हरसिंगार की ख़ुशबू
कितनी ही निराली हो चाहें
रात खिले
और सुबह झड़ गये
बस इतनी ज़िन्दगानी है।
जीवन छोटा सा हो
या हो लम्बा,
ये बात ज़रा बेमानी है,
ख़ुशबू बिखेर कर चले गये
या घुट घुट के जीलें चाहें जितना।
जो देकर ही कुछ चले गये
उनकी ही बनती कहानी है।
प्राजक्ता कहलो या
पारितोष कहो
केसरिया डंडी श्वेत फूल
की चादर बिछी पेड़ के नीचे
वर्षा रितु कीबिदाई है
शरद रितु की अगवानी है।
अब शाम सुबह सुहानी हैं।