पैरिस समझौते के क्रम में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आवश्यक है कि वैश्विक वार्षिक ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन में 2030 तक वर्तमान स्तर के 50 प्रतिशत की कटौती की जाए और साथ ही 2050 तक उसे नेट ज़ीरो के स्तर तक लाया जाए। लेकिन इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक गहरी और व्यापक कार्रवाई ज़रूरी है। ऐसी कार्रवाई जिसे कम उत्सर्जन अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सभी क्षेत्रों में तुरंत शुरू होना चाहिए। चूंकि अब एक बढ़ती संख्या में कंपनियां नेट ज़ीरो, या शुद्ध-शून्य उत्सर्जन स्तर, तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध हैं, इसलिए उनसे ये उम्मीद भी की जाएगी कि वो दिखाएँ कि वे कार्बन क्रेडिट का उपयोग करके सीधे उत्सर्जन में कमी और उत्सर्जन ऑफसेट के उचित मिश्रण के साथ इन लक्ष्यों को पूरा करने की योजना कैसे बना रहे हैं।
आगे बढ़ने से पहले आपका ये जानना ज़रूरी है कि कार्बन क्रेडिट क्या होता है। कार्बन क्रेडिट अंतर्राष्ट्रीय उद्योग में उत्सर्जन नियंत्रण की योजना है । कार्बन क्रेडिट सही मायने में आपके द्वारा किये गये कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने का प्रयास है जिसे प्रोत्साहित करने के लिए धन से जोड़ दिया गया है । भारत और चीन सहित कुछ अन्य एशियाई देश जो वर्तमान में विकासशील अवस्था में हैं, उन्हें इसका लाभ मिलता है क्योंकि वे कोई भी उद्योग धंधा स्थापित करने के लिए UNFCCC (यूनाईटेड नेशनस फ्रेम वर्क कनेक्शन आन क्लाइमेट चेंज) से संपर्क कर उसके मानदंडो के अनुरूप निर्धारित कार्बन उत्सर्जन स्तर नियंत्रित कर सकते हैं । और यदि आप उस निर्धारित स्तर से नीचे, कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं तो निर्धारित स्तर व आपके द्वारा उत्सर्जित कार्बन के बीच का अंतर आपकी कार्बन क्रेडिट कहलाएगा । इस कार्बन क्रेडिट को कमाने के लिए कई उद्योग धंधे कम कार्बन उत्सर्जन वाली नई तकनीक को अपना रहे हैं । यह प्रक्रिया पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ धन लाभ भी देने वाली है।
अब वापस बात कम्पनियों के कार्बन क्रेडिट के प्रयोग की करें तो आपका बताते चलें कि स्वेच्छा से खरीदे गए कार्बन क्रेडिट कम्पनियों को उन उत्सर्जन की भरपाई करने में सक्षम बनाते हैं जिन्हें अभी तक समाप्त नहीं किया गया है। यह उन परियोजनाओं के वित्तपोषण द्वारा किया जाता है जो अन्य स्रोतों से उत्सर्जन को कम या उससे बचाते हैं, या जो वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैसों को निकालते हैं। एक बड़ा, प्रभावी स्वैच्छिक कार्बन बाजार इन परियोजनाओं के लिए पूंजी के प्रवाह को बढ़ाने में मदद करेगा, और इस प्रक्रिया में, शुद्ध-शून्य और शुद्ध-नकारात्मक उत्सर्जन लक्ष्यों तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस तरह के बाजार की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल फाइनेंस (IIF) ने स्वैच्छिक कार्बन बाजारों की स्केलिंग पर एक निजी क्षेत्र की एक टास्क फोर्स की ज़रुरत अनुभव करते हुए 2020 में, मार्क कार्नी ने – ‘टास्क फ़ोर्स ऑन स्केलिंग वोलन्ट्री कार्बन मार्किट’ की स्थापना की।
टास्कफोर्स का उद्देश्य एक अभूतपूर्व पैमाने के स्वैच्छिक कार्बन बाजार के निर्माण के लिए एक खाका बनाना है और यह सुनिश्चित करना है कि यह पारदर्शी, सत्यापन योग्य, और मजबूत हो।
इस टास्कफोर्स ने 2020 के अंत में एक परामर्श चलाया और अंततः आज, अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रकाशित की है। जिसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए स्वैच्छिक कार्बन बाजारों की स्केलिंग या विस्तार बेहद ज़रूरी है। रिपोर्ट में कार्बन क्रेडिट में तीन बातों के विस्तार एवं स्थापना की ज़रुरत पर बल दिया गया है –
• एक सहज, लागत प्रभावी और पारदर्शी में मांग के लिए कार्बन क्रेडिट की आपूर्ति का मार्ग
• कार्बन क्रेडिट का आदान-प्रदान / लेन-देन में विश्वसनीयता सुनिश्चित करना
•मांग में वृद्धि को पूरा करने के लिए स्केलेबल यानी जो मापा जा सके ऐसा क्योंकि ज्यादातर बड़ी कंपनियां पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित 1.5 ° C महत्वाकांक्षा को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं
इस रिपोर्ट में इस बात पर भी बल दिया गया है कि स्वैच्छिक कार्बन बाजारों में उच्च पर्यावरणीय अखंडता होनी चाहिए और नकारात्मक परिणाम के किसी भी जोखिम को कम करना का रास्ता समहित होना चाहिए
सबसे महत्वपूर्ण है कि स्वैच्छिक कार्बन बाजारों को, कंपनियों के स्वयं उत्सर्जन में कमी के प्रयास को विनिवेश या डिस इनसेनटीवाइज़ नहीं करना चाहिए