अशांत नेपाल में भारत विरोधी लहर

nepalमृत्युंजय दीक्षित
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम पद की शपथ लेने के बाद पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधंो को मजबूती प्रदान करने के लिये साहसिक व गंभीर प्रयास प्रारंभ किये थे तथा इस सिलसिले में वे दो बार नेपाल भी गये। नेपाल में पीएम मोदी का खूब जादू चला तथा भूकम्प से प्रभावित पड़ोसी देश को भरपूर आर्थिक व सैन्य मदद भी दी। भारती सेना ने वहां पर अप्रतिम सहायता व सेवाकार्य भी किये लेकिन अब वह सभी कवायदें एकबारगी विफल होती नजर आ रही हैं। पीएम मोदी ने अपने कई भाषणों में सभी पड़ोसियों के साथ बेहतर और सामजंस्यपूर्ण संबंधों की वकालत की है। नेपाल की संसद को संबोधित करते समय पीएम मोदी ने नेपालयों को भगवान बुद्ध की संस्कृति वाला देश भी बताया था और अहिंसा परमो धर्मः का उपदेश देते हुए नेपालियों की प्रशंसा के पुल भी बांधे थे और दोस्ती तथा सहयोग का हाथ बढ़ाया। मोदी की नेपाल यात्राओं से लग रहा था कि अब नेपाल से मैत्री के नये रास्ते खुल जायेंगे लेकिन जेैसी की राजनेतिक विश्लेषकों द्वारा आशंका व्यक्त की जा रही थी आज नेपाल नया संविधान लागू हाने के बाद व वामपंथी विचारधारा के पीएम व राष्ट्रपति के आने के बाद नेपाल भारत के प्रति बेहद आक्रामक ढंग से असहनशील हो गया है। नेपाल आज भारत के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार कर रहा है वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व चुनौतीपूर्ण हो गया है। नेपाल भारत के लिए आर्थिक, राजनैतिक व सामरिक नजरिये से बेहद उपयोगी पड़ोसी देश है।
नेपाल के साथ भारत के कई अतिमहत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौतें हैं जिनमें ऊर्जा परिवहन समेत कई अतिमहत्वपूर्ण हैं। लेकिन आज की तारीख में इन सभी समझौतों पर काले बादलों की छटा घिर आयी है। आज नेपाल एक बार फिर अशांत हो चला हैं। भारत के दो प्रमुख पड़ोसी चीन और पाकिस्तान यह कतई नहीं चाहते कि नेपाल और भारत के सबंध मधुर बन सकें। आज नेपाल पूरी तरह से चीन के शिकंजे में जा चुका है तथा यदि भारतीय रणनीतिकारों ने तेजी से नेपाल के साथ रिश्तो को सुधारने का प्रयास नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब नेपाल भी तिब्बत की तरह चीन का अंग बन जायेगा। अभी नेपाल पहली सीढ़ी चढ़ गया है। जब नेपाल में नये सविंधान का निर्माण हो रहा था और वहां पर संविधान सभा ने नेपाल को हिंदू देश घोषित करने की मांग को अस्वीकार कर दिया था उसी समय इस बात की संभावना प्रबल हो गयी थी कि अब नेपाल व भारत के संबंधों में नये सिरंे से खटास उत्पन्न होने जा रही है।
विगत 48 घंटों नेपाल में भारत विरोधी जो उबाल आया है वह बेहद गंभीर मामला है। नेपाल सशस्त्र प्रहरी ने एसएसबी के 13 जवानों को उस समय बंधक बना लिया जब वे तस्करों का पीछा करते हुए नेपाल की सीमा में प्रवेश कर गये। मामला दो देशों का होन के कारण खलबली मचना स्वाभाविक था। बाद में दोनों देशों के अधिकारियों की बातचीत के बाद जवानों को मुक्त कराया गया। ज्ञातव्य है कि एसएसबी जवान रेहान कुमार और रामप्रसाद ने तस्करों का पीछा किया तो वे नेपाल खुटामनी गांव तक प्रवेश कर गये। जहां नेपाली नागरिक द्वारा हंगामा करने पर नेपाल सशस्त्र प्रहरी के जवानों ने दोनों को बंधक बना लिया। जब कुछ समय बाद वे जवान नहीं लौटे तब भारत के 11 और जवान नेपाल सीमा में प्रवेश कर गये उन्हें भी नेपाली प्रहरी ने बंधक बना लिया। भारत सरकार के गृहमंत्रालय के कड़े हस्तक्षेप के बाद जवानों की रिहाई की गयी। दूसरी तरफ नेपाल के एकीकृत माओवादी पार्टी से अलग हुए माओं कार्यकर्ताओं ने भी भारत पर आर्थिक नाकेबंदी का आरोप लगाकर मोर्चा खोल दिया है। कई कस्बों व शहरों में भारतीय चैनलों का प्रसारण बंद करवा दिया गया है। नेपाली सिनेमाघरों में भारतीय फिल्मों का प्रदर्शन भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। कई स्थानों पर भारतीय वाहनों पर पथराव व आगजनी की कोशिश की गयी है। नेपाल के नये संविधान में संशोधनों की मांग को लेकर मधेशी आंदोलन अब धीरे – धीरे उग्र हो रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भटटराई के समर्थक भारत पर आवश्यक सामग्रियों की आपूर्ति न करने व आर्थिक नाकेबंदी करने का गंभीर आरोप लगा रहे हैं। नेपाल सरकार को लग रहा है मधेशी लोग भारत की शह पर आंदोलन चला रहे है।नेपाल में भारत विरोधी लहर को देखते हुए भारत के गृहमंत्रालय व विदेश मंत्रालय में चिंता की लकीरें दिखलायी पड़ रही हैं तथा वहां पर नेपाल पर नजदीक नजर रखी जा रही है। नेपाल के मधेशी अब स्वतंत्र देश तक की मांग करने लग गये हैं तथा पीएम मोदी व भारतीय सेना के हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैंे। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आज नेपाल के जो हालात बन गये हैं उसके लिए कहीं न कहीं हमारी पूर्ववर्ती सरकारें भी कम जिम्मेदार नहीं है। यहां की कुछ जयचंदी ताकतों का भी हाथ नेपाल संकट को पैदाकरने में हो सकता है। भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी नेपाल की स्थिति पर बारीक नजर रख रहे हैं।नेपाल पहले से ही चीन व पाक की भारत विरोधी गतिविधियों के लिए आसान जमीन रहा है तथा वह हर प्रकार की तस्कारी करने वाले गिरोहों का अभूतपूर्व गढ़ रहा है।नेपाल की धरती से मानव तस्करी, हथियारों की तस्करी व जाली नोटों की तस्करी ,नशीले पदार्थों व युवतियों का व्यापार बड़े आराम से हो रहा था। नेपाल धर्मपरिवर्तन कराने वाले लोगों का भी एक प्रमुख गढ़ बन चुका है। यह ताकतें नहीं चाहती कि नेपाल में भारत का वर्चस्व बढ़ें ।
कहा जाता है कि नेपाल भारत विरोधी आतंकी गतिविधियां चलाने वाले गिरोहों का भी स्वर्ग है वह नहीं चाहते कि भारत नेपाल में अपनी सहयोगी गतिविधियों को बढा सके। यह सभी भारतविरोधी तत्व मिलकर गहरी साजिश रच रहे हैं भारत सरकार को नेपाल सरकार के साथ मधुर संबंधो को पटरी पर लाने के लिए त्वरित व अतिरिक्त प्रयास करने चाहिये।
मृत्युंजय दीक्षित

3 COMMENTS

  1. मधेस तराई शब्द से भारत से सटा हुआ मैदानी इलाके का बोध होता है। इस क्षेत्र में सिर्फ मिथिला नही है, अनेक जात जाती, संस्कृति तथा धर्म वाले लोग रहते है। उन्हें नेपाल में शाषक वर्ग द्वारा दोयम दर्जे का नागरिक समझे जाता रहा है, नए संविधान में समान हक की मांग हो रही है। समान हक वाले संविधान से नेपाल में स्थिरता आएगी और एक राष्ट्र के रूप वह मजबूत होगा। भारत से जल समझौता नेपाल की केंद्र सरकार का विषय है, अतः प्रांत बनाने भर से भारत का हित नही हो जाएगा, इसे उस आलोक में न देखे। भारत की मीडिया तथा राजनीति में नेपाल को समझने की कोशीस हो रही है, लेकिन नेपाल में भारत के सद्भाव को वहाँ कुछ लोग अन्यथा ले रहे है, यह ठीक नही। अखण्ड, स्थिर और शांत नेपाल में ही सबका भला है।

  2. नेपाल के मधेशी अब स्वतंत्र देश तक की मांग करने लग गये हैं जो सरासर गलत है , मधेश नहीं वहां मिथिला प्रान्त का गतःन भारत के भी हित में है ताकि जलसन्धियाँ की जा सके. भारत के एनेपल नीति सदैव गलत रही है , मिथिला प्रान्त का भारत में गठन , उसका नेपाली मिथिला प्रान्त से सांस्कृतिक सम्बन्ध ही एकमेव दोनों देशों के हित में रास्ता है.

  3. नेपाल अपने लिए एक समावेशी संविधान लिखने में असफल हुआ है, इसे मोदी की असफलता कैसे कह सकते है? नेपाल के शान्ति समझौते का एक सक्रिय साझेदार भारत भी रहा है, आन्दोलनरत पार्टियों ने नेपाल के नए संविधान मे नेपाल के सभी क्षेत्रों के नागरिको को समान अधिकार देने का वादा किया था. लेकिन नेपाल के शाषन करने वाले वर्ग ने अन्य वर्गो को शाषन के मूल धार से वंचित करने वाला संविधान बना दिया. असमान नागरिक अधिकार, प्रदेशो का गलत सीमांकन, असमान प्रतिनिधित्व आदी त्रुटियों के कारण लोगो में असंतोष है. ऐसे में मधेसी, थारु एवं जनजातियो के आन्दोलन की अनदेखी भारत नहीं कर सकता. अगर यह भारत की असफलता है तो यह यू.पी.ए. की नीतियों की असफलता है जिसने नेपाल में लोकतंत्रवादियों, वामपंथियों और माओवादियों के बीच दिल्ली समझौता कराया. यू. पी. ए. ने जिन लोगो पर विश्वास किया, वे लोग वामपंथी मुखौटे में घोर दक्षिणपंथी लोग साबित हुए है. कल तक वे सर्वहारा की मुक्ति की बाते करते थे लेकिन आज वे नेपाल में तानाशाही की वकालत करने वाले लोगो से गठबंधन कर नेपाल के बहुसंख्यक लोगो पर अत्याचार करना चाहते है.

Leave a Reply to Amit Yadav Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here