370 क्यों न हो बहस?

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download (1)गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के उठाये हुये विषय आज पूरे देश का एजेण्डा निश्चित करते हुये नजर आते हैं। चाहें वे सरदार वल्लभ भाई पटेल के राष्ट्रीय योगदान से जुड़ा हुआ विषय हो या फिर अनुच्छेद 370 जो जम्मु कश्मीर की जनता मे भेद का परिचायक है। जिस तेजी से इन विषयों को पूरे देश ने स्वीकारा और उस पर चर्चा आगे बढ़ाई उससे नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरते हुये नजर आये। वहीं जिन लोगों ने कभी भी गांधी परिवार से आगे नहीं सोचा उनके लिये नरेन्द्र मोदी और उनके द्वारा उठाये गये ये विषय चिन्ता के कारण के रूप में उभरे। क्योंकि ये विषय कांग्रेस के पुर्ववर्ती नेताओ की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते नजर आते है।
सरदार पटेल का योगदान भारत कभी भी भूल नहीं सकता जिनके कारण आज भारत एकीकृत रूप में नजर आता है। वहीं उस समय के प्रधानमंत्री नेहरू जी जो गांधी जी के कारण ही प्रधानमंत्री बन सके, नहीं तो पुरा देश सरदार पटेल को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता था, उन्होंने भारत के एकीकरण में केवल इतना ही योगदान निभाया कि कश्मीर आज भी विवाद का विषय बना हुआ है। अनुच्छेद 370 जम्मु कश्मीर के एकीकरण के लिये बना अस्थायी अनुच्छेद था जो नेहरू जी के कारण हटाया नही जा सका। जिसके कारण आज जम्मु कश्मीर के एक वर्ग को छोड़ दे तो बाकि सभी इसके कारण अपने आपको राज्य में दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में देखते हैं।
नरेन्द्र मोदी का केवल इतना ही कहना था कि अनुच्छेद 370 जम्मु कश्मीर की जनता के हित में कितना रहा, आज उस पर विचारने की आवश्यकता है। इस विषय में कोई बुराई भी नहीं हैं। लेकिन इस पर चर्चा करने की बजाय कुछ लोगो ने इसको इतना गलत सिद्ध करने का प्रयास शुरू कर दिया कि जैसे इस अनुच्छेद के हटने से जम्मु कश्मीर भारत से अलग ही हो जायेगा।
आखिर इस विषय पर क्यों न हम खुलकर चर्चा ही कर लें जिससे इससे होने वाली लाभ हानि का पक्ष पुरे देश के समक्ष आ जाये।
आखिर इस अनुच्छेद की आवश्यकता क्यों पड़ी?
यह प्रश्न स्वाभाविक है कि अनुच्छेद 370 जम्मु कश्मीर राज्य में ही क्यों लागु किया गया? जबकि अन्य राज्यों का विलय भी उसी समय मे हुआ था। उन राज्यों में इस अनुच्छेद की क्यों नही आवश्यकता पड़ी?
इसके लिये उस समय की संविधान सभा की कार्यवाही को देखना होगा। जिस समय गोपालस्वामी आयंगर ने इस अनुच्छेद को प्रस्तुत किया तो अकेले हसरत मोहानी ने इसकी जरूरत पर सवाल उठाया। जिसका जवाब देते हुए आयंगर ने तीन बातें रखी, ‘‘पहली राज्य में युद्ध जैसी स्थिति है, दूसरी राज्य का कुछ हिस्सा आक्रमणकारियों के कब्जे में है व तीसरा संयुक्त राष्ट्र संघ में हम जम्मु कश्मीर राज्य को लेकर उलझे हुए हैं और वहाँ फैसला होना बाकी है, इसलिये यह अस्थायी प्रावधान किया जा रहा है।’’ उस समय यह विषय भी आया था कि भारतीय संविधान को सीधे तौर पर क्यों नही लागू किया जा रहा है जम्मु कश्माीर राज्य में? हम चाहते तो ऐसा भी कर सकते थे लेकिन इससे हमारे ऊपर ही प्रश्न चिन्ह खड़े होते कि एक और तो हम वहाँ की जनता का ध्यान करके संयुक्त राष्ट्र संघ मे गये है और वहीं हम जबरदस्ती अपने संविधान को उन पर थोप रहे है। इसीलिये अनुच्छेद 370 को भारत की सरकार ने जम्मु कश्मीर में लागू किया कि जब सभी मामले समाप्त हो जायेंगे तो इस अनुच्छेद के माध्यम से भारत का संविधान वहाँ लागू कर देंगे।
जम्मू-कश्मीर के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ नेशनल कांफ्रेंस के सदस्य भी मौजूद थे जो इस पर खामोश रहे। शेष किसी सदस्य ने भी इस पर चर्चा की जरूरत नहीं समझी क्योंकि प्रावधान अस्थायी था और उसके समाप्त होने की प्रक्रिया भी अनुच्छेद में ही जोड़ दी गयी थी।
जो लोग इसके अस्थायी और स्थायी पर सवाल उठाते है उन्हें इसके अस्थायी होने के कारण को भी समझना होगा। उस समय की परिस्थिति जिसका जिक्र संविधान सभा की कार्यवाही के दौरान जो गोपालस्वामी आयंगर ने रखा, उससे स्पष्ट होता है, साथ ही यह जम्मु कश्मीर राज्य में भारतीय संविधान को विस्तार देने के ‘प्रक्रियात्मक तंत्र’ के रूप में ‘अस्थायी अनुच्छेद’ के तौर पर इसे स्वीकारा गया था। अर्थात यह अनुच्छेद केवल मात्र एक तंत्र था जिसे वहाँ की राजनीति ने अपने लाभ और अस्मिता से जोड़ दिया। आज इसी लाभ और अस्मिता को आधार बनाकर भारत से अलगाव के रूप में इसे हवा दी जा रही है। जिसे वहाँ का राजनीतिक तंत्र ही नही अपितु मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले सभी दल व तथाकथित मानवाधिकारवादी संगठन हवा देते नजर आ रहे हैं। कांग्रेसी नेता जिनके पुर्वजों ने ही इसे अस्थायी अनुच्छेद ही माना था, भी मुस्लिम वोटों की राजनीति के लिये आज इस अनुच्छेद को स्थायी ही मानते है।
क्या इस अनुच्छेद का लाभ पुरे राज्य के नागरिको को मिल रहा है? जब इसका ध्यान करेंगें तो लगेगा कि यह अनुच्छेद केवल कुछ लोगों के लाभ के लिये है। राज्य का एक बहुत बड़ा वर्ग इस अनुच्छेद के कारण वहाँ का नागरिक होते हुये भी वह सब लाभ प्राप्त नही कर पा रहा है जो लाभ उसको भारत के किसी अन्य राज्य में रहते हुये उन्हें मिल सकते थे। जैसे अनुसूचित जाति व जनजाति के आरक्षण का लाभ क्योंकि इस अनुच्छेद के कारण अन्य राज्यों मे आरक्षण की नीति जम्मु कश्मीर राज्य में लागू नही हो पाती है इसलिये ये लोग इससे वंचित है। ऐसे ही सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार राज्य में लागू नही है, सरकार की कृपा पर निर्भर है आप चाहे तो आपको लाभ मिलेगा नहीं तो आप इससे वंचित हैं हीं। ऐसे ही सरकार कितना भी भ्रष्टाचार करे लेकिन उसे इससे नही रोक सकते क्योंकि जो भ्रष्टाचार विरोधी कानून देश के अन्य राज्यों में लागू है वह जम्मु कश्मीर राज्य में लागू नही। इसी प्रकार के लगभग 130 कानून अनुच्छेद 370 के कारण जम्मु कश्मीर राज्य में लागू नही हो पा रहे जिससे राज्य की जनता को सीधा लाभ मिल सकता है।
जरा ध्यान करें कांग्रेस अपने प्रिय नेता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सपने पंचायती राज की चर्चा सबसे ज्यादा करती है। यह बात सत्य भी है कि पंचायती राज कानून के लिये सबसे बढ़चढ़ कर राजीव गांधी ने हिस्सा लिया। पिछले दिनों जब उनके सुपुत्र राहुल गांधी जम्मु कश्मीर के प्रवास पर गये तो उन्होने वहाँ के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जैसे कपड़े टोपी पहन कर बहुत से फोटों खिचवाये और अपने को ऐसे प्रदर्शित किया कि जैसे वे भी कश्मीरी है, साथ ही यह भी कहने में नही चूके कि उनके पुर्वज कश्मीरी थे जबकि वास्तविकता यह है कि उनके पिताजी के नाना नेहरू जी का सम्बन्ध जरूर कश्मीर से रहा जिसका खामियाजा आज पुरा देश भुगत रहा है जबकि राहुल गांधी के पुर्वज विशुद्ध गुजराती थे जो इलाहबाद आकर बस गये थे, ने जब अपने जम्मु कश्मीर के प्रवास के दौरान कहा कि एक रात में पंचायतों को ताकतवर नही बनाया जा सकता तो पंचायतों के संरपंचों ने उनके इस कथन को लेकर विरोध दर्ज कराया। वे यह भूल गये कि पिछले दस वर्षो से जम्मु कश्मीर में या तो कांग्रेस का शासन है या फिर उनके समर्थन से वहाँ सरकार चल रही है। पंचायतों के सरपंचों के साथ इससे बड़ा मजाक किया हो सकता है कि जो कांग्रेस पूरे देश में पंचायती राज की प्रशंसा करते हुये नहीं अघाती उसी कांग्रेस के नेता अपने शासन काल मे भी पंचायती राज कानून को इसलिये नही लागू कर पाते क्योंकि वे मुसलमानों को नाराज नहीं करना चाहते। कोई उनपर तुष्टीकरण का आरोप न लगाये इसके लिये वे अनुच्छेद 370 का बहाना बना देते है कि जब तक वहाँ की विधायिका इसे पास नहीं करेगी तब तक वे कुछ नही कर सकते।
केवल पंचायती राज ही नही, भ्रष्टाचार निरोधक कानून, अनुसूचित जाति-जनजाति आरक्षण, राजनीतिक रूप से अनुसूचित जातियों के लिय विधायिका मे सीटों का आरक्षण तक वहाँ की सरकार लागू नही करना चाहती। केन्द्र सरकार अनुच्छेद 370 के कारण वहाँ की विधायिका को आदेश नही देती। क्योंकि सरकार में चुनकर आने वाले अधिकतर मुसलमान है इसलिये जातिगत आरक्षण को वो मान्यता नही देते क्योंकि उन्हें इससे हिन्दूओं का वहाँ की नौकरियों पर कब्जा होने का डर लगता है।
भारतीय संविधान के अनुसार जो मौलिक अधिकार पुरे भारत में लागू है वह जम्मु कश्मीर में लागू नहीं है। आज कश्मीर घाटी की जनसंख्या जम्मु से कम है लेकिन विधायको की सीटें कश्मीर घाटी में अधिक है और जम्मु में कम। वहाँ की सरकार को लगता है कि यदि जम्मु कश्मीर में लोक प्रतिनिधि कानून और जनसंख्या के अनुसार सीटों के निर्धारण का कानून लागू हो गया तो विधायिका में जम्मु के लोगों का वर्चस्व बढ़ जायेगा और वे अपनी अनैतिक नीतियों को लागू नहीं कर पायेंगे। जम्मु कश्मीर सरकार की इस नीति के कारण जम्मु और लद्दाख के लोग अपने आपको ठगा सा महसूस करते है। केन्द्र की सरकार अगर वोटों की राजनीति से उठकर चाहे भी तो वह अनुच्छेद 370 के कारण ‘लोक प्रतिनिधि कानून’ और ‘जनसंख्या के अनुसार सीटों के निर्धारण का कानून’ लागू नही कर सकती। जम्मु कश्मीर की सरकार तो वैसे भी कश्मीरी मुसलमानों की सरकार पहले है जम्मु और लद्दाख के नागरिकों की सरकार तो वह प्रतिकात्मक रूप से ही है। इसलिये वह क्यों यह चाहेगी कि गैर कश्मीर घाटी क्षेत्र का वर्चस्व वहाँ की विधानसभा में बढ़े।
केन्द्र सरकार खरबों रुपया जम्मु कश्मीर सरकार को हर वर्ष विकास के नाम पर देती है लेकिन उसका ‘आडिट’ कभी नही होता। यह पैसा कहाँ उपयोग में लाया जा रहा है इसका कभी भी केन्द्र की सरकार को नही पता चलता। क्योंकि केन्द्र की सरकार को इस दी हुई राशि को ‘आडिट’ करने का अधिकार नहीं है।
ऐसे अनेकों कानून भारत की सरकार चाह कर भी जम्मु कश्मीर राज्य में लागू नही करवा सकती इसका कारण केवल एक ही है कि अनुच्छेद 370। आज इस पर पूरे देश में चर्चा चलाने की आवश्यकता है। केवल कुछ लोगो और कुछ परिवारों के हित के लिये राज्य के बहुत बड़े हिस्से को विकास से वंचित नही रखा जा सकता।
जगत मोहन

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