प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गौरक्षा

modi-gorakshaराकेश कुमार आर्य

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों गौरक्षकों के लिए एक बयान दिया कि ये रात-रात भर गौरक्षा के नाम पर उत्पात मचाते हैं। प्रधानमंत्री की दृष्टि में 70 प्रतिशत गौरक्षक देश में फर्जी हैं। इस पर पूरे देश में एक नई बहस आरंभ हो गयी है। हमारा मानना है कि प्रधानमंत्री के बयान और उस पर देश में हो रही प्रतिक्रिया की सावधानी से समीक्षा करने की आवश्यकता है। पूर्णत: प्रधानमंत्री भी गलत नही हैं और ना ही पूर्णत: गलत वे लेाग हैं जो प्रधानमंत्री के बयान से स्वयं को आहत और छला हुआ सा अनुभव कर रहे हैं।

भाजपा प्रवक्ता टी.वी. चैनलों पर आकर प्रधानमंत्री के वक्तव्य की सकारात्मक व्याख्या करने का प्रयास कर रहे हैं। पर लोगों के गले वह व्याख्या उतर नही रही है। हमारे प्रधानमंत्री श्री मोदी आंकड़ों के आधार पर बोलते हैं। उनके विषय में यह भी सत्य है कि उनके आने से देश ने कई क्षेत्रों में सम्मान और गौरव अर्जित किया है। पर तथ्य यह भी है कि मोदी सरकार ने गो मांस के निर्यात को प्रोत्साहन देते हुए

2014-2015 में मीट निर्यात से होने वाली आय में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है। भाजपा के प्रवक्ताओं के पास सम्भवत: इस प्रश्न का कोई उत्तर नही है कि उनके आने पर गोमांस निर्यात को प्रोत्साहन क्यों दिया गया? और मोदी सरकार बूचड़खाने खोलने और उनके आधुनिकीकरण के लिए 15 करोड़ रूपये की सब्सिडी क्यों दे रही है?
विषय पर धैर्य पूर्वक विचार करने की इसलिए भी आवश्यकता है कि लोगों को मोदी से अपेक्षा थी कि उनके आने पर गोमांस के निर्यात की बात तो छोडिय़े गोवध ही प्रतिबंधित हो जाएगा। परंतु परिणाम अपेक्षा के प्रतिकूल आ रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि देश के सबसे बड़े चार मांस निर्यातक हिंदू हैं। ऐसे लोगों की ये दोगली बातें निरर्थक ही कही जाएंगी। अच्छा हो कि गोहत्यारे को केवल गोहत्यारा, अधर्मी (उसका कोई धर्म नही) और पापी ही माना जाए। भाजपा से अपेक्षा थी कि वह इस देश की सनातन धर्म परंपरा की शुचिता और पवित्रता का ध्यान रखते हुए गोहत्यारों के विरूद्घ कड़ी कार्यवाही करेगी और उन्हें किसी मजहब से न पहचानकर केवल गोहत्यारे के नाम से पहचानेगी।

जब देश में मनमोहनसिंह की सरकार थी तो उस समय 2014 के लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रहे मोदी मनमोहन सरकार को इस बात के लिए कोसते थे कि वह हरित या श्वेत क्रांति के स्थान पर ‘गुलाबी क्रांति’ कर रही है। तब उनकी सभाओं में उपस्थित रहने वाले ये ही गौरक्षक होते थे जो उनके भाषण से प्रोत्साहित होकर बल्लियां उछलते थे। आज यही गौरक्षक हमारे प्रधानमंत्री को ‘आतंकवादी’ दिखाई देने लगे हैं। यह तो कोई बात नही हुई। यदि उस समय हमारे गौरक्षकों को उछलने का अधिकार था तो उन्हें आज गौभक्षकों के विरूद्घ काम करने का भी अधिकार है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ‘बिसाहड़ा काण्ड’ का सच अब सबके सामने है। उस काण्ड को बिहार में नीतीश और लालू ने ‘कैश’ किया और वे इस काण्ड पर किंकत्र्तव्यविमूढ की स्थिति में फंसी भाजपा की मानसिकता का लाभ उठाकर सत्ता में आ गये। भाजपा उस समय हिंदू हितों की और अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की रक्षा करने में असफल रही थी। फलस्वरूप एक कथित गोहत्यारे का महिमामंडन शहीद की भांति हो जाने पर भी वह अपना मौन नही तोड़ सकी थी। इस दोगलेपन को लोगों ने ना तो उस दिन अच्छा माना था और ना आज ही अच्छा मान रहे हैं। अखलाक की हत्या यदि निंदनीय है तो गोहत्या भी कम निंदनीय नही है। इस पर भाजपा को स्पष्ट होना चाहिए था।

यह भी आंकड़े हैं कि भाजपा सरकार के आने के बाद देश को बासमती चावल के निर्यात से अधिक लाभ गोमांस के निर्यात से हुआ है। मोदी जी के गृहप्रांत गुजरात में जहां नशाबंदी लागू है वहीं गोमांस का उत्पादन बहुत बढ़ गया है। उनके सत्ता में आने से पहले गुजरात में (2001-2002 में) गोमांस निर्यात 10,600 टन था जो कि 2010-2011 में बढक़र दोगुणे से भी अधिक अर्थात 22000 टन हो गया था। ‘रामभक्तों’ की सरकार से देश की जनता और देश का बहुसंख्यक समाज कुसंस्कृत राष्ट्रवाद की अपेक्षा तो नही करता था, उसने तो इसके ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ से प्रभावित होकर इन्हें अपना मत दिया था। गांधी के गीत गाने वाले मोदी को गांधी की अहिंसा का मूल्य समझना चाहिए।

देश में आज असम, तमिलनाड़, पश्चिम बंगाल में सरकार की अनुमति लेकर और अरूणांचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम व त्रिपुरा में बिना किसी की अनुमति के गाय काटी जा रही हैं। इतना ही नही देश के कई स्थान या आंचल ऐसे हैं जहां मुस्लिम आबादी अधिक है और वहां गोहत्या खुले में कर दी जाती है। यह माना जा सकता है कि बहुत से मुस्लिम गौपालन करते हैं और वे गोहत्या को गलत मानते हैं, पर जब कहीं भी ऐसी घटना होती है तो यह भी सच है कि गौरक्षकों का खून खौल उठता है। वे रात-रात भर जागकर गौमाता की रक्षा करते हैं और कहीं ऐसे स्थानों में अकेले जाकर बैठ जाते हैं, जहां से रात्रि में गौवंश की हत्या के लिए चोरी की सबसे अधिक संभावना होती है। उनके पुरूषार्थ को और इस देशभक्ति से बढक़र मानवता की सेवा के लिए किये जा रहे उत्कृष्ट कार्य को यूं ही नही नकारा जा सकता।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि मोदी के स्थान पर अटलजी होते तो वह गौरक्षा के विरूद्घ कुछ कह भी जाते और अपने विरूद्घ माहौल न बनने देते। वह कहते कि कुछ गौरक्षकों के विरूद्घ भी शिकायतें मिल रही हैं जो सही पायी जा रही हैं कि वे अतिवादी होकर कुछ निरपराध लोगों का उत्पीडऩ कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के विरूद्घ कठोर कार्यवाही करेंगे जो समाज का माहौल बिगाडऩे का प्रयास करते पाये जाएंगे। पर प्रधानमंत्री श्री मोदी ने सीधे ही 70 प्रतिशत का एक आंकड़ा दे दिया कि इतने गौरक्षक फर्जी हैं। परंतु प्रधानमंत्री का दलितों के साथ हो रहे उत्पीडऩात्मक व्यवहार को लेकर चिंतित होना बहुत उचित है। उनकी चिंता को सभी गौरक्षकों को सही संदर्भ और सही अर्थों में लेने की आवश्यकता है। यह आंकड़ा तो पचता और जंचता नही है। जहां तक गौरक्षकों की बात है तो उन्हें भी अपना अंतरावलोकन करने की आवश्यकता है। मैंने लेख के प्रारंभ में ही कहा है कि प्रधानमंत्री भी पूर्णत: गलत नही हैं। मैं स्वयं कई ऐसे फर्जी गौरक्षकों को जानता हूं जिनका गौरक्षा से कोई संबंध नही है पर गौरक्षा के नाम से उनकी दुकान चल रही है। ऐसे फर्जी गौरक्षकों के विरूद्घ कार्यवाही कराने के लिए तो हमारे वास्तविक गौरक्षकों को स्वयं ही सामने आना चाहिए। वास्तविक गौरक्षों के विषय में हमारी सरकार को समझना चाहिए कि आज ये लोग धर्मरक्षक के रूप में वैसे ही स्वतंत्रता सैनानी हैं जैसे स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजों के काल में हमारे क्रांतिकारी हुआ करते थे। वह भी सनातन वैदिक धर्म की रक्षार्थ मैदान में कूदे थे और आज के गौरक्षक भी इसी भाव से मैदान में कार्य कर रहे हैं। परंतु हमारे इन स्वतंत्रता सैनानियों के कार्य की पवित्रता तब और भी बढ़ जाएगी जब ये गौहत्यारों को कानून को सौंप दें, और कानून को अपने हाथ में लेने से बचें। सरकार को अपने लोक कल्याणकारी स्वरूप की छवि प्रस्तुत करते हुए गौरक्षकों द्वारा सौंपे गये लोगों से कानून के माध्यम से कड़ाई से निपटना चाहिए। तभी लगेगा कि सरकार और गौरक्षकों की दृष्टि में सर्वप्रथम राष्ट्र है। दंगा उपद्रवों से देश नही चलता है, देश तो विवेकपूर्ण मनोयोग से चलता है। बड़बोलापन और उतावलापन सदा ही घातक होता है। तानाशाही को लोकतंत्र में लोग उठाकर फेंक देते हैं।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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  1. राकेश कुमार आर्य जी,मोदी जी ने तो ८०% कहा था,आपने उसे ७०% कर दिया.मुझे जहाँ तक याद आता है,प्रधान मंत्री ने यह कहा था कि रात में तो ये लोग चोरी डकैती में लगे रहते हैं और दिन में गो रक्षक बन जाते हैं.तथाकथित स्वयंभुओं को बचाने के लिए अख़लाक़ के केस को जिस तरह तोडा मरोड़ा गया है,उस पर आप विस्तृत प्रकाश डालते तो ज्यादा अच्छा होता.जायज नाजायज बहुत सी बातें आपके इस आलेख के हिस्सें हैं,पर एक बहुत ही हास्यास्पद बात भी आपने लिख डाली है यह आपको किसने बताया कि अंग्रेजों के शासन काल में भारत के क्रांतिकारी सनातन वैदिक धर्म की रक्षार्थ मैदान में कूदे थे. तथाकथित सनातन धर्म के रक्षक तो अंग्रेजों की विरुदावली गाने में मस्त थे. इतिहास तो यह बताता है कि वे लोग भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करने के लिए मैदान में कूदे थे.आपको मालूम होना चाहिए कि उसमे कुछ ऐसे भी थे,जो नास्तिक थे.

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