आकाशवाणी का तब ?

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Radio Singapur

बी एन गोयल

आकाशवाणी से जुड़ें मेरे इन कुछ लेखों को पढ़ कर मेरे परम शिष्य और मित्र राजेश्वर वशिष्ठ ने सुझाव दिया कि मैं ‘आकाशवाणी – तब और अब’ नाम से इस संस्था के तुलनात्मक स्वरुप पर (समय चक्र के रूप में) कुछ लिखूँ | मैंने इस पर काफी सोचा | मुझे लगा कि यह काम एक प्रोजेक्ट के तौर पर ही हो सकता है क्योंकि इस का फलक बहुत बड़ा होगा | मैं अब न तो इस के लिए सक्षम हूँ और न ही मेरे पास इस तरह के साधन हैं | मैं इसी प्रकार इन स्वतंत्र लेखों के रूप में ही कुछ लिखने का प्रयत्न करूँगा | लेख लिखने का बहुत कुछ श्रेय मैं लोचनी अस्थाना को दूंगा क्योंकि उसकी रेडियो से जुड़े संस्मरण सुनने की रूचि रही है और मेरे पास इन का भण्डार है | इस से पहले नामकरण वाले लेख पर कुछ मित्रों की मिली प्रतिक्रिया पर बात करें | मैं आप सब का आभारी हूँ कि आप ने लेख पढ़ा और अपनी प्रतिक्रिया दी | मेरी भावना किसी को ठेस पहुँचाने की नहीं है| मैं भी कहीं गलत हो सकता हूँ और अपनी गलती को ठीक करने के लिए तत्पर हूँ.
समाचार प्रभाग के मेरे सहयोगी अखिल मित्तल जी ने कहा, “पिछले दिनों प्रसार भारती के सी ई ओ श्री जवाहर सरकार ने विश्व रेडियो दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में बताया कि भारतीय रेडियो को आकाशवाणी नाम गुरुदेव ने दिया था”| युनुस खान और महेंद्र मोदी जी ने मैसूर महाराजा द्वारा प्रदत्त आकाशवाणी नाम की पुष्टि की है |

इस सम्बन्ध में मैं स्व० श्री एच आर लूथरा जी की पुस्तक Indian Broad-casting के पृष्ठ 87 से उद्धरण देना चाहूँगा| “16 अगस्त 1938 के दिन की बात है. गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर ने कोलकाता से 10 किलोवाट के नए शोर्टवेव ट्रांसमीटर के उद्घाटन के अवसर पर ’आकाशवाणी’ नाम से बंगला में विशेष रूप से एक कविता लिखी थी| उस समय तक उन के पास 1.5 किलोवाट का एक मीडियम वेव ट्रांसमीटर ही था. इस कविता का अंग्रेजी अनुवाद भी गुरुदेव ने स्वयं ही किया था’| (उपरोक्त अंग्रेजी से हिंदी भावनुवाद मेरा)
Hark to Akashvani up-surging, From here below
The earth is bathed in Heaven’s glory, Its purple below …..

अतः आल इंडिया रेडियो के हिंदी वैकल्पिक नाम के रूप में इसे 1 अप्रैल 1950 से ही सरदार पटेल की पहल पर स्वीकार किया गया था क्योंकि उस दिन मैसूर केंद्र का अन्य तीन देसी रियासतों – हैदराबाद, त्रिवेंद्रम, और औरंगाबाद केन्द्रों के साथ आल इंडिया रेडियो में विलय हुआ था. सरदार पटेल उस समय सू० प्र० मंत्री भी थे.

दूसरी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया शुभ्रा शर्मा जी की है – “पहले पहल प्रसारण अलीपुर रोड के एक बंगले से होता था | सन्दर्भ –न्यूज़ रूम से शुभ्रा शर्मा, प्रसारण भवन का इतिहास, रेडियोनामा.

आप ने ठीक बताया – दिल्ली केंद्र का प्रसारण 1 जनवरी 1936 से शुरू हुआ उस समय इस का नाम Indian State Broadcasting Service था. मैंने कहीं पढ़ा था कि 8 जून 1936 तक यह शुरू में नार्थ ब्लाक और भगवानदास रोड की एक कोठी से चला. 8 जून 1936 से यह 18 अलीपुर रोड पर आ गया और इस का नाम भी बदल कर आल इंडिया रेडियो (AIR) हो गया| कुछ वर्षों तक 8 जून के दिन आकाशवाणी ने 18 अलीपुर रोड से वार्षिकी भी मनाते रहे| फ़रवरी 1943 में दिल्ली केंद्र और महानिदेशालय अपने स्थाई निवास – वर्तमान प्रसारण भवन में आ गए.
अब हम बात करते हैं आकाशवाणी के तब की | अखिल मित्तल पिछले दिनों सिंगापुर गए थे। वे वहां का रेडियो संग्रहालय देखने गए। वहां से उन्होंने कुछ फोटो भी भेजे। वहां से कमेंटरी देते हुए उन्होंने लिखा – ‘मित्रों यह सिंगापुर राष्ट्रीय संग्रहालय में रेडियो इतिहास कक्ष है। इसमें सिंगापुर में रेडियो प्रसारण का इतिहास, मशीनरी, उपकरण और रेडियो सेट देखने सुनने को मिले। साथ में प्रसिद्ध प्रसारण कर्ताओं का परिचय भी मिला। स्टूडियो देखा तो अपने पुराने स्टूडियो याद आ गए और फोटो खिंचवा लिए। सोचा जानकारी आपको भी दी जाए। क्या हम भी कभी आकाशवाणी के इतिहास को इस तरह संजो पाएंगे।‘

मैंने उत्तर में लिखा कि “मुझे आप से थोड़ी ईर्ष्या हुई है । हम यहाँ आज भी अपने रेडियो के इतिहास के लिए पुरानी किताबों में सर फोड़ रहें हैं। हमारा प्रसारण का इतिहास इन सब से पुराना है, आकर्षक, भव्य और वैवध्यपूर्ण है।“ भारतीय संगीत का फलक ही इतना बड़ा है कि देश के हर क्षेत्र में इस का एक काफी बड़ा संग्रहालय बन सकता है। शास्त्रीय संगीत देश की सांस्कृतिक धरोहर है। इन के कलाकारों की लम्बी संगीत गैलरिया भी इन के लिए कम पड जायेंगीं। जी सी अवस्थी ने अपनी पुस्तक में लिखा है, “भारतीय प्रसारण सौभाग्यशाली है कि इस के पास संगीत की एक लम्बी और गौरवशाली परंपरा है. हमारे सरस्वती वीणा …..जैसे कुछ वाद्य यन्त्र हजारों वर्ष पुराने हैं।“ विचित्र वीणा और काष्ठ वीणा तो सामान्य सी बात है।
यदि आप को भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय जाने का अवसर मिले और यदि आप की संगीत वाद्य यंत्रों के देखने में रूचि हो तो वहां पद्मभूषण स्व० श्रीमती शरण रानी बाकलीवाल संगीत वाद्य यंत्र गैलरी अवश्य देखें क्योंकि आकाशवाणी का कुछ इतिहास इन कलाकारों के माध्यम से भी जाना जा सकता है | शरण रानी जी भारत की एक मात्र और पहली महिला सरोद वादक थी| आकाशवाणी की वे सम्मानीय कलाकार थी| उन के गैलरी के 50 वर्ष पुरे होने पर इसे देखने के बाद किसी ने टिप्पणी की थी –‘यदि ये दीवारें बोल सकती तो यहाँ 450 मुखों से समवेत स्वर में संगीत लहरी गूँज उठती|’ उन्होंने अपने निजि प्रयत्नों से इन 450वाद्य यंत्रों को एकत्र किया था| | इस में उन्होंने अपने घर के और अपने पूर्वजों के सरोद सितार तथा अन्य यन्त्र रखे थे | यह काम व्यक्तिगत रूप से होने के कारण सफल हो गया | प्रश्न है आकाशवाणी ने अभी तक ऐसा क्यों नहीं किया ?

संगीत संग्रहालय के सन्दर्भ में पुणे के राजा दिनकर केलकर के निजी संग्रहालय की चर्चा करना आवश्यक होगा। इस की स्थापना का काम डॉ दिनकर केलकर ने अपने एक मात्र पुत्र राजा की स्मृति में 1920 में शुरू किया था और 1960 तक इन के पास 20,000 वस्तुओं का संकलन हो चुका था। संगीत के वाद्य यंत्रों का यहाँ एक अलग विशेष भाग है जिसमे अनेक दुर्लभ यंत्रों जैसे विभिन्न प्रकार की वीणा, सितार, इकतारा, ढोलक और तबला आदि रखे हैं । मैं अपने पुणे प्रवास के दौरान इस संग्रहालय को अनेक बार देख चुका हूँ फिर भी अधुरा ही देख पाता हूँ । लेकिन आकाशवाणी का अर्थ केवल संगीत ही नहीं है |

12 नवम्बर 1947 के दिन पहली बार महात्मा गाँधी आकाशवाणी के स्टूडियो में रिकॉर्डिंग के लिए आये थे| उस दिन की स्मृति में तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज जी ने 12 नवम्बर 2001 का दिन जन सेवा प्रसारण (Public Service Broadcasting) का दिन घोषित किया था|
उस दिन दिल्ली केंद्र के पुराने ड्यूटी रूम को झाड पोंछ कर उस में बनाये गए एक रेडियो संग्रहालय का उन्होंने उद्घाटन किया था | लेकिन वह शायद एक ही दिन के लिए था क्योंकि इस के बाद न तो इस की कोई विज्ञप्ति निकली और न ही कोई सूचना और न ही उस के बाद कोई समारोह | मित्तल जी ने लिखा है कि आकाशवाणी संग्रहालय के नाम पर यह कैसा भद्दा मजाक हुआ था | उन का कष्ट और भी गहन है – ‘आकाशवाणी समाचार प्रभाग में देवकीनंदन पांडे जैसी हस्तियों की एक भी रिकॉर्डिंग नहीं है’ | देवकीनंदन पांडे जी की बात आई तो मैं उन से सम्बंधित दो संस्मरण दूंगा –

एक इसे सभी जानते होंगें| यह पाण्डे जी ने स्वयं ही सुनाया था| श्रीमती इंदिरा गाँधी जब प्रधान मंत्री थी वे जनता दरबार लगाती थी और जनता की परेशानियों को सीधे ही सुनती थी| उन से मिलने वाले सभी लोग एक लाइन में खड़े होते थे| प्रधानमंत्री एक एक शिकायतकर्ता के सामने कुछ क्षणों के लिए रूकती, शिकायतकर्ता अपना नाम कहता, उन का सहायक शिकायतकर्ता से उस का आवेदन लेता और वे आगे बढ़ जाती| पाण्डे जी भी उन दिनों कुछ परेशानी में थे | उन्हें अपनी समस्या का कोई समाधान नहीं मिल रहा था अतः एक दिन उनने भी जनता दरबार में जाने का निश्चय किया|

एक दिन वे पहुँच गए और लाइन में लग गए | प्रधान मंत्री जैसे ही पाण्डे जी के सामने आई – पाण्डे जी ने अपनी अनूठी शैली में अपना नाम देवकी नंदन पाण्डे कह कर समाप्त किया ही था कि वे अगले आवेदक के सामने थी – …..लेकिन यह क्या ?
वे एक दम पलटी और पाण्डे जी से कहा – ‘क्या नाम बताया आपने ?’
‘जी, देवकी नंदन पाण्डे’ |
‘क्या आप ही आकाशवाणी से ख़बरें पढ़ते हैं’?
‘जी हाँ’. आवेदन पत्र लेने वाले सहायक हक्के बक्के | कहने की बात नहीं कि पाण्डे जी की पूरी बात सुनी गई | यह था देवकी नंदन पाण्डे की आवाज़ का जादू | इसी तरह के अन्य नाम थे अशोक वाजपेयी, विनोद कश्यप| अशोक वाजपेयी जी मेरे अच्छे मित्र रहें हैं|
दूसरा उदाहरण देश का नहीं विदेश का है | मैं अपने रिटायरमेंट के बाद स्वास्थ्य आदि के कारण अधिकांशतः कनाडा रहता हूँ. वहां काफी संख्या में भारतीय रहते हैं| इन में कुछ गत 40 / 50 वर्षों से भी अधिक समय से यहाँ बसे हैं| इन सब के अपने अपने ग्रुप हैं| हमारा भी एक ग्रुप है – वरिष्ठ नागरिकों का | इस में पति पत्नी सहित लगभग 150 सदस्य हैं | हर मंगलवार को दोपहर 1.30 बजे से 4 बजे तक हमारी मीटिंग होती है | इस का प्रारम्भ गायत्री मंत्र से होकर शांति पाठ और जलपान से समाप्ति होती है| रेडियो की भाषा में कहुं तो इस का भी एक स्थाई बिंदु (Fixed Point) है और इस में दस मिनिट का एक समाचार बुलेटिन भी होता है | समाचारों का संकलन, लिखना और पढना आदि यह सब हम दो बुजुर्गों (यानी मेरे और एक श्री के एन गुप्ता) की ज़िम्मेदारी है | इन लोगों ने अपने समय में शायद देवकीनंदन पाण्डे से समाचार सुन रखे हैं तो इन्होनें हमारा दोनों का नाम देवकीनंदन पाण्डे रखा हुआ है | यद्यपि मेरे लिए यह एक संकोच की बात है लेकिन इन लोगों के लिए यह पाण्डे जी के प्रति सम्मान का भाव है |
अभी 8 मई 2016 के दिन अंग्रेजी के पुराने समाचार वाचक श्री सुरजीत सेन का निधन हो गया | प्रसार भारती के CEO श्री जवाहर सरकार ने उन के लिए संस्मरणात्मक रूप से बहुत अच्छा लिखा है | आकाशवाणी से जुड़े हम कुछ लोगों को (विशेषकर जो उन्हें निकट से जानते थे) दुःख हुआ और फेस बुक पर हमने अपनी श्रद्धांजलि दी लेकिन किसी अखबार, टीवी चैनल अथवा मीडिया में इस की चर्चा नहीं हुई | किस को दोष दें – स्वयं को अथवा अपने तंत्र को | ०००००

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लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

2 COMMENTS

  1. आ. गोयल महोदय ने अत्यन्त सराहनीय इतिहास और संबंधित जानकारी प्रभावी ढँग से प्रस्तुत कर आनेवाली पीढियोंके लिए उपकार ही किया है। सराहना के लिए शब्द भी सूझ नहीं रहे है।
    धीरे धीरे आलेख पढते पढते जब वाद्यों की संख्या और उनके संग्रहालयों की जानकारी देखी तो आश्चर्यसे भर गया। वाः। शतशः धन्यवाद।

    • ​​डॉ. झवेरी,
      आप का धन्यवाद किन शब्दों में करूँ क्योंकि इतनी बारीकी और गहराई से आप लेख पढ़ते हैं और उस की चर्चा करते हैं – वह अतुलनीय है. इन दो संग्राहलयों बारे में यद्यपि मेरे पास सामग्री काफी थी लेकिन यह लेख आकाशवाणी के सन्दर्भ था अतः सीमित रहना आवश्यक था ….. आप का आभारी हूँ

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