कर रहा समर्पण प्रिय तुमको |
चाहो, उर मे रख, दुलरा कर,
संरक्षित कर लेना इनको |
यूं तो तुम स्वंय अकल्पित हो,
ऐसा प्रिय रूप, तुम्हारा है |
लगता है स्वंय , विधाता ने,
रच-रच कर तुम्हें संवारा है |
है अंग सुगढ, हर सांचे सा,
हर मानक पर है, खरा-खरा |
मधु-सिक्त, साथ में वाणी को,
रख दिया कंठ में, प्रियम्वरा |
हर रोम अलंकृत – प्राकृतिक,
क्या बाह्य,अलंकृत कर पाए |
देखे जो एक नजर तुमको,
हतप्रभ-जड़वत सा हो जाए |
हिम-उज्जवल रूप तुम्हारा है,
छूने से, मैला हो जाए |
आना धरती पर सार्थक हो,
सानिध्य तुम्हारा मिल पाए |