-श्रीराम तिवारी-
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी ने जब चीन समेत अधिकांस पूर्व ‘एशियन टाइगर्स’ देशों के नेताओं के साथ गलबहियाँ डालकर सेल्फ़ी ली, जब उन्होंने चीन के बौद्ध मंदिरों और पगौडों की ‘मनमोहक’-भावात्मक रोमांचक यात्राएं सम्पन्न की हैं ,तब पश्चिम के धनि-मानी देशों की छाती पर सांप लोट रहा था।विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष तो चिंतित था ही लेकिन यूएनओ को भी इस भयानक गर्मी में ठंड लगने लगे थी। जब मोदी जी चीन में १७ सूत्री समझोते पर हस्ताक्षर कर रहे थे तो पेंटागन से लेकर विश्व बैंक तक और टाइम्स से लेकर ‘वाल स्ट्रीट जनरल’ तक समवेत स्वर में भारत को याद दिला रहे थे कि आपको चीन से ज्यादा लेंन- देन की जरुरत ही नहीं। आप तो फ़क्त पश्चिम से कर्ज लेते रहो। मोदी की यात्रा के दरम्यान ‘संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मार्फत भारत के लोगों को और नेताओं को याद दिलाया गया कि २०१५-१६ में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा।
‘यूएन विश्व आर्थिक विश्लेषण एवं संभावनाओं ‘ के परिपत्र में विश्व की अर्धवार्षिक रिपोर्ट जारी करते हुए भारत की अर्थ व्यवस्था में जीडीपी ग्रोथ को 7 . 7 तक पहुँचने की संभावना भी व्यक्त की गयी है। चीन की विकाश दर इससे कुछ कम दर्शायी गयी है। यह खबर पढ़ने के बाद मेरा मन मयूर पूरे दिन देशभक्ति के जजवे से लवरेज रहा । किन्तु रात में अजीव सपना देखा ! कि चीन की कल-कल बहतीं साफ़ सुथरी नदियाx भारत की ओर स्थान्नान्तरित हो रहीं हैं। जबकि भारत की गंगा मैया , जमुना मैया – चंबल मैया और तमाम गटरगंगायें न केवल इंसानी बल्कि जानवरों की सड़ी हुई लाशें लेकर चीन की ओर प्रस्थान कर रही हैं। सपने में मैंने देखा कि चीन की सड़केँ ,पुल, खेल के मैदान उड़-उड़ कर भारत आ रहे हैं। भारत के तमाम रिश्वतखोर ,कामचोर ब्यूरोक्रेट्स और नकली -घटिया सड़कें -इमारतें -पुल बनाने वाली सबके सब बीजिंग की और शंघाई की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। यह मनमोहक मंजर देखकर मेरा मन मयूर सपने में ही गा ने लगा – अहा ! भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है ?
अल सुबह नींद खुलने पर जब घर के दरवाजे पर पड़ा अखवार उठाने के लिए दरवाजा खोला तो बीच सड़क पर आधा दर्जन आवारा कुत्ते एक पोलिथिन की थेली -जिसमें जूँठन भरी हुई थी-पर कुकरहाव कर रहे थे ! सड़क के एक छोर से गौ माताओं की रैली आ रही थी और सड़क के दूसरे छोर से बाराह मण्डली की प्रभात फेरी चल रही थी। यह वास्तविक दृश्य देखकर मन कुछ खट्टा सास हो गया। रात के सपने को याद कर नर्मदा जल प्रदाय नल की टोंटी खोलता हूं. उसमें ‘निर्मल नीर ‘ की जगह ड्रेनेज- गटर के संगम से आहूत बदबूदार गंदा पानी आता देखकर मन ही मन सोचता हूं काश ! भारत का कोई एक -आध नेता भी देंग स्याओ पिंग जैसा होता तो भारत को भी आजादी के ६८ साल बाद कम से कम इस तरह गटरों का पानी तो नहीं पीना पड़ता। हमारे लिए तो मोदी जी ही यदि दंग स्यायो पिंग बन जाएं तो कोई हर्ज नहीं ! चीन जैसी महान क्रांति न सही लोगों को एक वक्त की रोटी और एक बाल्टी शुद्ध पानी ही मिल जाये तो में भी कहूंगा कि दुःख भरे दिन बीते रे भैया -अब सुख आयो रे ! कामरेड माओ ने भी कहा था ”बिल्ली काली हो या सफेद यदि चूहे मारती है तो काम की है ” यदि चीन की तरह भारत में लाल क्रांति नहीं हो पाई या संसदीय लोकतंत्र के रास्ते वामपंथी भी सत्ता में नहीं आ पाये तो क्या भारत की जनता सदियों तक यही गटर गंगा का पानी पीती रहेगी ? सिर्फ नदियों के प्रदूषण का ही सवाल नहीं है ! मिलावटी खाद्यान्न ,प्रदूषणरहित मानवीय आवास और खेल-मनोरनजन इत्यादि हर क्षेत्र में चीन हमसे मीलों आगे है। ६८ साल में कांग्रेस कुछ नहीं कर पाई ,विगत एक साल में मोदी जी भी कुछ नहीं कर पाये , किन्तु चीन जाकर उन्होंने भारत की जनता के अरमान तो अवश्य ही जगाये हैं। यूएनओ की रिपोर्ट को सच सावित करने के लिए ही सही, आशा है कि चीन से वापिस लौटने पर हमारे लोकप्रिय प्रधान मंत्री मोदी जी शीघ्र ही भारत को चीन से भी आगे ले जाने के लिए चीन जैसी ही नीतियाँ और कार्यक्रम पेश करेंगे। तभी तो मेरी यह कविता -असली बारह्माशा -सार्थक होगी ,जिसकी कुछ बानगी इस प्रकार है –
पुरवा गाती रहे, पछुआ गुन-गुन करे, मानसून की सदा मेहरबानी हो !
यमुना कल-कल करे, गंगा निर्मल बहे, कभी रीते न रेवा का पानी हो !