-अनिल गुप्ता-
-स्वतंत्रता संग्राम और रा.स्व.सं. कि भूमिका- 4-
सत्ता लोलुप नेतृत्व के जल्दी से जल्दी सत्ता का अपने पक्ष में हस्तांतरण कराने के उतावलेपन के कारण देश का विभाजन हुआ. उस समय यदि थोड़ी भी दृढ़ता दिखाई गयी होती तो देश का विभाजन शायद न हो पाता. ये केवल धरती का बंटवारा नहीं था बल्कि अनादिकाल से पूजित भारतमाता का खंडन और असंख्य हुतात्माओं और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों का ध्वंस था.इस महाविध्वंस में हिन्दू समाज ने जो महाविनाश देखा उसमे लगभग तीस लाख व्यक्ति काल कवलित हुए और कोई तीन करोड़ लोगों को अपने पुरखों की भूमि से उखड़ कर विस्थापित होना पड़ा. तत्कालीन अंतरिम सरकार के मंत्री एन. वी.गाडगिल ने अपनी पुस्तक “गवर्नमेंट फ्रॉम इनसाइड”में लिखा है कि,” पश्चिमी पंजाब हिन्दुओं और सिखों से खाली कर दिया गया.६० लाख गैर-मुस्लिमों में से स्वीपर रोक कर और सब निकाल दिए गए…..पाकिस्तान की नीति स्पष्ट थी.सिंध में से हिन्दुओं को निकाल देना और उनकी सब धन दौलत लूट लेना चाहते थे….पूर्वी पाकिस्तान की अनहोनी दशा थी, वहां से अस्सी लाख हिन्दू निकाल दिए गए…..पाकिस्तान का
एक एक सिख और हिन्दू भारत की ओर आ गया है, इस स्थानांतरण में अनगिनत स्त्रियों का अपहरण हुए, उनसे बलात्कार हुआ और अनगिनत स्त्री-पुरुष-बच्चे मार डाले गए.” न्यायमूर्ति खोसला ने अपनी पुस्तक Stern Reckoning में इस थोड़े से काल में केवल पंजाब और सिंध में मारे गए लोगों की संख्या कम से कम दस लाख
बताई है.अन्य क्षेत्रों ( बंगाल, असम आदि ) की मृतकों की संख्या जोड़ने पर ये आंकड़ा तीस लाख से ऊपर पहुँच जाता है.
संघ हिन्दुओं का तारणहार विभाजन अटल देखकर संघ के स्वयंसेवक पाकिस्तान में कहर ढा रहे इस्लामी जिहाद के एकाएक शिकार बने हिन्दुओं को बचा कर उन्हें भारत में सुरक्षित लाने के काम में लग गए.जिन लोगों ने दूरदर्शन पर ‘बुनियाद’ सीरियल देखा होगा उन्हें संभवतः याद होगा की पहले ही एपिसोड में दिखाया था कि एक स्थान पर भीड़ में कुछ लोग विभाजन के कारण वहां रह रहे हिन्दुओं की सुरक्षा के प्रति चिंता व्यक्त करते हैं तो भीड़ में मौजूद खद्दर धारी कांग्रेसी कहता है कि ,” कुछ नहीं होगा, गांधीजी ने कह दिया है कि जो जहाँ रह रहा है वो वहीँ रहेगा.”लोग इस बात पर विश्वास कर लेते हैं. तुरंत बाद ही इस्लामी जेहादियों का हमला शुरू हो जाता है.अगर लोगों को ये झूठी तसल्ली न दी गयी होती तो संभवतः समय रहते काफी लोग सुरक्षित निकल कर आ
जाते और इतनी अधिक जनहानि न होती.
ऐसे वातावरण में संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी जान कि बाजियां लगाकर लाखों हिन्दुओं को सुरक्षित भारत पहुँचने में सहयोग दिया.हज़ारों स्वयंसेवकों ने अपने हिन्दू भाईयों कि रक्षा करते हुए अपने प्राण गँवा
दिए.लेकिन फिर भी१५ अगस्त १९४७ को कांग्रेस हाईकमान ने निर्देश जारी किया की पूरे देश में दिवाली मनाई जाये,बंदनवार बांधे जाएँ,गुलाल उड़ाया जाये और आतिशबाज़ी की जाये. १४ अगस्त की दोपहर को जवाहरलाल नेहरू गवर्नर जनरल माउंटबेटन को अपने प्रस्तावित मंत्रिमंडल की सूची सौंपने गए.वहां उन्होंने शराब का जाम उठकर “टू किंग जॉर्ज” कहकर अपना गला तर किया था.शाम को नेहरू जी तथा माउंटबेटन शाही रथ पर सवार होकर लालकिले की ओर बढ़ रहे थे.चारों तरफ गाने बजाये जा रहे थे “देदी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल…”दिन में पाकिस्तान नाम का एक राष्ट्र जन्म ले चूका था.और उधर मीलों लम्बे काफिले के काफिले लाहोर,मुल्तान, स्यालकोट,लायलपुर से चले आ रहे थे. इन काफिलों में वो अभागे हिन्दू थे जिन्हे नेताओं के विश्वासघात ने बर्बाद कर दिया था.लखपति, करोड़पति भी खाकपति होकर जान बचाकर आ रहे थे.कई कई दिन से बच्चों, महिलाओं , वृद्धों को भोजन नहीं मिला था.मोहल्ले के मोहल्ले धूं धूं कर जल रहे थे.महिलाओं के साथ नरपिशाचों द्वारा सामूहिक बलात्कार हो रहे थे.उन्हें लूट के माल की तरह नीलाम किया जा रहा था.( ऐसे ही जैसे आजकल इस्लामिक स्टेट नामक संगठन द्वारा इराक में यज़ीदियों को जबरन पकड़ कर उनको नीलाम किया जा रहा है).
कैसा भयानक था ये दृश्य.जवाहरलाल नेहरू मध्य रात्रि में लाल किले की प्राचीर से “नियति को पाने के संकल्प” का उल्लेख कर रहे थे.क्या इस प्रकार खंडित, रक्तरंजित,भारत के विभाजन का संकल्प भी शामिल था?नीरज के शब्दों में ” क्या यही स्वप्न था देश की आज़ादी का, रावी तट पे क्या कसम हमने यही खायी थी, क्या इसी वास्ते तड़पी थी भगत सिंह की लाश, जेल की मिटटी गरम खून से नहलायी थी?”
लेकिन, सत्ता पाने की खुमारी में उन अभागे लूटते पिटते अपमानित होते अपनों से बिछुड़ते, अपनों को खोते करोड़ों लोगों के बारे में एक शब्द भी उनके पास नहीं था.१४,१५,१६ अगस्त को तीन दिन दावतें उड़ती रहीं,जाम छलकते रहे,लेकिन किसी ने भी इन अभागोंकी सहानुभूति में कुछ कहना आवश्यक नहीं समझा.उनका पूरा प्रयास था और आज भी है कि इतिहास में उस काले पन्ने को स्थान न मिले.गांधी बाबा दूर नोआखाली में बैठे थे.
लेकिन एक दूसरा दृश्य भी था.राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के हज़ारों स्वयंसेवक बिना प्रचार करे उन अभागे उत्पीड़ित बंधुओं के सेवा में अपना सर्वस्व लगा रहे थे.उनकी एक ही चिंता थी कि कैसे उन बंधुओं को सामान के साथ सुरक्षि भारत पहुँचाया जाये,कैसे उन्हें राहत पहुंचाई जाये,कैसे उनके आवास, भोजन, दवा-पानी कि व्यवस्थ कि जाये.श्री ए. एन. बलि ने अपनी पुस्तक Now It Can Be Told में पृष्ठ १३७,१३८ और १३९ पर इस बारे में संछेप में लिखा है,”रा.स्व.सं. के हर नगरके हर मोहल्ले में हिन्दू और सिखों विशेषकर महिलाओ और बच्चों को निकलने का बीड़ा उठाया.उन्हें संकटपूर्ण क्षेत्रों से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया,उनके भोजन,चिकित्सा और कपड़ों की व्यवस्था की……उनको निकलने के लिए लॉरियों का बंदोबस्त किया.ट्रेनों पर सुरक्षा दस्ते तैनात किये…..
” मैं स्वयं जानता हूँ की पंजाब के विभिन्न जिलों के जाने माने कांग्रेसी नेताओं ने अपने और अपने कुटुम्बियों की रक्षा के लिए खुलेआम रा.स्व.सं.की सहायता ली.ऐसा भी हुआ जब संघ के स्वयंसेवकों ने मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को हिन्दू मोहल्लों से निकालकर सुरक्षित अवस्था में लाहोर के मुस्लिम लीग के शरणार्थी केम्पों में पंहुचाया….
“..जब सबने उनका साथ छोड़ दिया था, ऐसे आड़े समय में रा.स्व.सं. ने ही उनका साथ दिया….”
सरदार पटेल ने संघ के सरसंघचालक श्री गुरूजी के ११ अगस्त १९४८ के पात्र के उत्तर में लिखा,”..राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संकटकाल में हिन्दू समाज की सेवा की इसमें कोई संदेह नहीं.ऐसे क्षेत्रों में जहाँ उनकी सहायता की आवश्यकता थी, संघ के नवयुवकों ने स्त्रियों तथा बच्चों की रक्षा की तथा उनके लिए काफी काम किया….” सेवानिवृत न्यायाधीश जयलाल ने विभाजन के समय बयां दिया था कि यदि १० साल पहले संघ का काम पंजाब में शुरू हो जाता तो पूरा पंजाब बच जाता.”
२ अक्टूबर १९४९ के जालंधर से प्रकाशित आकाशवाणी साप्ताहिक के पृष्ठ ६-७ पर श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने संघ के स्वयंसेवकों कि प्रशंसा करते हुए लिखा कि,” देश विभाजन के दुर्दिनों में संघ के नवयुवकों ने पंजाब और सिंध में अतुलनीय वीरता प्रकट की.उन नवयुवकों ने आततायी मुसलमानों का सामना करके हज़ारों स्त्रियों व बच्चों के मान और जीवन बचाये.अनेक नवयुवक इस कर्तव्यपालन में काम आये.”