मां के साथ भी सोने का प्रस्ताव रखता है गोयाकि अभिजात्य वर्ग के बिगड़ैल बच्चों को अपनी नीचता में मां-बेटी के बीच का अंतर भी समझ नहीं आता। इसी बीच एक हादसा होता है और विजय के पूरे परिवार की जिंदगी डर और मौत के बीच झूलने लगती है। क्या विजय इस अनचाहे हादसे से अपने परिवार को बचा पाता है? क्या मीरा देशमुख के बेटे के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हुई? अंत में क्या होता है जैसे सवाल आपको फिल्म देखने पर ही पता चलेंगे।
अभिनय: बीते कुछ सालों से अजय देवगन की छवि को ‘सिंघम’ स्टाइल में कैद कर दिया गया था। कॉमेडी के नाम पर भी वो फूहड़ता करने लगे थे। ‘दृश्यम’ उनके सिने करियर में मील का पत्थर है। हालांकि जो दर्शक उन्हें मारधाड़ करते देखना पसंद करते हैं वे उनके इस रूप से निराश ही होंगे। अजय देवगन खान तिकड़ी की वाचालता से इतर अपनी आंखों से सब कुछ कहने में माहिर हैं और ‘दृश्यम’ में तो उनकी आंखें मानो बोल ही पड़ती हैं। तब्बू लंबे अरसे बाद सशक्त रोल में हैं मगर कहीं न कहीं उनकी अदाकारी में अब एक ठहराव सा आ गया लगता है। रजत कपूर के पास करने को अधिक कुछ नहीं था, सो उन्होंने कुछ किया भी नहीं। श्रेया सरन ठीक-ठाक हैं। अभिनेत्री तनुश्री दत्ता की छोटी बहन इशिता दत्ता अपने रोल में जमी तो हैं पर फिल्म में वे कहीं से भी अजय देवगन की बेटी नहीं लगी हैं। कमलेश सावंत ने भ्रष्ट और क्रूर पुलिस अधिकारी के रोल में जमकर वाहवाही बटोरी है।
निर्देशन: निशिकांत कामत ने फ़ोर्स और कमांडो जैसी मारकाट वाली फिल्में बनाई थी जिससे यह अचंभा होता है कि वे ‘दृश्यम’ को खून-खराबे से कैसे दूर रख सकते हैं? हालांकि फिल्म की कहानी ‘खून’ के इर्द-गिर्द है मगर इस खून में और खून-खराबे में जमीन-आसमान का अंतर है। फिल्म की शुरुआत थोड़ी धीमी है और पारिवारिक दृश्यों में सामंजस्य नहीं बन पाया है। जैसे-जैसे फिल्म गति पकड़ती है, मजबूत होती जाती है। कामत को फिल्म के अंत पर और मेहनत करना चाहिए थी। अंत कमजोर है और निराश करता है। कामत ने कहानी फिल्माने में पूरी ईमानदारी बरती है। दर्शकों को पता है कि अपराधी कौन है फिर भी आगे क्या होगा की तड़प उसे किरदारों से जोड़े रखती है।
गीत-संगीत: विशाल भारद्वाज ने फिल्म के मूड के हिसाब से संगीत दिया है। ‘दम घुटता है’ बेबसी को बयां करता कर्णप्रिय गीत है।
सारांश: ‘दृश्यम’ को अजय देवगन की बेहतरीन अदाकारी के लिए देखना चाहिए। पूरे परिवार के साथ फिल्म देखेंगे तो परिवार की अहमियत समझ आएगी। हां, फूहड़ता और नग्नता के शौक़ीन ‘दृश्यम’ को पसंद नहीं करेंगे अतः इससे दूर ही रहें।
सिद्धार्थ शंकर गौतम