बाल बुद्धि विकास और अंग्रेज़ी

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Child intelligence developmentडॉ. मधुसूदन

(एक)एक भारतीय बालक:
एक भारतीय बालक ने पहली बार C-H-A-L-L-E-N-G-E शब्द देखा। शब्द उसके लिए, नया था। पर बालक चतुर था, बुद्धिमान था, इसलिए आत्मविश्वासी भी था। माता-पिता ने उसे विरासत में अच्छे संस्कार दिए थे। हीन-ग्रंथि नहीं दी थी। उसकी पढाई एक ऐसी शाला, जहाँ समर्पित शिक्षक पढाते थे, ऐसी राष्ट्रीय शाला में हुयी थी। दास्यता की मनोवृत्ति से भी वह मुक्त था। पर, पहले कभी उसने यह शब्द देखा न था। बालक स्वतंत्र तर्क बुद्धि से किसी कठिन प्रश्न पर सोचने में आनन्द अनुभव करता था। और जब उत्तर पा लेता था, तो, उसे जैसे कोई बडी उपलब्धि प्राप्त हुयी हो, वैसा संतोष होता था। जो किसी पारितोषिक से कम न था।
तो, यह बालक, शब्द का उच्चारण सोचने लगा।
कुछ समय  C-H-A-L-L-E-N-G-E शब्द  को दुबारा निहारकर, फिर मन ही मन में, उच्चारण का निर्णय कर, आंखों में चमक के साथ, आत्मविश्वास से, बोला
“चल्लेंगे”।
फिर कुछ प्रश्नार्थक मुद्रा से शिक्षक की ओर देखने लगा।
पक्का?
शिक्षक ने पूछा।
बुद्धिमान बालक बोला, बिल्कुल पक्का।
अब शिक्षक भी सोच में पड गया। क्या कहा जाए? क्या उत्तर दिया जाए? बालक की तर्क-बुद्धि जो, सही दिशा में विकसित हो रही है; उसपर क्या कुतर्क का ठण्डा पानी डाला जाए? उस की बुद्धिको  कुण्ठित किया जाए? क्या  “चॅलेन्ज”  बताया जाए?

(दो)बुद्धि कुण्ठित करोगे?:
पर यही काम हम कर रहे हैं। जब हम अंग्रेज़ी माध्यम की शालाओ में बच्चों को बिलकुल बालपन से पढाते हैं।जब उनकी तर्क शक्ति अंकुरित होनी होती है, उसी समय अंग्रेज़ी माध्यम का संस्कार ऐसे अनेक शब्दों की तर्कहीन स्पेलिंग के बोझ तले बुद्धि का विकास होने के पहले ही बुद्धि कुण्ठित हो जाती है; भोथरी हो जाती है।ऐसे ही हम हमारे बालकों की, बुद्धि की,  उनके तर्क की हत्त्या अनेक वर्षों से कर रहे हैं। अंग्रेज़ी माध्यम में ही प्रारंभ से पढाने के कारण, बालक की बुद्धिका उचित विकास नहीं होता है। उसकी बुद्धिका अंकुर विकसित होने से पहले ही बुद्धि गलत दिशा में मोडी जाती है।
(तीन) कौनसी है, यह गलत दिशा?
यह गलत दिशा,एक भ्रामक धारणा है, जिसे त्रिकालाबाधित सत्त्य मान कर, हमारा उसे अतिरेकी मात्रा तक प्रस्तुत करना।  “अंग्रेज़ी की जानकारी ही विद्वत्ता है”    यही है, वह, भ्रान्त धारणा। ऐसी गलत भ्रामक धारणा बालक के मन पर ठसाई जाती है। बाल मानस तो कोमल होता ही है।और कोमल मन संस्कारक्षम होता है। वह अंग्रेज़ी को ही विद्वत्ता और बुद्धि विकास मान लेता है। यह गलत दिशा उसे अंग्रेज़ी में शायद आगे बढा पाए, पर तर्कशुद्ध विचार जो नवनवीन शोधों के आधार होते हैं, उसमें पीछे रह जाता है। वास्तव में भटक जाता है।

(चार) अनुकरण रूप संस्कार:
उसी प्रकार, वह सबके अनुकरण से भी  संस्कार ग्रहण करता है।
वह बडों को अनुकरणीय मानता है। शिक्षक को ज्ञानी, नेताओं को जानकार, और अभिनेता से भी प्रभावित होता रहता है।
रंगीन पर्दे पर की कृत्रिम सृष्टि उसे स्वप्न लोक प्रतीत होती है। इन अभिनेताओं के वार्तालाप और सक्षात्कार वह देखता है।उनका बीच बीच में अंग्रेज़ी की बैसाखी पर चढकर बोलना जब सुनता है। तो उसका आदर्श भी डगमगाता है। उसे पूरी नहीं तो, आधी अधूरी अंग्रेज़ी बोलने में कोई हानि नहीं, ऐसी भ्रामक धारणा दृढ होने लगती है।
जाने अनजाने यही संस्कार माता पिता शिक्षक, प्राध्यापक, नेता, अभिनेता, समाचारपत्र,दूरदर्शन, और मित्र-संबंधी भी उस के मनःपटल पर अंकित कर देते हैं। इतनी सीमा तक यह भ्रमावस्था फैल चुकी है, कि, चाह कर भी इस वातावरण में सही हिंदी का प्रयोग कठिन, कठिन, महा कठिन हो चुका है। हिंदी के छात्र किसका अनुकरण करें? मुझे पूछते हैं। क्या उत्तर दें? हिन्दी समाचार का भी मानक नहीं मान सकता; जो अंग्रेज़ी शब्द घुसा देते हैं।


(पाँच) शब्दकोश का अभाव:
और,बालक क्या, हर बार शब्दकोश देखेगा? पर देखे भी कैसे?सामान्य घरो में हिन्दी का शब्दकोश उपलब्ध नहीं होता। ऐसा ही मेरा अनुभव है। यदि कोई शब्दकोश उपलब्ध है, तो वह अंग्रेज़ी का।हिंदी तो अपनी भाषा है, उसके लिए शब्दकोश ?क्यों पैसे खर्चे? प्रत्येक संचार माध्यम में, आलेखो में, समाचारो में, बातचीत में,  सारे अंग्रेज़ी के शब्द, कुछ तो गलत भी होते हैं। शिक्षकों को, लेखकों को, सही प्रयोग भी पता नहीं होता।

(छः) बालक ही सच है:
पर मूल बात चल रही थी, “चल्लेंगे” उच्चारण करने वाले बालक की। उसकी तर्कशक्ति को नमन ही करना पडेगा। कम से कम उसके तर्क को कुण्ठित नहीं किया जा सकता। वही तो सच है। हम ही हैं हत-बुद्ध, धौत-बुद्धि, हीन-ग्रंथि दास जो ६८ वर्षों से, मालिक की बोली बोल बोल कर गौरवान्वित अनुभव करते हैं।

पर जब बालक को, शिक्षक ने C-H-A-L-L-E-N-G-E  का सही उच्चारण “चॅलेंज”  बताया तो बालक हँसने लगा। कहने लगा कि, यह तो गलत उच्चारण है।
(सात) बुद्धि परदेश में बंधक
गलत बात को सही, और सही को गलत, मानते मानते  हमारी बुद्धि परदेश में बंधक पडी है।
Colonel को कर्नल कहा, पहला कुतर्क का पाठ पढाया। बालक सोचता है, Colonel में R का उच्चारण र कहाँ है? और यदि उच्चारण कर्नल मान लिया, तो, फिर Colonial “कर्नलीयल” होना चाहिए  था; वह  “कोलोनियल” होता है। और फिर Cologne और  Colon दोनों का उच्चारण कोलन? इसमें g का उच्चारण कहाँ गया? इन चार शब्दों में ही बालक उलझ जाता है।
आपने बालक को बुद्धिमान बनाने, उसकी तर्कशक्ति पैनी करने उसे अंग्रेज़ी माध्यम में डाला।अंग्रेज़ी माध्यम ही बालक की तर्कशक्ति का विकास अवरुद्ध करता है।
(आठ) अंग्रेज़ी माध्यम पहाडे
अंग्रेज़ी माध्यम में पहाडों को मल्टीप्लिकेशन टेबल कहते हैं। उनका पाठ भी लम्बा होता है। समय अधिक ही लगाता है। जितना लम्बा यह “मल्टीप्लिकेशन टेबल” शब्द है, अंग्रेज़ी स्पेलिंग तो और भी लम्बा है। “Multiplication Table” (१९ अक्षर), पहाडा (३ अक्षर) कण्ठस्थ करने में समय भी अधिक लगता है। बोलने में भी हिन्दी की अपेक्षा डेढ पौने दो गुना समय तो लगता ही है।

अब जो भारतीय छात्र जन भाषा या प्रादेशिक भाषा में पहाडे पढ कर विश्वविद्यालय में पढते हैं। वे हिन्दी के पहाडों का उपयोग अंग्रेज़ी गणित में भी करते हैं, और इसी कारण शोध अन्वेषण में भी आगे बढ जाते है। संस्कारी घरों से आनेवाले छात्र कठोर परिश्रमी तो होते ही हैं।

(नौ) निर्णय अभिभावक करें।
अभिभावकों के सामने प्रामाणिक विचार रखें हैं। निर्णय उन्हीं को  करना है।  वैसे ५० से अधिक आलेख केवल  भाषा-संबधित  विषयों पर डाले हैं। उनको भी पढे। मेरी प्रस्तुति में आप विशेष विसंगति नहीं पाएंगे।
अंग्रेज़ी के कर्णधारों ने भी देवनागरी का अनुसरण कर अंग्रेज़ी स्पेलिंग में सुधार करने का मन बनाया था। पर,सारी पहले से छपी पुस्तकों को सुधारित (स्पेलिंग)वर्तनी के अनुसार छपवाने की  असंभाव्यता का विचार कर उसे मूर्त रूप नहीं दिया गया। यह एक पूरे आलेख का इतिहास जैसा विषय है। कभी समय निकाल कर प्रस्तुत किया जाएगा।

बिना हिचक, अलग मत रखनेवाली टिप्पणी का भी स्वागत है।

8 COMMENTS

  1. टिप्पणी-कर्ता, सभी पाठक मित्र श्री. मुकुल शुक्ल जी, छात्रवत अभिषेक, सुश्री रेखा जी, श्री. अनिल गुप्ता जी, और श्री. मोहन गुप्ता जी। आप सभी ने न केवल आलेख पढा। पर विषय-वस्तु को ही, अपने अनुभूत उदाहरणों से पुष्ट ही किया। आप के अनुभव के साक्षात उदाहरणों से, अन्य आलेख के निर्देशित संदर्भ से, और इस आलेख के कथ्य को अग्रेषित कर हिन्दी और जन भाषा का एवं देवनागरी के प्रोत्साहन में योगदान ही दिया है।

    कुछ अनपेक्षित मित्रों के इ. मैल भी आये हैं। वें आलेख के अंतमें जो अंश अंग्रेज़ी वर्तनी के सुधार का उल्लेख किया है, उसपर अधिक विस्तार से जानकारी चाहते हैं।

    कुछ समय की सुविधा पाते ही, उनके अनुरोध का विषय प्रस्तुत किया जाएगा।

    कुछ पाठकों को यह पता ही नहीं है, कि अमरिका का ख्यातनाम पहली पंक्तिका लेखक “मार्क ट्वैन” अंग्रेज़ी वर्णमाला को “रद्दी वर्णमाला” और उसकी वर्तनी को, सडी “हुयी वर्तनी ” कहता है।

    आपका ऋणी।
    मधुसूदन।

    • आई आई टी दिल्ली से बी टेक करके अमेरिका से एम एस करने वाले मेरठ के एक युवक मानव गर्ग ने अमेरिका में चिप डिजाइनिंग में काम करते-२ संस्कृत सीखनी प्रारम्भ की और दो वर्ष तक वहां संस्कृत भारती के संपर्क में रहकर अपने काम के साथ-२ संस्कृत शिक्षण का कार्य भी किया.पिछले माह वो अमेरिका से नौकरी छोड़कर (जो बहुत ही आकर्षक पैकेज की थी) मेरठ (भारत) वापिस आ गया और इस समय एक तकनीकी/प्रबंधकीय संस्थान में विद्यार्थियों को संस्कृत सम्भाषण (बोलचाल) सिखा रहा है. उसके साथ दस वर्ष तक अमेरिका में सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में काम कर चुके एक अन्य युवक निशांत गोयल द्वारा भी सहयोग किया जा रहा है.श्री निशांत गोयल इस समय नौकरी छोड़कर संस्कृत का गहन अध्ययन कर रहे हैं और वेदों के आधार पर वैदिक ग्राम की अवधारणा को तैयार कर रहे हैं.युवाओं का अपनी संस्कृति और संस्कृत के प्रति ये समर्पण भविष्य के प्रति आशा की किरणें जगाता है.

  2. अंग्रेजी भाषा बच्चो पर एक ऐसी भाषा का बोझ हैं जो लिखी अलग जाती हैं और बोली अलग जाती हैं। हिंदी भाषा ऐसी भाषा हैं जैसी लिखी जाती हैं
    बैसे बोली जाती हैं। क्योंकि देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि हैं। भारत में अंग्रेजी की शिक्षा होने के कारण बच्चो पर पुस्तको का बोझ नहीं पड़ता बल्कि मानसिक बोझ भी पड़ता हैं। ज्यादातर लोग अंग्रेजी पड़ कर देश में और विदेशो में नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं। अंग्रेजी सिखने के कारण विदेशो में नौकरी करना आसान हो जाता हैं। कुछ लोगो की बिदेश में नौकरी प्राप्त करने की इच्छा के कारण भारत के सब विद्यार्थियों को अंग्रेजी भाषा का बोझ सहन करना पड़ता हैं जो भारतीय बच्चो को दुर्बल कर देता हैं। विदेशी भाषे जैसे अंग्रेजी , फ्रेंच , जर्मन , चीनी , हिब्रू कुछ लोगो के लिए लाभदायक हो सकती हैं उसे सारे देश पर नहीं लाढना चाहिए। डॉ मधुसूदन जी ने उदहारण देकर गुजराती होते हुए भी हिंदी के पक्ष में कई लेख लिखे हैं।

  3. दुनिया के बहुत सारे देशो मे शिक्षा का माध्यम उनकी अपनी ही भाषा है और अंग्रेजी भी वहा पढ़ाई जाती है । भारत स्वतंत्र तो हो गया लेकिन भारत के गौरव पूर्ण इतिहास की जानकारी का अभाव हमारी शिक्षा व्यवस्था मे स्पष्ट दिखाई देता है और उसका एकमात्र कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था का माध्यम हमारी मातृ भाषा का न होना । “निज भाषा उन्नत्त अहै , सब उन्नति का मूल ”
    लेख ज्ञान वर्धक , जानकारी से भरपूर और तर्क संगत है ।

  4. बात एकदम सही है । अभी कुछ घंटे पहले मेरे भतीजे ( मेरे मामा का नाती ) से स्काइप पर भारत से बात हो रही थी जिसने द्वतीय बार आईएएस और आईपीएस की परीक्षा मे भाग लिया है। चर्चा हिन्दी और अंग्रेजी के सन्दर्भ मे हो रही थी कि किस तरीके से हिन्दी भाषा और अन्य क्षेत्रीय भाषा के विधार्थियो के साथ भेदभाव की नीति है ।
    यहाँ पर इस बात पर विस्तार मे चर्चा उचित नही होगी । अंग्रेजी शिक्षा पद्धति हमपर थोपी गई है ताकि हम हींन बने और विदेशी और विदेशो की नकल करते रहे । स्वतंत्र भारत मे जन्मे , पले , बड़े हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री मोदी जी अंग्रेजी भी जानते है लेकिन अपनी राष्ट्र भाषा का गौरव रखने वाले है । भारतीयता उनके हर काम मे झलकती है और वही पूर्व प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह की नेहरू परिवार के प्रति उदारता अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति का एक नमूना मात्र साबित होती है जिसमे आत्म देश गौरव का पूर्णतः अभाव झलकता है ।

  5. सदैव की भांति एक उत्कृष्ट लेख.लगभग तीन वर्ष पूर्व टाइम्स ऑफ़ इंडिया में स्वामीनाथन इस ऐय्यर का एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमे उन्होंने एक गैर अंग्रेजी मातृभाषा वाले देश के प्रयोग का उल्लेख किया था.वहां पर प्रयोग किया गया कि कुछ बालकों को प्रारम्भ से ही अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी गयी जबकि कुछ अन्य को प्रारंभिक शिक्षा अपनी मातृभाषा के माध्यम से दी गयी लेकिन एक या दो वर्ष के पश्चात माध्यम अंग्रेजी कर दिया गया.दस वर्ष के पश्चात जब उनकी अपनी मातृभाषा,अंग्रेजी और गणित तीन विषयों में परीक्षा ली गयी तो जिन बालकों की शिक्षा प्रारम्भ से ही अंग्रेजी माध्यम से हुई थी उनको तीनों विषयों में कमजोर पाया गया.जबकि अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रारम्भ करके एक या दो वर्ष के पश्चात अंग्रेजी माध्यम अपनाने वाले बालक तुलनात्मक रूप से तीनों विषयों में ही बेहतर पाये गए.इससे पता चलता है की अंग्रेजी भाषा से प्रारंभिक शिक्षा में बालक को अपनी नैसर्गिक प्रतिभा के विकास का कम अवसर मिलता है.ऐसा संभवतः इस कारण होगा कि अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रारम्भ करने पर बालक की काफी शक्ति उस विदेशी भाषा को समझने में ही लग जाती है.
    दुर्भाग्य की बात है कि अंग्रेजी का व्यामोह इतना बढ़ गया है की अब भारतीय संस्कृति पर आधारित विद्यालयोंमे भी अंग्रेजी माधयम को प्राथमिकता दी जाने लगी है.और हिंदी के पक्षधर मुलायम सिंह यादव के सुपुत्र द्वारा शासित राज्य उत्तर प्रदेश में भी प्राथमिक शिक्षा प्रारम्भ से ही अंग्रेजी माध्यम से करने का निर्णय लिया गया है

  6. जी प्रणाम,

    अत्यंत तार्किक एवं ज्ञानवर्धक लेख.

    यह लेख प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक कक्षा तक के विद्यालयीन अध्यापकों तक जरूर पहुँचना चाहिए। ऐसे आँख खोलने वाले जमीन से जुड़े तर्क ही निश्चय ही अध्यापकों समेत छात्र छात्राओं को सही मार्ग प्रशस्त करेंगे। और शिक्षा की नीव मजबूत करेंगे।

    बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरा भी व्यक्तिगत प्रयास रहेगा अधिक से अधिक भारतीयों तक ऐसी लेख श्रखंला पहुँचाने का !

  7. आपकी बात सच है की अगर अंग्रेज़ी लिखने मे देवनागरी का प्रयोग किया जाये तो अंग्रेज़ी भाषा अपनी वर्तनी की कमियों और गलतियों से उबर सकती है लेकिन तर्क शक्ति की कमी और कुंद बुद्धि ने अंग्रेज़ी की इन कमियों को सुधारने के बजाय उसे गलत तरीके से ही गले उतारने पर ज़ोर दिया है | यदि इस देश के तथाकथित विद्वान ये बात समझे की वैज्ञानिक दृष्टि से वर्तनी और प्रयोग के लिए देवनागरी ही सही वर्णमाला है न की रोमन वर्णमाला तो बड़ी बड़ी समस्याएँ सुलझ जाये और बच्चों के दिमाग पर अनावश्यक ज़ोर पड़ने से भी बच जाएगा | सच तो ये है की देवनागरी इतनी वैज्ञानिक और उन्नत वर्णमाला है की दुनिया की किसी भी भाषा मे इसका प्रयोग किया जा सकता है | कम से कम भारतीय भाषाओं मे यदि देवनागरी का प्रयोग हो तो भाषा का झगड़ा पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है |

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