उड़खुली गांव को प्रशासन के चश्मे की ज़रूरत

विपिन जोशी 

images (1)भगवान ने सभी मनुष्यों को इस संसार के नज़ारों से लुत्फअंदोज़ होने के लिए दो आंखें दी हैं। ज़रा कुछ पल के लिए आंखें बंद करके देखिए मानो ऐसा प्रतीत होगा कि जिंदगी ठहर सी गई हो। कुदरत के इन दो अनमोल तोहफों से आज भी बहुत से लोग महरूम हैं। संसार में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिनके पास आंखें तो हैं मगर वह आंख संबंधित किसी न किसी विकार से ग्रस्त हैं। आज कम उम्री में ही बच्चों की नज़र का कमज़ोर होना आम सी बात है। कल्पना कीजिए कि बचपन से ही यदि किसी गांव में बच्चों के एक समूह की आंखें कमज़ोर होने लगे और इसकी वजह से वह स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जाएं तो आप क्या कहेंगे? किसे दोष देंगे? किस्सा है उत्तराखंड के जि़ला बागेश्व र के उड़खुली गांव का। इस गांव में कुल 150 परिवार हैं और यह गांव गरूड़ तहसील मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस गांव के 39 लोगों की नज़र एक साथ कमज़ोर हो गयी है जिनमें 15 बच्चे भी शामिल हैं। सभी बच्चों में एक जैसे लक्षण हैं जैसे आंख से पानी बहना और सर दर्द होना। नज़र कमज़ोर होने का सबसे बड़ा ख़ामियाज़ा यहां के बच्चों को उठाना पड़ रहा है। नज़र कमज़ोर होने की वजह से यह बच्चे पढ़ाई लिखाई ठीक से नहीं कर सकते। ऐसे में उज्जवल भविष्यव की कामना करना इन बच्चों के लिए एक सपने की तरह है।

यह शोध का विशय है कि आखिर वह कौन से कारण हैं जिसकी वजह से इतने सारे लोगों की आंखें एक साथ कमज़ोर हो गईं। प्रारंभिक शोध में यह बात सामने ज़रूर आयी है कि गांव का पानी दूषित है और पीने के लायक नहीं है। बावजूद इसके इस गांव के लोग हैंड पंप से निकलने वाला लाल पानी पीने को मजबूर हैं। गंदे पानी का असर बच्चों की सेहत के साथ साथ सबसे ज़्यादा उनकी आंखों पर पड़ रहा है। स्थानीय संस्था हिमालय ट्रस्ट की ओर से उड़खुली गांव में स्वास्थ्य कैंप लगाकर नेत्र दृष्टि चैक करके लोगों को चश्मे ज़रूर वितरित किए गए । कुल 39 लोगों को कैंप के ज़रिए चष्मे वितरित किए गए। लेकिन सवाल यह उठता है कि चश्मेम वितरित किए जाने से क्या इस समस्या का कोई स्थायी समाधान निकल पाएगा। इस समस्या के बारे में गांव के स्थानीय निवासी माधो राम कहना है ‘‘ गांव में जो भी हैंड पंप हैं उनमें फिल्टर भी नहीं हैं।’ ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि उड़खुली गांव कितनी बेतवज्जोही का शिकार है। पिछले पांच छः साल पहले हालात इतने खराब नहीं थे। लेकिन अब तो बच्चों की निगाह का कमज़ोर होना आम सी बात हो गयी है। इस बारे में गांव के एक बुजुर्ग पूनी राम कहते हैं ‘‘ छोटे छोटे कमरों में बच्चों का निकट से टेलीविज़न देखना भी इसका एक बड़ा कारण है।’’ इस बारे में प्राइमरी स्कूल के अध्यापक राकेश कुमार कहते हैं‘‘ बच्चों को अब पहले जैसा पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है, ऐसे में नज़र का कमज़ोर होना कोई बड़ी बात नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस समस्या की जानकारी न तो किसी प्रशासनिक अधिकारी को है और न ही किसी जनप्रतिनिधि को। ऐसे में गांव के लोगों को इस समस्या से पार पाने की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आ रही है।

गांव वालों का इल्ज़ाम है कि कोई भी अधिकारी और जनप्रतिनिधि यहां आकर नहीं झांकता। इस गांव में प्राथमिक स्कूल, जूनियर स्कूल है। सड़क है और गांव के बीचों बीच बीएसएनएल का टावर भी लगा दिया गया है। लेकिन दलित वर्ग बाहुल्य इस गांव में कुपोषण के शिकार लोगों को पहले अच्छा स्वास्थ्य और शुद्ध पानी चाहिए। गांव में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने कभी अपने हक के लिए आवाज़ उठाई हो। यहां के लोगों को आज भी यह लगता है कि यह काम तो बड़े लोगों का है, हम इसमें कैसे कुछ कर सकते हैं। स्वास्थ्य संबधी समस्याओं के साथ साथ दूसरी मूलभूत सुविधाओं की कमी का अब तक कोई हल न निकलना भी इस गांव के लोगों में जागरूकता की कमी को उजागर करता है। सवाल यह उठता है कि जब उड़खुली गांव के इतने सारे लोग एक साथ नज़र की कमज़ोरी से परेषान हैं तो क्यों कभी इनके अभिभावकों, अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने गांव की इस बीमारी पर प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी? कौन गांव वालों की इस समस्या को अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों तक लेकर जाए ?राजनेताओं को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि गांव के दूर दराज़ इलाकों में रहने वाले लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। बावजूद इसके ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलती हुई नज़र नहीं आती। ग्रामीण भारत की तस्वीर आज भी वैसी ही है जैसी देश की आज़ादी से पहले थी। हमारे राजनेताओं को भी इस बात का इल्म अच्छी तरह से है कि तमाम समस्याओं से को सहकर भी लोग पोलिंग बूथ तक वोट डालने ज़रूर जाएंगे। लोगों को गांव में मोबाइल फोन की सुविधा तो मिल रही है लेकिन उनके चेहरों पर एक उदासी सी छायी हुई है। गांव में आशा कार्यकर्ता के साथ साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी हैं। ऐसे में बच्चों को पोषण आहार तो मिलता ही होगा। फिर भी तमाम दावों के बाद भी इस गांव की हालत इतनी खराब क्यों है जहां बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और जिसकी वजह से उनकी निगाह कमज़ोर होती जा रही है। सोचने का विषय है। इतनी बड़ी समस्या से जूझते इस गांव की घोर उपेक्षा समझ से परे है। सड़क से जुड़ा यह गांव कई जनप्रतिनिधियों के संपर्क में है। बावजूद इसके गांव के लोगों को फिलहाल इस समस्या से पार पाने का कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा है। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि कोई ठोस रणनीति बनाकर उड़खुली गांव के लोगों की समस्या का हल निकालने की जल्द से जल्द कोशिश की जाए। अगर इस गंभीर समस्या की ओर जल्द ही कोई ध्यान नहीं दिया गया तो अपनी इस समस्या को लेकर उड़खुली गांव जल्द ही समाचार पत्रों की सुर्खियां बन सकता है।(चरखा फीचर्स)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here