कल लोकसभा में असहिष्णुता के मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, जिसमें एक सांसद ने कहा था कि ‘भारत में आर्य बाहर से आए हैं’. सवाल यह उठता है कि इस बात में कितना तथ्य हैं और आजादी के इतने वर्षों के बाद भारत में इतिहास में शोध करने वालों को आज तक इस बात का पता क्यों नहीं चला कि भारत में आर्य कब आए. ‘दी डिस्कवरी ऑफ इंडिया (भारत एक खोज)’ में लिखा है कि ‘भारत में आर्य उत्तरी धृव से आए, लेकिन उन्होंने यह बताने कष्ट नहीं किया कि आर्य भारत में कब आए.
जिस देश का नाम ही ‘आर्यावर्त्त’ हो, उस देश में भारत बाहर से आए और इस बात का सभी बुद्धिजीवियों द्वारा समर्थन करना कितनी बड़ी बौद्धीक दरिद्रता का प्रतीक है. दरिद्रता हो भी क्यों नहीं, क्योंकि यही तो वह (अंग्रेज) चाहते थें कि हम अपना वास्तविक इतिहास भुल जाए. हम हमारे ही देश में बेगाने बन कर रह जाए. मैकॉले महाशय जहां-कही भी होगे, इस बात पर जश्न अवश्य मना रहें होगे.
अब थोडा आर्य’ शब्द के अर्थ पर गौर करते हैं, ‘आर्य’ शब्द का जो अर्थ शब्दकोशों में दिया गया है, इससे यह पता चलता है, कि वह किन लोगों के लिए प्रयोग में लाया जाता हैं, लेकिन इस बात का पता नहीं चलता कि उसकी उत्पत्ति कैसे हुई. कहते हैं किसी शब्द की वास्तविकता की खोज़ करनी हो तो, उस शब्द की उत्पत्ति पर ध्यान देना चाहिए. इतिहास के वास्तविक अनुसंधानकर्ता श्री नरेंद्र पिपलानी के अनुसार आर्य शब्द ‘अर’ धातु से बना है, जिसका अर्थ ‘आधा’ होता है. अब यह आधा क्या हैं? आपने देखा होगा कि, सूर्य पूर्व दिशा में उदित होता है और पश्चिम में अस्त होता है, पूर्व से उदय होकर पश्चिम में अस्त होने तक वह आधा चक्र पूरा करता है, इसलिए हम उसे पूरा नहीं देख पाते हैं. इसी बात को ध्यान में रखकर आधे दिखाने देने वाले सूर्य की आराधना करने वाले लोग को ‘आर्य’ नाम दिया है, क्योंकि वह सूर्य के उपासक थे, यह सर्वविदित हैं.
अब यह धारणा कि, भारत में आर्य बाहर से आए जानबूझकर कुछ अंग्रेज विद्वानों ने फैलाई थी. यह धारणा इस देश में फैलाने के पीछे उनकी इस देश के वास्तविक भूमीपूत्रों को भ्रम में डाल कर उन्हें स्वतंत्रता की लड़ाई से अपना ध्यान दूसरी तरफ मोड़ना था, ताकि वे इस भारत भूमी पर अपना अधिकार न बता सकें.
आर्य एकमेव ऐसी प्रजाति है, जिसके पूर्वज केवल भारत में ही पाए जाते हैं.
आपने देखा होगा कि जब किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की जमीन पर अपना कब्जा करना होता है, तो वह यह साबीत करने की कोशिश करता हैं कि यह भूमी तुम्हारी नहीं है. उसके वास्तविक मालिक को भ्रम में डाल दिया जाए और ऐसी स्थिति उत्पन्न की जाए कि, वास्तविक मालिक भी चक्कर में पड़ जाए. आपने देखा होगा कि कुछ लोग प्लॉट के नक्शे में किस प्रकार छेड़छाड करते हैं. आधी फीट जमीन हथियाने के कई सारे मामले देश की न्यायालयों के पास लंबीत पड़े हैं. जिस प्रकार पाकिस्तान कश्मीर पर अपना हक जमाने के लिए किस प्रकार की तिकडमबाजी करने में दिन रात लगा रहता है. पाकिस्तान ‘ऑक्यूपाइड कश्मीर (पीओके)’ शब्द आपने कई बार सुना होगा, इसका सरल शब्दों में अर्थ जो जमीन उसकी नहीं है उसको हथियाने की नाकाम कोशिश करना है, जिसे हम ‘अतिक्रमण’ कहते हैं और अतिक्रमण का अंत क्या होता है, यह भी आप भलिभॉति जानते हैं!
‘आर्य भारत में बाहर से आए’ यह दिखाने के लिए अंग्रेजों ने जानबूझकर यह भ्रम इस देश के बुद्धिजीवियों में फैलाया ताकि यह जन-जन तक पहॅुच जाए. क्योंकि हमारे देश के कुछ विदेशी डीग्रीधारी तथाकथित बुद्धिजीवि यह कार्य मुफ्त में ही कर देंगे, यह अंग्रेजों को अच्छी प्रकार से पता था.
एक भी भारतीय यह स्वीकार नहीं कर सकता कि, उसके पूर्वज भारत में कही बाहर से आए हो. यदि हमारे वेद, पुराण, उपनिषद और शास्त्रों का गहराई से अध्ययन करें तो पता चलता है, भारत की प्राचीन भाषाओं से विश्व की सभी भाषाओं में शब्द गए है. इसीलिए संस्कृत भाषा के शब्दकोश में सर्वाधिक शब्द पाए जाते हैं, दुनिया की किसी भाषा में इतने शब्द नहीं पाए जाते हैं, क्योंकि संस्कृत से ही यह शब्द अन्य देशों की भाषाओं में गए है. शब्द दुसरे देशों में उड़कर तो जा नहीं सकते किसी व्यक्ति या परिवार के माध्यम से ही यह शब्द गए होगे. हमारे पूर्वज समुद्र के मार्ग से और नेपाल, पाकिस्तान और अन्य युरोपीय देशों में व्यापार करने के लिए प्राचीन काल से जाते रहें हैं, जिस प्रकार आज कोई व्यक्ति अमेरिका नौकरी या व्यापार करने के लिए जाता है, तो अपने साथ कुछ जीवनावश्यक वस्तुऍं, परिवार के कुछ सदस्यों और धर्मग्रंथों को लेकर जाते थें, यह सभी व्यक्ति की भाषा के संवाहक हैं. इसीलिए ग्रीक, लैटीन, जर्मन और अन्य भाषाओं में भी पाए जाने वाले शब्द बिलकुल हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत में पाए जाते हैं, क्योंकि वह संस्कृत से ही उन भाषाओं में गये हैं, इसीलिए ऑक्सफोर्ड की डिक्शनरी में भी जीन शब्दों की उत्पत्ति नहीं दी गई हैं, ऐसे कई सारे शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत के शब्दों को मिलाकर देखने से मिल जाती है, जैसे अंग्रेजी की ‘Full’ शब्द की उत्पत्ति ‘प्रफुल्ल’ शब्द से हुई, इसे कोई झुठला नहीं सकता, क्योकि Full शब्द में डबल एल कहा से आया? इस शब्द के उच्चारण में डबल एल का कोई उच्चारण नहीं होता है, मात्र एक ही एल का उच्चारण होता है, अंग्रेजों (विदेशियों) ने ‘प्रफुल्ल’ शब्द का फूल उच्चारण तो कर दिया लेकिन डबल एल क्यों है, वह नहीं बता सकते. इसी प्रकार अंग्रेजी की ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में कई शब्दों की व्युत्पत्ति Unknown अर्थात ‘अज्ञात’ दी जाती है, क्योंकि उन्हें ही पता नही कि वह शब्द कैसे बना.
ऐसे कई शब्दों को बताया जा सकता है, जो पश्चिमी देशों में प्रचलन में कहा से आए हैं किसी को पता नहीं.
यह तो बात हो गई शब्दविज्ञान की जो भाषा विज्ञान का ही एक अंग है. अब बात करते हैं, डीएनए की. डिएनए विशेषज्ञों ने भी यह माना है कि, पूरे विश्व के लोगों के डीएनए सैम्पल एकत्रीत किए जाए तो उनके सात-आठ प्रकार ही पाए जाऐंगे, इससे अधिक नहीं क्योंकि हमारी प्राचीन धारणा कि सप्त ऋषियों से मानवों के परिवारों के हम वंशज हैं, ‘गोत्र प्रणाली’ इस धारणा को सिद्ध करती हैं. प्राचीन काल से ही भारत से लोग ज्ञानप्रसार, व्यापार और अन्य कारणों से बाहर जाते रहतें हैं. भारत से लोग बाहरी देशों में जाकर बसते हैं, न कि बाहर से भारत में आकर बस गए.
अब, भौगोलिक दृष्टीकोण से देखते हैं, कि यह धारणा कहा तक सही बैठती है. आज सात खंडों में पृथ्वी की पूरी जमीन को विभाजित किया गया है. इन सप्तद्वीप और नवखंडों का वर्णन प्राचीन साहित्य में भी आता है. क्योंकि यही बाद में कॉन्टीनेंट में परिवर्तित हो गए. भूगोल के अध्ययन से पता चलता है, कि पूरी धरती पर जितने मनुष्य आज पाए जाते हैं, इनका मूल पुरूष अवश्य ही कोई एक ही व्यक्ति रहा होगा, क्योंकि हम वसुधैव कुटुंबकम्’ की बात करते है, इसका मतलब थोडा गहराई से सोचने से पता चलेगा कि पूरी वसुंधरा(पृथ्वी एक कुटुंब यानी परिवार हैं, इसका मतलब यह है कि पूरी दुनिया एक परिवार ही है. जिस प्रकार एक संख्या से ही दुनिया की बड़ी से बड़ी संख्या बनती हैं, उसी प्रकार यह कुटुंब भी विस्तारित हो कर आज पूरी दुनिया में फैल गया.
भारतीय पुराणों में भगवान महादेव को ‘आदिनाथ’ कहा जाता है और उनका जो भी वर्णन पुराणों में किया गया है वह सारा का सारा दृश्य आपको आज भी हिमालय में देखने को मिल सकता है. महादेव और पार्वती का जो वर्णन पुराणों में दिया गया है, वह सारा का सारा वर्णन आदिम अवस्था के मानव का है, जो आज से लाखों वर्षेां पहले का है. आधुनिक जीवशास्त्र वैज्ञानिक मानते हैं, कोई एक स्त्री-पुरूष से इस पूरी धरती के मनुष्य उत्पन्न हुए है. बाद में विस्तार हो कर यही लोग पूरी धरती पर फैल गए. महादेव का बर्फिली गुफाओं में रहना, व्याघ्रांबर पहनना, नंदी-भृंगी जैसे जीवों के साथ एकांत में रहना, पार्वती के पिता का ‘हिमालयराज’ कहलाना, पार्वती शब्द में पर्वतों की झलक दिखाई देना यह सब कुछ आदिम अवस्था के मानव ही वर्णन है पाश्चात्य संशोधको ने हमें बताया लेकिन हमारे पूर्वज स्वयं महादेव शिव शंकर है और वहीं हमारे देवों के देव महादेव है, यह तो हमारे देश के अनपढ लोग भी जानते है. बाद में यही हिमालय वासी मध्य और दक्षिण दिशाओं में फैल गए और द्रविड कहजाए. इसलिए द्रविड और आर्यों के बीच में वैमनस्य को बढाकर उन्हें यह बताना कि आर्य बाहर से आए ऐसी सस्ती मुर्खता का प्रसार अंग्रेजों और पश्चिम के विद्वानों ने शुरू किया. उनमें से कुछ पूर्वज हिमालय को पार करते हुए ही हमारे पूर्वज युरोपीय देश में फैले हुए है. इस प्रकार भारत में उत्पन्न लोग ही पूरे विश्व में जाकर बस गए. इसीलिए आपने देखा होगा कि, दुनिया के किसी देश के व्यक्ति का मूल पुरूष भारत से आया ऐसी लगभग सभी देशों में धारणा है. हमारे प्राचीन ग्रंथों में जिन देशों के नाम आते है, वहीं देश आज भी मौजुद है। उनके नामों में थोड़ा-बहुत अंतर आ गया है. अमेरिका को यदि मैं ‘अ-मय-रिका’ लिखुँ तो यह मय राजा की नगरी कही जा सकती है. युरोपीय देशों के साथ भी ऐसा ही कुछ साम्यता दिखाई देती है, और विश्व के प्राचीन देशों के देवों की मुर्तियों में वही देवता है, जिनकी पूजा हम भारत में आज भी करते है. शिव, पार्वती, गणेश यह वह देव है, जो दुनिया के सभी धर्मों में आज भी पूजे जाते है, बस उनके नाम और आकार-प्रकार बदल दिए गए हैं. कई धर्म जो अपने आप को निर्गुणवादी कहलाते हैं, वह भी शिवलिंग की ही पूजा करते हैं. बस उसका नाम बदल दिया गया हैं. क्योकि मुर्तिपूजा करने वाले और मुर्तिपूजा न करने वाले ऐसे दो ही धर्म पूरे विश्व मे पाए जाते हैं, जो मूर्तिपूजा नहीं करते हैं, वह भी अप्रत्यक्षरूप से शिवलिंग की ही पूजा करते हैं. पूरी दुनिया में सूर्य को पूजने वाले और चंद्र को पूजने वाले ऐसे दो ही धर्म पाए जाते हैं. मुझे यदि पूरे विश्व के धर्मों के दो भाग करने हो तो उन्हें सीधे सूर्य के उपासक और चंद्र के उपासक इन दो भागों में किया जा सकता है.
धर्म अलग है, इसका मतलब यहीं होता कि उनका भगवान अलग है, जिस प्रकार देश की कोई भी पार्टी मात्र एक विचारधारा है, दोनों का उद्येश्य सत्ताप्राप्ति की दौड लड़ना और सत्ता प्राप्त करना होता है, उसी प्रकार दुनिया के सभी धर्मों जिनको विचारधारा कहना सही होगा, एक ही उद्देश्य की प्राप्ति की लिए दौड़ रहें हैं. भगवान अलग होता तो उनको बनाने वाला हिंदुओं को चार हाथ देता क्योंकि हिंदु देवताओं के तो चार हाथ आपने देखें होगे, उनके चार हाथ उनका अधिक सामर्थ्यवान होना बताते है न कि उनके वास्तविक चार हाथ होते हैं, जैसे हमें रामानंद सागरजी ने या फिर किसी चित्रकार या मूर्ति में दिखाए गए हो. देवों के अधिक हाथ होना उनके अधिक शक्ति होने को दिखाते हैं. क्योकि यदि हिंदुओं को बनाने वाला भगवान और मुस्लिमों का अल्लाह दोनों अलग होते तो, हिंदुओं के घर में जन्म लेने वाले बच्चों को दो हाथ मुफ्त में मिले हुए ‘गॉडगीफ्टेट’ होते. मुस्लिमों को बनाने वाला भगवान यदि अलग होता तो मुस्लिमों के बच्चों की शरीर रचना अलग होती, लेकिन ऐसा नहीं है, किसी भी समझदार व्यक्ति को यह इशारा काफी हैं. खुन का रंग एक होने की बात हमें नाना पाटेकरजी ‘क्रांतिवीर’ में बता ही चुके हैं, इसलिए उसे नहीं दोहराउूंगा.
खैर, हम चर्चा कर रहे थें, आर्य भारत में कहां से आए इस विषय की सही जानकारी प्राप्त करनी हो तो आप किसी भी ‘आर्य’ कुलनाम सरनेम के व्यक्ति को यह अवश्य पूँछें कि आपके पूर्वज कहां से आए ? हो सकता है कि आपके इस सवाल से वह ‘आर्यमान’ खफ़ा होकर क्रोध करें. तो घबराए नहीं. उस व्यक्ति को आराम से पुँछे कि क्या आपके दादा-परदादा ने आपको यह बताया था कि वह भारत में कहॉं से आए. तो जो जवाब आपको मिलेगा उससे आपका यह भ्रम अवश्य दूर हो जाएगा और आपके ज्ञान के चक्षु अवश्य खुल जाऐंगे. अब यह सिद्ध हो जाए कि भारत में आर्य कही बाहर से नहीं आए हैं तो हम हमारे इतिहास की उन तमाम पुस्तकों का क्या करें, जिन्हें हमने पैसे देकर खरीदा हैं और हमें उन पुस्तकों को स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़कर डिग्रीयां मिली हैं.
लगता है कि मैंकाले का वह सपना जो उसने ब्रिटीश संसद में देखा था कि, हमें भारत को ऐसी शिक्षा पद्धति देनी होगी, जिससे कि भारतीय केवल शरीर से भारतीय रहें और मन, विचार और आत्मा से पूरी तरह अंग्रेज हो जाए यह सपना साकार होता दिख रहा है.
किसी ने कहा है कि वह राष्ट्र अपने भविष्य निर्माण नहीं कर सकता हो अपना इतिहास भुल जाता है, इसीलिए अंग्रेजों ने हमारे इतिहास को इस कदर बदल दिया कि, भारतीय अपने ही घर में बेगाने हो गए.
हमे तो इस बात का सुकून है कि हिन्दुओ के 5000 साल पहले का सबूत अभी के वैज्ञानिक निकाल रहे है। यह भी साबित हो रहा है कि भारत मे पहले भी शिव विष्णु ब्रम्हा प्रकृति और देवियो की पूजा होती थी। हमने किसी को मारा नही ना ही किसी को नीचा दिखाया ना ही किसी से जलन किया। वाकई हम महान हैं। अब तो कलयुग का अंत निकट है हमे पता है दुनिया में सबसे पहले सत्य जाएगा फिर हिन्दू फिर असत्य और फिर दुनिया का अंत होगा।। विष्णु भगवान का अंतिम अवतार कोई मनुष्य का रूप नही अदृश्य शक्ति होगी। जिसे असत्य कभी पहचान ही नही पायेगा।
आपने सही लिखा है। क्योकि यदि आर्य बाहर से आये हैं तो कहाँ से आये हैं। और जहाँ से आये होंगे वहाँ भी उनके होने का प्रमाण क्यो नही मिला। जिन लोगो ने ये भ्रम फैला रखा है। वे उनके दूसरे जगह के होने का प्रमाण भी देवे।
Abe ब्राह्म्णवादियों अगर संस्कृति प्राचीन भाषा है तो क्यूं हमें संस्कृति में लिखे हुए शीला लेख नहीं मिलते है जो कुछ शीला लेख मिलते भी है वो पाली भाषा में ही क्यूं मिलते है ब्राह्मण जो है पूर्णतया विदेशी है को आर्यो के रूप में लूट के इरादे से भारत में आए अगर ब्रहामण विदेशी नहीं थे तो क्यूं बोध ग्रंथो को नष्ट किया गया या जलाया गया अगर आर्य मूलनिवासी था तो क्यूं प्रमाण नहीं देता कुछ, मात्र कहानियां गड़ने से कुछ नहीं होता, अगर तुम ब्रह्मा के मुख से पैदा हुए है तो शादियां करना बन्द कर दो ओर मुंह से बचे पैदा किया करो अरे गोबर भक्षको अगर रावण का पुतला जलाया जाना जायज है तो इन्द्र का क्यूं नहीं जलाया जाना चाहिए इन्द्र तो रावण से भी ज्यादा क्राइम किया है इन्द्र तो बलात्कारी है ना , अबे सालों तुम लोगो ने जो ये भ्रांति समाज में फैला रखी है ना अब ज्यादा नहीं चलेगी क्यूंकि अब हर एक मूलनिवासी पड़ा लिखा है और अपने इतिहास को समझ रहा है अब तुम्हारी दुकानदारी ज्यादा नहीं चलेगी,
संस्कृत भाषा एक वैज्ञानिक भाषा इसलिए जर्मनी मे भी संस्कृत को पढाया जाता है लेकिन खुद भारत के लोग संस्कृत तो दूर की बात हिंदी तक पढना पसंद नही करती|
Baat me dam to hai logically
डाक्टर मधुसूदन जी आपको धन्यवाद
आर्यावर्त दो शब्दों से बना है । आर्य +आवर्त । आर्य मतलब सूर्योपासक और आवर्त मतलब बार बार आना । आर्यों के नियमों को नहीं मानने वालों को अनार्य कहा जाता था। अनार्यों को नियमों विपरित चलने के कारण देश निकाला कर दिया जाता था। बाद में यहाँ के रृिषि महर्षि उन्हें आर्य पद्यति समझा बुझा कर वापस लाते थे । उनका बार बार वापस आना ही आवर्त हुआ। इस तरह इस देश का नाम आर्यावर्त पड़ा।
https://www.google.com/amp/s/m.jagranjosh.com/general-knowledge/amp/%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%2582-%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%2597%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%25A8-1439989762-2
आज मैं धन्य हो गया साहब सच्चाई जानकर
पुरातत्वों की कार्बन डेटिंग से स्टडी करें और कौन कहाँ से आया है इसके लिये डीएनए टेस्ट करो, सभी जातियों का।लेकिन इस अध्ययन में केवल ब्राह्मण या संस्कृतभाषा वाले ही न हों। अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिक समूह की निगरानी में हो। सत्य सामने आ जायेगा।
आ. रकम सिंह जी….
आप एक आलेख लिखिए. या लिखा हो तो प्रवक्ता पर कहाँ है? बताइए.
सत्य सामने आ चुका है कि आर्य विदेशी है।
कहाँसे आये? कुछ तर्क सहित प्रमाण दीजिए.
bilkul sahi Sir
https://www.pravakta.com/infiltration-into-india-of-aryon-lies-at-the-heart-of-the/
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“आर्यों की भारत में घुसपैठ” के झूठ की जड़
Posted On February 28, 2014 & filed under धर्म-अध्यात्म.
-डॉ. मधुसूदन- सारांश *** एशियाटिक सोसायटी का षड्यंत्र *** कड़वे रस में डूबा गुलाब जामुन *** डॉ. अम्बेडकर का निरीक्षण-विश्लेषण *** विवेकानंदजी की चुनौती *** युरोप और भारत की सभ्यता का अंतर *** कृण्वन्तु विश्वं आर्यम् *** हमारे समन्वयवादी विचार (एक) मूल कारण है, एशियाटिक सोसायटी। कितने वर्षों से यह प्रश्न मुझे सता रहा…
मैं आपको डीएनए टेस्ट के लिये आमंत्रित करता हूँ।
आप ने अपना डी. एन. ए. टेस्ट करवाया हो, तो उसका परिणाम क्या निकला? और आप ने किसी परीक्षक से टेस्ट करवाने सम्पर्क किया है क्या? जानना चाहता हूँ. और कौनसी संस्था इस परीक्षा का व्यय कर रही है?
https://youtu.be/IBUyAdcMu4U
आजतक आर्य के बाहर से आने का कोई एक पंक्ति का भी प्रमाण नहीं मिला है। मेगास्थनीज आदि सभी ग्रीक लेखकों ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि भारत एकमात्र देश है जहाँ कोई भी बाहर से नहीं आया है। प्रमाण पैदा करने के लिए अंग्रेजों ने उत्तर पश्चिम भारत में खुदाई शुरू कर दी। 3014 ईपू में जनमेजय ने परीक्षित की हत्या का बदला लेने के लिए तक्षक राज्य पर आक्रमण किया था। जहां पहली बार नाग सेना को पराजित किया था वहां गुरु गोविंद सिंह जी ने राम मंदिर बनवाया था। उसके बाद जनमेजय ने दो नगरों को श्मशान बना दिया। उनके नाम पड़े-मोइन जो दरो – मुर्दों का स्थान, हडप्पा = हड्डियों का ढेर। यह कहानी मालूम थी। नर संहार के प्रायश्चित के लिए उसके बाद पुरी में सूर्य ग्रहण के अवसर पर 27-11-3014 ईपू में 5 स्थानों पर भूमि दान किया। सभी पट्टे मैसूर एण्टीक्वरी में जनवरी 1900 में प्रकाशित हुए। उनमें केदारनाथ और तुङ्गा नदी तट के राम मंदिर के पट्टे आज भी चल रहे हैं। अंग्रेजों को यह कहानी स्पष्ट रूप से मालूम थी। इस कहानी को उल्टा कर उसे द्रविड पर पश्चिम उत्तर से आर्यों का आक्रमण बना दिया। आज तक पश्चिम उत्तर में कहीं भी आर्यों का स्थान नहीं मिला है। भारत के हर भाग में वेद के 40-50 विशिष्ट शब्द होना ही स्पष्ट प्रमाण है कि आरम्भ से वैदिक सभ्यता पूरे भारत में प्रचलित थीं। इसके साथ ही खनिज क्षेत्रों में भी बाहर से खुदाई के लिए मजदूर आने के भी सम्पूर्ण प्रमाण हैं। महाभारत के वन पर्व (230/8-10) के अनुसार प्रायः 15800 ईपू में कार्तिकेय हुये थे जिन्होंने क्रौञ्च द्वीप पर कब्जा किया था। मेगास्थनीज ने भी लिखा है कि भारत ने 15000 वर्ष में (उससे पहले के) किसी देश पर आक्रमण नहीं किया क्योंकि वह भोजन और अन्य सभी चीजों में स्वावलंबी था। उससे कुछ पूर्व देव-असुरों में समुद्र मन्थन अर्थात् खनन के लिए सहयोग हुआ था। भारत के खनिज भाग में वे उत्तर अफ्रीका से आये थे। उसी क्षेत्र के बाक्कस (डायोनिसस) ने अप्रैल में 6777 में भारत पर आक्रमण किया जिसमें सूर्य वंश का राजा बाहु मारा गया था। मेगास्थनीज, एरियन, सोलिनस के अनुसार उसके बाद गुप्त काल के चन्द्र गुप्त-1 तक भारतीय राजाओं की 154 पीढियों ने राज्य किया जब सिकन्दर का आक्रमण हुआ। बाक्कस आक्रमण के 15 वर्ष बाद राजा सगर ने असुर राज्य सीमा के यवनों को भगा दिया। हेरोडोटस के अनुसार वे ग्रीस में बसे जिससे उसका नाम इयोनिया (यूनान) हो गया। अतः प्राचीन असुर भाषा के खनिज शब्द ग्रीक में गये। वही आज भी खनन के लिए आये असुरों की उपाधि है। झारखंड के खनिज क्षेत्र में एक असुर जाति भी है। सोना को ग्रीक में औरम कहते थे। अतः खनिज से सोना निकालने वालों की उपाधि ओराम है। सोने के कण पत्थर से निकालना वैसा ही है जैसे चींटी वालू के ढेर से चींटी का दाना निकालती है। अतः सोना खनन करने वालों को कण्डूलना (चींटी) कहते हैं। इसका अर्थ नहीं समझने के कारण हेरोडोटस, एरियन आदि ने लिखा है कि भारत में सोना निकालने वाली चींटियां हैं।
ज्ञानवर्धक !
मेरा केवल एक प्रश्न ,मैकाले के पहले जो भारत का इतिहास है,वह तो संस्कृत या हिंदी में होगा,उसमे क्या लिखा है?
जो कुछ भी इतिहास है वह मेकाले के पहले का ही लिखा है और केवल भारतीय भाषाओं में ही है। मेकाले ने कोई इतिहास नही लिखा। उसने तथा अन्य अंग्रेजों ने उपलब्ध इतिहास को केवल नष्ट करने का ही काम किया है। इसके लिये जितने राजाओं ने अपने वर्ष (शक या सम्वत्) शुरू किये उनका नाम काल्पनिक करार दिया। यदि अंग्रेज ही इतिहास लिखना जानते तो अपने देश का क्यों नहीं लिखा? यहां का इतिहास इसलिये लिखा गया क्योंकि वह पहले से था।
आपने दो बातें लिखी हैं.एक तो यह कि अंग्रेजों ने भारत का इतिहास नष्ट किया है,दूसरे उन्होंने अपना इतिहास क्यों नहीं लिखा?पहले के बारे में मैं क्या पूछ सकता हूँ कि अंग्रेजों ने केवल इतिहास हीं क्यों नष्ट किया ?अन्य ग्रन्थ क्यों नहीं?अंग्रेजों द्वारा भारत के इतिहास की पुस्तकों के नष्ट करने का कोई प्रमाण तो मिलता नहीं .ज्यादा प्रमाण इस पक्ष में हैं कि भारत में विधिवत इतिहास लिखने की परम्परा ही नहीं थी .जब अंग्रेज भारत में आये थे,उस समय तक तो इंग्लैंड में औपचारिक प्रजातंत्र के स्थापना की शताब्दियाँ बीत चुकी थी,जिनका विधिवत इतिहास भी था.अतः यह कहना कि उनका कोई इतहास नहीं था मुझे गलत लगता है,
आप ठीक कह रहे हैं। सिंह साहब।
sanskrit me कंही भी बाहर से आने का उल्लेख नहीं है
होगा ही नहीं क्योंकि संस्कृत है ही उनकी भाषा, वे अपनी पोल क्यों खोलेंगे
आप के पास क्या प्रमाण है?
रकम सिंह जी—(१)जिस देवनागरी में आप लिख रहे हैं, वह भी तो उन्हीं की देन है. (२) जिस हिन्दी में आप लिख रहे हैं, उसके ७० प्रतिशत शब्द संस्कृतजन्य हैं.
(३) आप का नाम *सिंह* भी तो संस्कृत है. (४)जिस सीढी पर चढकर आप वृक्ष काटना चाहते हैं, वह प्राकृत की सीढी भी संस्कृत की उपज है.(५) सारे,अंक, संख्याएँ जो संसार भर में प्रयोजी जाती हैं, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १०. और ० शुन्य भी. सारा संस्कृत है.(६)
…. क्या करना चाहोगे? सारा संसार भारत का ऋणी है. यह आप के और हम सभी के लिए गौरव की बात है. लज्जा की नहीं. {ब्राह्मण वृत्ति का नाम है. जन्मजाति का नहीं} –मैं भी जन्म से ब्राह्मण नहीं हूँ. पर मुझे संस्कृत का अध्ययन करने से किसी ने रोका नहीं है. जिस कम्प्युटर से आप लिखते हैं, उस के आंतरिक परिचालन में *संस्कृत* का (पाणिनि) का व्याकरण प्रयोजा गया है.
सारा जग हमारा (भारत का) ऋणी है.
महानुभाव, मैं आपका समर्थन करता हूँ।हमे गर्व है कि हम हिंदू हैं
सारे संसार में संस्कृत नहीं बोला जाता hai.