“ईश्वर उपासना से सहनशीलता प्राप्त होती हैः डॉ. सोमदेव शास्त्री”

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मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

                हमें दिनांक 15-12-2018 की सायं गुरुकुल पौंधा-देहरादून के आचार्य डॉ. धनंजय जी के साथ डॉ. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई से मिलने आर्यसमाज, सेक्टर-11, द्वारका के उत्सव में जाने का अवसर मिला। डा. सोमदेव शास्त्री आर्यसमाज द्वारका में वेद कथा करने पधारे हुए थे। जिस समय हम वहां पहुंचे तो रात्रि 8.10 का समय था और शास्त्री जी शंका समाधान कर रहे थे। उनसे एक आर्य विदुषी बहिन ने प्रश्न किये जिनका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर की उपासना करने से पहाड़ के समान दुःखों को सहन करने की शक्ति प्राप्त होती है। मनुष्य को सहनशीलता ईश्वर की उपासना से ही प्राप्त होती है। ईश्वर की उपासना हम ईश्वर के किसी प्रयोजन को सिद्ध करने के लिये नहीं अपितु अपने हित अनेक लाभों के लिये करते हैं। ईश्वर में अनन्त गुण हैं। यदि हम ईश्वर के कुछ प्रमुख गुणों को धारण कर लें तो इससे हमें अनेक लाभ होते हैं। कार्यक्रम का संचालन कर रहे आर्यसमाज के एक अधिकारी महोदय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जिज्ञासा शाश्वत है और यह हम सबमें होनी चाहिये। हमें अपने प्रश्नों का उत्तर मिले या न मिले, हमें प्रश्न अवश्य करने चाहियें। यदि हम प्रश्न करेंगे तो कभी न कभी, किसी विद्वान या स्वाध्याय आदि के करने से हमारे प्रश्नों व शंकाओं का समाधान हमें अवश्य प्राप्त होगा। कार्यक्रम में दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली के महामंत्री श्री विनय आर्य जी भी उपस्थित थे। उनसे व्याख्यान वेदि पर उपस्थित होने का निवेदन किया गया।

गुरुकुल पौंधादेहरादून के आचार्य डॉ. धनंजय आर्य का सम्मान

कार्यक्रम में देहरादून के गुरुकुल पौंधा के आचार्य डॉ. धनंजय आर्य जी का ओ३म् के पट्टे एवं ऋषि दयानन्द का एक भव्य चित्र प्रदान कर सम्मान किया गया और उनके गुरुकुल के द्वारा वैदिक धर्म और संस्कृति के संरक्षण का जो कार्य हो रहा है उसकी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की गई।

                इस आयोजन में आर्यजगत के सुप्रसिद्ध विद्वान, ओजस्वी एवं तेजस्वी लेखक तथा आर्यसमाज के प्रचार में सर्वात्मा संलग्न डॉ. विवेक आर्य जी का सम्मान किया जाना था। वह अभी आ नहीं सके थे। इस समयावधि का सदुपयोग श्री विनय आर्य जी के व्याख्यान के द्वारा किया गया।

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली के सभामंत्री श्री विनय आर्य जी का व्याख्यान

ऋषि भक्त श्री विनय आर्य जी ने अपना व्याख्यान आरम्भ करते हुए कहा कि आर्यसमाज के अतिरिक्त किसी धार्मिक संस्था में शंका समाधान का आयोजन नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि जहां शंका समाधान नहीं होता वहां के लोग भ्रमित रहते है।

                श्री विनय आर्य जी ने कहा कि यदि देश विदेश के लोग आर्यसमाज को जान लेते तो संसार में आज जो समस्यायें देखने को मिलती हैं वह होती। श्री विनय आर्य ने श्रोताओं से प्रश्न किया कि भूत प्रेत होते हैं या नहीं? इसका उन्होंने उत्तर दिया कि भूत है, अवश्य है, वह हमें डराता है और हम डरते फिरते हैं। विद्वान वक्ता ने कहा कि आदमी यदि डरता है तो वह केवल और केवल भूत से डरता है। भूत का मतलब होता है अपना भूतकाल। हमें अपने-अपने भूतकाल के कर्मों का जो दुःख-रूपी फल मिलता है उससे हम डरते हैं तथा भूतकाल के कर्मों के दुःख-रूपी फल हमें डराते हैं।

                श्री विनय आर्य जी ने एक चोर का उदाहरण दिया। उन्होंनें कहा कि किसी व्यक्ति ने कहीं चोरी की। चोरी करते हुए उसे किसी ने नहीं देखा। वह चोरी के स्थान से चल पड़ा। संयोगवश सामने पुलिस की गाड़ी आती दिखाई दी। यह चोर अपने चोरी के कर्म को यादकर और पुलिस को आता देखकर स्वयं डर रहा है। उन्होंने कहा कि चोर व अन्य सभी मनुष्य जिन्होंने भूतकाल में अशुभ कर्म किये होते हैं, वह सब उनके फलों की प्राप्ति से भयातुर रहते हैं। श्री विनय आर्य जी ने मनुष्य के अपने भूत से डरने के अनेक रोचक उदाहरण दिये। उन्होंने एक पिता-पुत्र का उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा कि जब पुत्र पिता से कोई बात झूठ बोल देता है और पिता उससे कहते हैं कि सच-सच बताओं तो वह डरता है और सोचता है कि शायद पिता जी को सत्य बात का पता है जबकि पिता को सत्य बात का पता नहीं होता परन्तु पुत्र झूठ बोलने के कारण पिता के पूछने पर, अपने भूत की गलती के कारण, डरता है।

                ऋषि-भक्त विद्वान श्री विनय आर्य जी ने कहा कि हम अपने पूर्वजन्मों के कर्मों को भूल जाते हैं। उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान के अनुसार कुछ बीमारियों के कारण दस-बीस साल पुराने होते हैं। उन्होंने कुत्ते के काटने का उदाहरण दिया और कहा कि इससे होने वाला रोग रैबीज कहलाता है जो कुत्ते के काटने के 10 से 20 वर्ष व इससे भी कुछ अधिक अवधि में होता देखा जाता है। यह एक प्रकार से कर्म-फल सिद्धान्त का उदाहरण है जिससे ज्ञात होता है कि कर्मों का फल सदैव साथ-साथ नहीं अपितु दीर्घ अवधि बीत जाने पर भी मिलता है। विद्वान वक्ता ने साह-बहू के झगड़ों का भी उदाहरण दिया और कहा कि दोनों अपने को निर्दोष मानते हैं जबकि झगड़े का एक कारण अवश्य होता है जिसमें किसी एक या दोनों की गलती होती है। श्री विनय आर्य जी ने कहा कि यदि हम पर कभी कोई दुःख आता है तो इसका कारण हम हमारे अतीत के कर्म ही हुआ करते हैं। हमारे खानेपीने का आदतें खराब होती हैं तभी हम बीमार होते हैं।

                श्री विनय आर्य जी ने प्रश्न किया कि ईश्वर की उपासना हम क्यों करें? उन्होंने कहा कि हमें जब शीत सताती है तो हम शीत-निवृत्ति के लिए अग्नि के पास जाते हैं। ईश्वर के दर पर जाने का कारण भी अवश्य कुछ कुछ होता है। मुख्य कारण होता है कि हम भविष्य में दुःखों से बच सके, इसलिये ईश्वर की उपासना वा सन्ध्या करते हैं। श्री आर्य ने सन्ध्या के मनसा परिक्रमा मन्त्रों का उल्लेख कर कहा कि हम इन मन्त्रों के द्वारा अपनी दूसरों के प्रति द्वेष भावना तथा दूसरों की अपने प्रति द्वेष भावना को ईश्वर की न्याय व्यवस्था को समर्पित कर देते हैं। उन्होंने कहा कि दण्ड देने का अधिकार परमात्मा को है। परमात्मा सच्चे अर्थों में न्यायकारी व न्यायाधीश है। वह मनुष्य योनि में किये गये सभी शुभ व अशुभ कर्मों का फल देता है। परमात्मा सभी को उनके दोषों, अपराधों व पाप कर्मों का दण्ड अवश्य देता है। कोई मनुष्य परमात्मा के दण्ड विधान से बच नहीं सकता।

                श्री विनय आर्य जी ने कहा कि हमें स्वयं को परमात्मा का पुत्र और परमात्मा को अपना पिता मानना चाहिये। कर्म-फल का सिद्धान्त ईश्वर की सत्ता से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि हम परमात्मा की सत्ता और उसके कर्मफल सिद्धान्त और न्याय को माने तो संसार में शान्ति स्थापित हो जायेगी। विद्वान वक्ता विनय आर्य जी ने श्रोताओं को स्वाध्याय करने की प्रेरणा की और स्वाध्याय के महत्व को बताया। श्री विनय आर्य जी ने डॉ. सोमदेव शास्त्री जी की अनेक पुस्तकों का उल्लेख किया और उनकी प्रशंसा की। उन्होंने उनकी पुस्तकों को पढ़ने की सभी श्रोताओं को प्रेरणा भी की। इस बीच ऋषि भक्त और आर्यसमाज के सिद्धान्तों का प्रचार प्रसार करने वाले निर्भीक व साहसी युवा विद्वान डॉ. विवेक आर्य जी समाज मन्दिर में उपस्थित हो चुके थे। श्री विनय आर्य जी ने डॉ. विवेक आर्य जी के कार्यों की प्रशंसा की और अपने व्याख्यान को विराम दिया।

आर्यसमाज के प्रख्यात युवा विद्वान, ओजस्वी लेखनी के धनी ऋषि भक्त डॉ. विवेक आर्य, दिल्ली का सम्मान

                कार्यक्रम का संचालन कर रहे आर्यसमाज के विद्वान अधिकारी महोदय ने डॉ. विवेक आर्य जी के अभिनन्दन व सम्मान कार्यक्रम का आरम्भ करते हुए कहा कि डॉं विवेक आर्य जी से सोशल मीडिया पर 1,41,600 लोग जुड़े हुए हैं। वह प्रतिदिन अनेक विषयों के लेख व विचार अपने पाठकों के साथ शेयर करते हैं। उनके अनेक अन्य गुणों की भी प्रशंसा की गई। डॉ. विवेक आर्य जी का सम्मान करते हुए उन्हें एक शाल ओढ़ाया गया। उन्हें ऋषि दयानन्द सरस्वती जी का एक भव्य चित्र भेंट किया गया और उनके गले में ओ३म् का पट्टा भी पहनाया गया। संचालक महोदय ने बताया कि डॉ. विवेक आर्य जी के पितामह ने अपने जीवन काल में अन्धविश्वास दूर करने के लिये अनेक सफल प्रशंसनीय कार्य किये। उन्होंने लोगों से काल्पनिक भूत-प्रेत के डर को दूर करने के लिये भूत-प्रेत के नाम पर सड़कों व कुछ स्थानों पर जो भोजन रखा जाता था उसे अपने परिवार के सदस्यों को खिलाकर लोगों का इससे जुड़ा भय व भ्रम दूर किया था। बहुत से लोग इस घटना से डर गये थे और कह रहे थे कि इन महाशय जी को अपने परिवार के सदस्यों के जीवन की चिन्ता नहीं है। इन्होंने भूतों का भोजन उन्हें कराकर उनके जीवन को खतरे में डाल दिया है। पितामह जी के इस साहसपूर्ण कार्य के प्रभाव से अन भ्रमित लोगों ने भूत-प्रेत विषयक अपनी शंकाओं को दूर कर आर्यसमाज को अपनाया था। संचालक महोदय ने बताया कि डॉ. विवेक आर्य जी के दादा जी हांसी में रहते थे। इस सम्मान समारोह के साथ ही कार्यक्रम का समापन हुआ। इसके बाद सभी श्रोताओ ने स्वादिष्ट भोजन ग्रहण किया। हमारा सौभाग्य है कि हमें भी डॉ. विवेक आर्य जी और डॉ. धनंजय आर्य जी के साथ बैठने का सुअवसर प्राप्त हुआ। ईश्वर का आर्यसमाज द्वारका के सत्संग में भाग लेने का अवसर प्रदान करने के लिये धन्यवाद है।

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