आपकी जन्म कुंडली में धनवान होने के योग ; Yogs of richness in janam kundali

दीपावली का पावन त्यौहार कार्य सिद्धी एवं आर्थिक समृद्धि सम्बंधित प्रयोगों को सफलता पूर्वक सिद्ध करने के लिए अबुझ मुर्हुत हैं। छोटे छोटे प्रयोगों को करके भी हम आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर सकते है। आप भी अपने अनुकूल एक या एक से अधिक प्रयोगों को पूर्ण श्रृद्धा और विश्वास के साथ करें। आपकी आर्थिक स्थित सुधरेगी और मां लक्ष्मी की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।

आइये जानते हें की जातक की जन्म कुंडली में इसे कोन-कोन से योग/प्रभाव होते हें जो उसे पैसेवाला/धनी बनाते हें…

आमतौर पर हम समझते हैं कि जिस व्यकक्ति के पास अधिक पैसा होता है, वह अमीर होता है, लेकिन वास्तोव में ऐसा नहीं है। जिस व्यहक्ति के पास आज पैसा है कल नहीं भी हो सकता है, लेकिन अमीर आदमी के पास अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए हमेशा पर्याप्ता पैसा होता है। यह मूलभत अंतर हमें ज्योलतिषीय योगों में भी दिखाई देता है। कोई जातक किसी समय विशेष पर पैसे वाला हो सकता है, लेकिन उस दौरान भी ऐसा हो सकता है कि वह अपनी सभी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम न बन पाए। आइए देखते हैं कि ज्यो तिष में ऐसे कौनसे योग हैं जो हमें पैसे वाला या अमीर बनाते हैं।

कुण्डयली में दूसरे भाव को ही धन भाव कहा गया है। दूसरे भाव और इसके अधिपति की स्थिति हमारे संग्रह किए जाने वाले धन के बारे में संकेत देती है। कुण्ड ली का चौथा भाव हमारे सुखमय जीवन जीने के बारे में संकेत देता है। पांचवा भाव हमारी उत्पाेदकता के बारे में बताता है, छठे भाव से ऋणों और उत्तदरदायित्वों को देखा जाएगा। सातवां भाव व्याापार में साझेदारों को देखने के लिए बताया गया है। इसके अलावा ग्यातरहवां भाव आय और बारहवां भाव व्य्य से संबंधित है। प्राचीन काल से ही जीवन में अर्थ के महत्व‍ को प्रमुखता से स्वीयकार किया गया। इसका असर फलित ज्योातिष में भी दिखाई देता है। दूसरा, चौथा, पांचवां, छठा, सातवां, ग्या रहवां और बारहवां भाव कमोबेश हमारे धन के बारे में ही जानकारी देते हैं। केवल दूसरा भाव सक्रिय होने पर जातक के पास पैसा होता है, लेकिन आय का निश्चित स्रोत नहीं होता, लेकिन दूसरे और ग्यावरहवें दोनों भावों में मजबूत और सक्रिय होने पर जातक के पास धन भी होता है और उस धन से अधिक धन पैदा करने की ताकत भी। ऐसे जातक को ही सही मायने में अमीर कहेंगे।

प्रतिस्पर्घा के युग मे हर व्यक्ति की यह चाहत बनती है कि उसे षीध्र ही सफलताओ की प्राप्ति हो सके। अनेक व्यक्ति अपने भाग्य को परिवर्तित करने हेतु अनेक प्रकार के उपाय करता है। पर कहते है कि भाग्यषाली लोगो को षीध्र सफलता मिलती है। जब सफलता प्राप्त नही होती तो वह तांत्रिको के चक्कर मे पड़कर व्यर्थ मे अपने धन व समय को नश्ट करता है। तांत्रिक लो भी इयी मानसिकता का फायदा उठाकर कुछ वहम, कुछ डर सा पैदा कर उनके द्वारा किसी विषेश प्रयोग को सम्पन्न करने की सलाह दी जाती है। जिसे मानना भी एक प्रकार से मजबुरी बन जाती है।सभी धन /पैसा कमाना चाहते हे ..चाहे उसका तरीका केसा भी हो????

यदि जातक का दूसरा भाव प्रबल हें तो उसके पास पैतृक धन बहुतायत से होता है। उसे अच्छीा मात्रा में पैतृक धन प्राप्ता होता है। इस भाव की स्थिति और इसके अधिपति की स्थिति अच्छीे होने पर जातक अपनी पारिवारिक संपत्ति का भरपूर उपभोग कर पाता है। इस भाव में सौम्य ग्रह होने पर अच्छेअ परिणाम हासिल होते हैं और क्रूर या पाप ग्रह होने पर खराब परिणाम हासिल होते हैं। दूसरी ओर ग्या रहवां भाव मजबूत होने पर जातक अपनी संपत्ति अर्जित करता है। उसे व्योवसाय अथवा नौकरी में अच्छाप धन हासिल होता है। ग्या रहवें और बारहवें भाव का अच्छाख संबंध होने पर जातक लगातार निवेश के जरिए चल-अचल संपत्तियां खड़ी कर लेता है। पांचवां भाव मजबूत होने पर जातक सट्टा या लॉटरी के जरिए विपुल धन प्राप्तव करता है। किसी भी जातक के पास किसी समय विशेष में कितना धन हो सकता है, इसके लिए हमें उसका दूसरा भाव, पांचवां भाव, ग्याैरहवां और बारहवें भाव के साथ इनके अधिपतियों का अध्यवयन करना होगा। इससे जातक की वित्तीवय स्थिति का काफी हद तक सही आकलन हो सकता है। इन सभी भावों और भावों के अधिपतियों की स्थिति सुदृढ़ होने पर जातक कई तरीकों से धन कमाता हुआ अमीर बन जाता है।

यदि जातक/मनुष्य की जन्म कुंडली में निम्न शुभफल/लाभ दायक योग होते हें तो वह वैभवशाली /धनी होता हें—–

दशाओं का प्रभाव होने पर —-

धन कमाने या संग्रह करने में जातक की कुण्ड्ली में दशा की महत्वदपूर्ण भूमिका होती है। द्वितीय भाव के अधिपति यानी द्वितीयेश की दशा आने पर जातक को अपने परिवार से संपत्ति प्राप्त होती है, पांचवे भाव के अधिपति यानी पंचमेश की दशा में सट्टे या लॉटरी से धन आने के योग बनते हैं। आमतौर पर देखा गया है कि यह दशा बीतने के साथ ही जातक का धन भी समाप्त हो जाता है। ग्याररहवें भाव के अधिपति यानी एकादशेश की दशा शुरू होने के साथ ही जातक का अटका हुआ पैसा आने लगता है, कमाई के कई जरिए खुलते हैं और लाभ की मात्रा बढ़ जाती है। ग्रह और भाव की स्थिति के अनुरूप फलों में कमी या बढ़ोतरी होती है। इसी तरह छठे भाव की दशा में लोन मिलना और बारहवें भाव की दशा में खर्चों में बढ़ोतरी के संकेत मिलते हैं।

शुक्र प्रबल होने पर —-

वर्तमान दौर में जहां भोग और विलासिता चरम पर है, किसी व्यलक्ति के धनी होने का आकलन उसकी सुख सुविधाओं से किया जा रहा है। ऐसे में शुक्र की भूमिका उत्त रोतर महत्वेपूर्ण होती जा रही है। किसी जातक की कुण्डजली में शुक्र बेहतर स्थिति में होने पर जातक सुविधा संपन्नी जीवन जीता है। शुक्र ग्रह का अधिष्ठा ता वैसे शुक्राचार्य को माना गया है, जो राक्षसों से गुरु थे, लेकिन उपायों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि शुक्र का संबंध लक्ष्मी् से अधिक है। शुक्र के आधिपत्यु में वृषभ और तुला राशियां हैं। इसी के साथ शुक्र मीन राशि में उच्चय का होता है। इन तीनों राशियों में शुक्र को बेहतर माना गया है। कन्या राशि में शुक्र नीच हो जाता है, अत: कन्यां का शुक्र अच्छे परिणाम देने वाला नहीं माना जाता।

इन लग्न वाले होते हें धनी/धनवान ——-

कमाई के लिए हमें ग्याोरहवां भाव देखना होगा। ऐसे में मेष लग्ना वाले जातकों का शनि, वृष लग्नय का गुरु, मिथुन लग्न् का मंगल, कर्क लग्नन का शुक्र, सिंह लग्नव का बुध, कन्यास लग्नन का चंद्रमा, तुला लग्न का सूर्य, वृश्चिक लग्नि का बुध, धनु लग्नु का शुक्र, मकर लग्न् का मंगल, कुंभ लग्न् का गुरु और मीन लग्न का शनि अच्छीु स्थिति में होने पर जातक अच्छाम धन कमाता है। इन ग्रहों की दशा में भी संबंधित लग्नछ के जातक अच्छीा कमाई अथवा लाभ अर्जित करते हैं।

मेष लग्न के जातकों का शुक्र, वृष लग्नन के जातकों का बुध, मिथुन लग्न के जातकों का चंद्रमा, कर्क लग्न वाले जातकों का सूर्य, सिंह लग्नृ वाले जातकों का बुध, कन्या लग्ने वाले जातकों का शुक्र, तुला लग्न वाले जातकों का मंगल, वृश्चिक लग्नल वाले जातकों का गुरु, धनु लग्नय वाले जातकों का शनि, मकर लग्ना वाले जातकों का शनि, कुंभ लग्न वाले जातकों का गुरु और मीन लग्नल वाले जातकों का मंगल अच्छील स्थिति में होने पर अथवा इनकी दशा एवं अंतरदशा आने पर जातक के पास धन का अच्छाअ संग्रह होता है अथवा पैतृक सं‍पत्ति की प्राप्ति होती है। अगर लग्नग से संबंधित ग्रह की स्थिति सुदृढ़ नहीं है तो संबंधित ग्रहों का उपचार कर वित्तीपय स्थिति में सुधार किया जा सकता है।

कुछ विशिष्टि योग—

– किसी भी लग्नट में पांचवें भाव में चंद्रमा होने पर जातक सट्टा, लॉटरी अथवा अचानक पैसा कमाने वाले साधनों से कमाई का प्रयास करता है। चंद्रमा फलदायी हो तो ऐसे जातक अच्छी कमाई कर भी लेते हैं।

– कारक ग्रह की दशा में जातक सभी सुख भोगता है। ऐसे में इस दशा के दौरान जातक को धन संबंधी परेशानियां भी कम आती हैं।

– सातवें भाव में चंद्रमा होने पर जातक साझेदार के साथ व्य वसाय करने का प्रयास करता है, लेकिन धोखा खाता है।

– लाल किताब के अनुसार किसी भी लग्नद में बारहवें भाव में शुक्र हो तो, जातक जिंदगी में कम से कम एक बार करोड़पतियों जैसे सुख प्राप्तस करता है, चाहे अपना घर बेचकर ही वह उस सुख को क्यों न भोगे।

– लेखक का अनुभव है कि छठे भाव का ग्या रहवें भाव से संबंध हो तो, जातक पहले ऋण लेता है और उसी से कमाई करता है।

– प्रसिद्ध ज्योातिष हेमवंता नेमासा काटवे कहते हैं कि नौकरीपेशा, कर्महीन और आलसी लोगों की जिंदगी में अधिक उतार चढ़ाव नहीं आते, ऐसे में इनका फर्श से अर्श पर पहुंचने के योग बनने पर भी उसके लाभ नहीं मिलते हैं।

– कई बार चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और आईएएस की कुण्डकली में एक समान राजयोग होता है, अंतर केवल उसे भोगने का होता है।

धनलाभ योग—–

धनभाव में बुध तथा शुक्र हो।

अष्ठम में शुभ ग्रह और केन्द्र में धनेश तथा लाभेश हो।

लाभ में धनेश तथा धन में लाभेश।

त्रिकोण या केन्द्र में लाभेश हो तथा एकादश में पाप ग्रह हो तो उक्त योगों में उत्पन्न व्यक्ति धनी होता है।

धन भाव में लग्नेश एवं लाभ भाव में धनेश तथा लाभेश लग्न में हो तो गड़े हुए धन की प्राप्ति होती हैं।

गड़े हुए धन का विचार वैसे तो चतुर्थ भाव से करना चाहिए।

यहां इसको लाने का अभिप्राय बिना परिश्रम से धन प्राप्त करने से हैं।

अचानक धन प्राप्ति के लिए पंचम भाव का विशेष महत्व होता हैं।

यदि कुण्डली में लग्नेश लाभ भाव में , लाभेश लग्न या धन भाव में तथा धनेश लग्न में हो या यह तीनों भावेश एक साथ इन तीनों भाव में हो या इन तीनों भावों तथा भावेशों का आपस में सम्बन्ध बन रहा हो तो बिना परिश्रम से धन लाभ होता हैं। तथा इन्हें लाटरी आदि भी लगती हैं।

स्वोपार्जित धन प्राप्ति योग —-

धन स्थान का स्वामी यदि लग्नेश से युक्त वा द्रष्ट हो तो अपने बाहुबल द्वारा धन पाता हैं। कुम्भ में शनि , मेष में चन्द्रमा , धनु में सूर्य तथा मकर में शुक्र हो तो ऐसा जातक अपने पिता का धन उपभोग नहीं करता हैं तथा अपने आप धन कमाता हैं।

भाई से धन प्राप्ति —–

तृतीय भाव में लग्नेश तथा धनेश हो तथा वे बलवान या वैशैषिकांश में होकर तृतीयेश से दृष्ट वा युक्त हो तो।

धन भाव में तृतीयेश तथा भ्रातृकारक ग्रह मंगल हो तथा वह लग्नेश से द्रष्ट होकर वैशेषिकांश में हो तो इन योगों में उत्पन्न व्यक्ति अपने भाई के धन को पाता है।

तृतीय एवं एकादश द्वारा भाई का विचार करना चाहिए। तृतीय स्थान से छोटे भाई तथा एकादश द्वारा बड़े भाई का विचार करना चाहिए। षष्ठ स्थान तथा बुध से चचेरे भाई का विचार करना चाहिए। यदि बुध का सम्बन्ध तृतीय एवं एकादश भाव से होने पर तथा उपरोक्त योग होने पर भाई की जगह बहिन द्वारा धन लाभ समझें।

धन स्थान, भाग्य स्थान, चतुर्थ स्थान का सम्बन्ध मंगल, तृतीय एवं एकादश स्थान के स्वामी से होने पर भी भाई या बहिन द्वारा लाभ होता हैं।

धनेश लग्न में हो एवं तृतीयेश की इनसे युति या द्रष्टि हो या कोई अन्य सम्बन्ध हो।

चतुर्थ भाव में मंगल हो या चतुर्थेश मंगल के साथ हो तथा तृतीयेश एवं धनेश का इस से सम्बन्ध हो तृतीयेश गुरू के साथा धन भाव में हो एवं लग्नेश का इन से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध हो।

नवमेश एवं तृतीयेश एक साथ तृतीय , धन या भाग्य भाव में हो।

नवमेश व तृतीयेश एक साथ होने तथा शुभ ग्र्रह द्वारा द्रष्ट होने पर भ्राता से कुछ न कुछ सहयोग अवश्य मिलता हैं।

पिता से धन लाभ ——-

बलवान धनेश दशमेश तथा पितृकारक सूर्य से द्रष्ट या युक्त हो।

चतुर्थ स्थान में सूर्य हो तो इस योग में उत्पन्न व्यक्ति पिता से धन प्राप्त करता है।

चन्द्रमा से चतुर्थ या प्रथम में सूर्य हो तथा सुखेश से द्रष्ट हो।

लग्न में सूर्य हो तथा दशमेश से युक्त हो एवं लग्नेश से युक्त या द्रष्ट हो तो इन योगों में उत्पन्न व्यक्ति पिता ेके कोश को प्राप्त करता हैं।

पुत्र से धन प्राप्ति —–

बलवान धनेश यदि पंचमेश तथा पुत्रकारक गुरू से युक्त व द्रष्ट हो।

वैशैषिकंाश में बलवान लग्नेश हो तो इन योगों में पुत्र द्वारा धन लाभ होता हैं।

पत्नी/स्त्री से धन प्राप्ति——

सप्तमेश और स्त्रीकारक ग्रह (शुक्र) से युक्त या द्रष्ट बलवान धनेश हो।

धन में शुभ ग्रह राशि हो और उसमें बलवान बहुत ग्रह हो तो इन योग में स्त्री द्वारा धन प्राप्त होता हैं।

निम्नलिखित ग्रहयोगों वाले जातक को व्यापार या उद्योग सफलता अथवा धनप्राप्ति होती हैं —

अगर एकादशेश द्वितीय भाव में द्वितीयेश के साथ हो या द्वितीयेश एकादश भाव में एकादशेश के साथ स्थित हो या द्वितीयेश और एकादशेश का पारस्परिक परिवर्तन योग या एक पर दूसरे की शुभ दृष्टि हो।

उपरोक्त प्रकार से दशमेश और एकादशेश या सप्तमेश और एकादशेश या सप्तमेश और दशमेश या द्वितीयेश और सप्तमेश का सम्बन्ध हो।

यदि बुध सप्तम अथवा दशम भाव में उच्च अथवा स्वराशि में स्थित हो।

यदि चतुर्थेश मंगल के साथ हो या दोनों एक-दूसरे को देखते हो।

बुध सप्तम भाव में हो और सप्तमेश द्वितीय भाव में हो या द्वितीयेश बुध के साथ सप्तम भाव में या सप्तमेश बुध के साथ द्वितीय भाव में हो।

यदि बुध और शुक्र की द्वितीय या सप्तम भाव में युति हो।

द्वितीयेश पर बुध की पूर्ण दृष्टि हो।

यदि द्वितीय, सप्तम, दशम और एकादश भाव के स्वामियों का पारस्परिक शुभ सम्बन्ध हो और वे बुध और बृहस्पति से प्रभावित हो।

इसके अलावा प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थों में अनेक धनदायक विशिष्ट योगों का उल्लेख हैं – जैसे गजकेशरी योग, सम्पति योग, महाभाग्य योग, पुष्कल श्रीयोग, श्रीमुख योग, धनसुख योग, धनाध्यक्ष योग, वसुमति योग आदि। व्यापार या उद्योग करने वाले जातक की कुण्डली में इनमें से कोई योग हो तो वे जातक को धनी बनाते हैं और व्यापार में सफलता के सूचक सिद्ध होते हैं यदि जातक की कुण्डली में नीचभंग राजयोग, विपरीत राजयोग, अधियोग अथवा अन्य कोई राजयोग हो तो वह जातक को धनी बनाने में सहायक होता हैं।

 

 

 

 

16 COMMENTS

  1. my name is sachin nirmal and dob 06-09-1973 birth time 10;20 pm place nagpur maharashtra is what i shoud job / business in which field what is time dhanwan yogs please tell teme my email id sachingym@gmail,com

  2. My Name is Deepak Sharma and my date of birth is 16/04/1988 and my birth time and place is 05:55AM delhi. kya aap bta sakte hai ki meri rashi me kisi property ka yog hai ki nahi. my mail id is deepakcafe@gmail.com

  3. मेरा जन्म कुंडली बनाना है मेरा जन्म 22/09/1993 को हुआ अलमोड़ा उतराखण्ड में

  4. महोदय मुझे जन्म की तारीख नहीं मालूम है और नहीं सन लेकिन नाम भी मुँह से बोला रखा है लेकिन जन्म आगरा में हुआ था उम्र लगभग ४२ या ४३ के है में बहुत प्रयास करता हूँ सफल होने के लेकिन हो नहीं पता हूँ

    • महोदय मुझे जन्म की तारीख नहीं मालूम है और नाही सन लेकिन नाम भी मुंह से बोल रखा गया है लेकिन जन्म मेरा जोधपुर बिलाड़ा में हुआ है उम्र लगभग 42 वर्ष के तकरीबन है मैं बहुत प्रयास करता हूं सफल होने के लिए लेकिन हो नहीं पाता हूं

  5. भारती गुप्ता १३ /१/१९८५ रात १२.४५ मुंबई महाराष्ट्र मरे कुंडली धनयोग राजयोग भाग्य उदय , (कंदृम दोध अच्छा है या बुरा है या नहीं )नीच भंग राजयोग ,बताया जाऐगा ,

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